भारत के प्रीमियम मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट आईआईएम से सम्बन्धित आईआईएम बिल के विषय लगभग हर कोई जानता है. एमबीए उम्मीदवारों के लिए इस बिल के बारे में जानना बहुत महत्वपूर्ण है क्योकि इसमें कैट एग्जाम से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी है. चूँकि यह बिल बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए आइए इस बिल को पास करने में सरकार तथा अन्य प्रमुख कारको की भूमिका के बारे में जानने की कोशिश करते हैं.
आईआईएम बिल क्या है?
आईआईएम बिल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (मुख्य रूप से आईआईएम) के उम्मीदवारों को पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा के बजाय डिग्री देने, डायरेक्टर और फैकल्टी मेम्बर्स की नियुक्ति से संबधित सांविधिक शक्तियां (स्टेचुटरी पावर)प्रदान करता है.
इस बिल को पास करने में विवाद क्यों है ?
इस बिल में पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से 20 आईआईएम में से प्रत्येक में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान हैं. इसकी वजह से एचआरडी मिनिस्टरी की भूमिका सीमित हो जायेगी.

इसके अलावा इस बिल में आईआईएम को राष्ट्रीय महत्व के इंस्टीट्यूट के रूप में घोषित करने और विजिटर्स के पोस्ट को समाप्त करने की मांग की गयी है. वर्तमान में राष्ट्रपति (राष्ट्र का पहला नागरिक) आईआईएम के 'विजिटर' है.
आईआईएम बिल में किस तरह के बदलाव की बात की गयी है ?
संसद में बिल पारित होने के बाद, बोर्ड प्रत्येक इंस्टीट्यूट का मुख्य कार्यकारी निकाय ( प्रिंसिपल एक्जीक्यूटिव बॉडी) होगा और इंस्टीट्यूट के मैनेजमेंट में भी इनका मुख्य रोल होगा. बिल में अनुशंसित प्रमुख परिवर्तन हैं:
प्रत्येक आईआईएम के डायरेक्टर की नियुक्ति सर्च कम सेलेक्शन पैनल के जरिये होगा. एक बार जब बिल बन जायेगा तब फिर इसके लिए ह्यूमन रिसोर्स डेवेलपमेंट मिनिस्ट्री से अप्रूवल लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
इसके अलावा, आईआईएम के एकाउंट्स का भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा ऑडिट की जाएगी. केंद्र सरकार या आईआईएम बोर्डों द्वारा तैयार किए गए सभी नियमों और विनियमों को संसद में पेश करना होगा.
आईआईएम बिल छात्रों को कैसे प्रभावित करेगा?
यह बिल छात्रों को भी समान रूप से प्रभावित करेगा. वर्तमान में ये इंस्टीट्यूट्स छात्रों को पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा का सर्टिफिकेट प्रदान करते हैं
लेकिन आईआईएम बिल में एक प्रावधान है जिसमें कहा गया है कि छात्रों को डिप्लोमा के बजाय पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री से सम्मानित किया जाएगा. वर्तमान में मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स द्वारा दिए गए पीजी डिप्लोमा को डिग्री के बराबर माना जाता है, लेकिन बिल पारित होने के बाद छात्रों को डिप्लोमा की तुलना में डिग्री का टैग लेना अनिवार्य होगा.
यह बिल आईआईएम के फैकल्टी मेम्बर्स को कैसे प्रभावित करेगा?
इस बिल में फैकल्टी रिजर्वेशन को लेकर भी एक प्रावधान है.प्रस्तावित बिल में कहा गया है कि आईआईएम एससी / एसटी और ओबीसी छात्रों के लिए आरक्षण प्रदान करना होगा, इसमें एक खंड है जो कहता है कि आईआईएम समाज के कमजोर वर्गों से शिक्षकों की भर्ती करने की कोशिश करेगा. वही दूसरी तरफ इंस्टीट्यूट्स का कहना है कि जब सरकार एक बार लिखित में निर्देश जारी करेगी तो वे एससी / एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए फैकल्टी पोजीशन का एक हिस्सा अलग कर देंगे.
आईआईएम बिल भारत के अन्य टॉप बी-स्कूलों को कैसे प्रभावित करेगा?
आईआईएम छात्रों को पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा (पीजीडीएम) प्रदान कर रहा है,जबकि अन्य बड़े प्राइवेट इंस्टीट्यूट जैसे एक्सएलआरआई-जमशेदपुर, ग्रेटर नोएडा में बिम्सटेक और एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च, मुंबई को डर है कि आईआईएम द्वारा आईआईएम पीजीडीएम का सर्टिफिकेट नहीं देने से उनके पीजीडीएम की वैल्यू मार्केट में गिर जायेगी और इनसे उनको भारी नुकसान हो सकता है.
एजुकेशन प्रमोशन सोसाइटी ऑफ इंडिया (ईपीएसआई) ने प्राइवेट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स की ओर से एचआरडी मिनिस्ट्री को एक याचिका भी भेजी थी और सरकार से पीजीडीएम इंस्टीट्यूट्स को एमबीए की डिग्री देने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. लेकिन चूंकि एक प्राइवेट शैक्षिक संस्थान यदि स्टेट यूनिवर्सिटी या डीम्ड यूनिवर्सिटी बन जाता है तो वह केवल डिग्री प्रदान कर सकता है. सरकार ने उन्हें एमबीए उम्मीदवारों को पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री देने के लिए ऑटोनोमी लेने की बजाय इन विकल्पों पर गौर करने को कहा है.
आईआईएम बिल को कानून बनने में समय क्यों लगा रहा है?
आईआईएम ड्राफ्ट बिल को पहली बार जून 2015 में सार्वजनिक किया गया था. उस समय स्मृति ईरानी एचआर डी मिनिस्टर थीं और आईआईएम ने अपने ऑपरेशन में 'अत्यधिक सरकारी नियंत्रण' का विरोध किया था. आईआईएम, विशेष रूप से आईआईएम-अहमदाबाद ने ड्राफ्ट बिल के दो खंडों का विरोध किया था. इसने कहा कि इसने इंस्टीट्यूट्स को सरकारी विभागों के कारण कम कर दिया तथा अब दो खंडों [ 3 (के) और 36 (1) ] के तहत, आईआईएम को हर निर्णय के लिए सरकार की मंजूरी लेनी होगी, जिसमें फी स्ट्रक्चर, एडमिशन क्राइटेरिया, एकेडमिक डिपार्टमेन्ट, कर्मचारियों की सैलरी आदि सभी शामिल हैं. फ़िलहाल ये शक्तियाँ आईआईएम के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के हाथों में निहित हैं.
बिल को तैयार करने के शुरुआती चरणों में चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन बाद में बिल में उल्लिखित मांग पर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के ऑपरेशन में सरकार का हस्तक्षेप कम हो गया है.