हर साल 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा के महत्व और प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता पैदा करना है। यह दुनिया भर में लगभग 500 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाती है। हिंदी दिवस के अवसर पर, कई स्कूलों में स्कूल एसेंबली और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में, छात्र अक्सर हिंदी भाषा और संस्कृति से संबंधित कविताओं का पाठ करते हैं। यहाँ हिंदी दिवस पर 5 कविताएँ दी गई हैं जो स्कूली छात्रों द्वारा इन कार्यक्रमों में पढ़ी जा सकती हैं।
हिंदी दिवस पर 5 कविताएँ
1. जय हिंदीसंस्कृत से जन्मी है हिन्दी, शुद्धता का प्रतीक है हिन्दी । लेखन और वाणी दोनो को, गौरान्वित करवाती हिन्दी । उच्च संस्कार, वियिता है हिन्दी, सतमार्ग पर ले जाती हिन्दी । ज्ञान और व्याकरण की नदियाँ, मिलकर सागर सोत्र बनाती हिन्दी । हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी, आदर और मान है हिन्दी । हमारे देश की गौरव भाषा, एक उत्कृष्ट अहसास है हिन्दी ।। -प्रतिभा गर्ग |
2. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूलनिज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र |
3. भाल का शृंगारमाँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी
घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी
तुलसी, कबीर, सूर औ' रसखान के लिए ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी
सिद्धांतों की बात से न होयगा भला अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी
कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी
माना कि रख दिया है संविधान में मगर पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी
सुन कर के तेरी आह 'व्योम' थरथरा रहा वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी
-डॉ जगदीश व्योम |
4. अभिनंदन अपनी भाषा काकरते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का। यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का। अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का। यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का। – सोम ठाकुर |
5. हिंदी हमारी आन बान शानहिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है, हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है, हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण, हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण, हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है, हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है, हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है, हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है, हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है, हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है, हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है, जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे, तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे, हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है, हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है। – अंकित शुक्ला |
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