वस्तुतः मनुष्य का यह सहज एवं स्वाभाविक गुण होता है कि उसके पास जो कुछ होता है उससे वो कभी खुश नहीं होता और अधिक की इच्छा रखता है
उसे हमेशा लगता है सामने वाला ज़्यादा खुश है. यही सोच उसकी अपने जॉब और अर्निंग को लेकर भी होती है.
ज्यादातर लोगों की राय है कि प्रोफ़ेसर, आर्किटेक्ट और प्रॉपर्टी के क्षेत्र में मोटी पगार मिलती है. लेकिन हमेशा यह सोंच बिलकुल सही साबित नहीं हो सकती है. कभी कभी कुछ अन्य नए क्षेत्रों में भी अच्छे पगार वाली नौकरी मिल सकती है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी वक़्त आर्किटेक्ट को मोटी सैलरी मिलती थी. लेकिन अब हालात बिलकुल बदल गए हैं. आज कोई भी प्रोजेक्ट ठेकेदारों के ज़रिये ही मिलता है. इसमें भी गौरतलब बात यह है कि ठेकेदारों की कोशिश होती है कि वो आर्किटेक्ट को कम से कम पैसा दें.
आर्किटेक्ट बनने में क़रीब आठ साल का समय लगता है और पढ़ाई पर अच्छी ख़ासी रक़म खर्च होती है इसके लिए क़र्ज़ तक लिया जाता है. लेकिन जब नौकरी मिलती है तो उम्मीद के मुताबिक़ तनख़्वाह नहीं मिलती.

किसी आर्किटेक्ट की औसतन सलाना सैलरी ग्लोबली क़रीब चौबीस लाख़ रुपए से लेकर तीस लाख़ रुपए तक ही होती है.
इसीलिए बेहतर तनख़्वाह की चाह में कुछ आर्किटेक्ट अब फ़र्नीचर औऱ स्टेशनरी डिज़ाइनिंग में हाथ आज़माने लगे हैं.
यही स्थिति थोड़ा बहुत प्रॉपर्टी के कारोबार का भी है. हमें लगता है कि मध्य पूर्व या किसी और देश में जाकर कारोबार करेंगे तो अच्छी कमाई हो जाएगी. जबकि हकीकत कुछ और ही है.
उदाहरण के लिए अगर संयुक्त अरब अमीरात और इसके कुछ शहरों की बात की जाए तो यहां फ़ाइनेंस और प्रॉपर्टी सेक्टर में होने वाली कमाई में बहुत अंतर है.
यहां रहने का ख़र्च भी बहुत ज़्यादा है. यहां कि कंपनियां आपको लुभाने के लिए अख़बारों में बड़े-बड़े इश्तहार देती हैं. इनमें तरह-तरह की सहूलियतें देने का वादा भी किया होता है. हमें लगता है अब तो बस आपके सपने वहां जाकर ही साकार होंगे. लेकिन ये एक भ्रम मात्र है.
टाइम्स हायर एजुकेशन के सालाना सर्वे के मुताबिक़ अमरीका में एक लेक्चरर, सालाना औसतन क़रीब तेरासी लाख रुपए कमाता है.
वहीं ब्रिटेन में एक लेक्चरर की सालाना औसत आमदनी 40 लाख रुपए के आस-पास होती है.
बिज़नेस स्कूल के प्रोफ़ेसर की अगर बात की जाए तो यक़ीनन वो इससे कहीं ज़्यादा कमाते हैं.
यूँ तो यह भी टेंशन वाला काम है. लेकिन फिर भी दूसरे पेशों के मुक़ाबले ये सुकून वाली नौकरी है.
अब एक आम सवाल यह है कि अगर इतनी मेहनत के बाद भी मनचाही तनख़्वाह वाली नौकरी ना मिले तो क्या करें ?
दरअसल सैलरी के साथ-साथ अपने काम से संतुष्ट होना ज़्यादा ज़रूरी है.
अगर आप अपनी सैलरी से संतुष्ट नहीं हैं, तो अपने अन्य स्किल्स को निखारिए. आप फ्रीलांस काम करके भी अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.
फ्रीलांसरों के लिए काम करने वाली संस्था आईपीएसई के मुताबिक़ आज सेल्फ़ एम्पलायड यानी स्वरोजगार का चलन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है.
ऐसा करने वाले 79 फ़ीसद लोग अपना बॉस खुद बनना चाहते हैं क्योंकि ऐसा करके उन्हें पैसा और काम दोनों लिहाज़ से सुकून मिलता है.
तो अगर आप कम पैसे कमा रहे हैं, मगर काम से तसल्ली है, तो अपनी दूसरी क़ाबलियतों को तराशने पर ध्यान दें.
और अगर पैसे कम मिलने से परेशान हैं तो फ्रीलांस में भी हाथ आज़मा सकते हैं. अंततः हमारा लक्ष्य है अच्छे रहन-सहन वाली ज़िंदगी सुकून से गुज़ारना.
लेकिन एक बात गौर करने वाली यह है कि अगर आप अच्छी खासी सैलरी तो पाते हैं लेकिन आप अपने काम से संतुष्ट नहीं है तो आप आगे चलकर उस काम में अपना पूरा योगदान नहीं दे सकते हैं जो कहीं न कही आपके प्रोफेशनल लाइफ पर भी असर डालेगा तथा आप निगेटिविटी के शिकार होते चले जायेंगे. अच्छी सैलरी पाना अच्छी बात है लेकिन अगर किसी अच्छी सैलरी वाले पद पर कार्य करना भविष्य में आपके व्यक्तिगत और प्रोफेशनल दोनों ही लाइफ को प्रभावित कर सकता है तो बेहतर होगा कि थोड़ी कम सैलरी वाली वही जॉब करें जहाँ आपको ख़ुशी तथा आत्म संतुष्टि मिलती हो.