IAS Success Story: संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) सिविल सेवा परीक्षा देशभर में सबसे कठिन परीक्षाओं में शामिल है। इस परीक्षा के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से युवा तैयारी करते हैं और अपनी किस्मत आजमाते हैं, हालांकि उनमें से केवल कुछ ही युवाओं को परीक्षा में सफलता मिलती है, जो अपनी मंजिल तक का सफर पूरा करते हैं। वहीं, इस परीक्षा में शामिल होने वाले हर एक युवा की संघर्ष की अपनी कहानी होती है। आज हम आपके साथ झारखंड के रहने वाले रवि कुमार की कहानी साझा करने जा रहे हैं, जिनके पिता झारखंड में एक छोटे बर्तन दुकानदार हैं और बेटा रवि कुमार यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में 38वीं रैंक के साथ आईएएस अधिकारी बन गया है।
रवि का परिचय
रवि मूल रूप से झारखंड के गिरिडीह जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा वही से पूरी की और उसके बाद इंजीनियरिंग की तैयारी की। इंजीनियरिंग की तैयारी करने के बाद उनका दाखिला आईएसएम धनबाद में हो गया, जहां से उन्होंने बीटेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।

टाटा मोटर्स में किया काम
रवि ने पढ़ाई के बाद कुछ समय तक टाटा मोटर्स में काम किया। हालाकिं, उनके मन में आईएएस बनने का सपना था। ऐसे में उन्होंने नौकरी छोड़ने का लिया निर्णय।
दिल्ली में शुरू की तैयारी
रवि कुमार ने नौकरी छोड़ परीक्षा की तैयारी शुरू की। उन्होंने तैयारी के लिए दिल्ली के राजेंद्र नगर इलाके में एक कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने अपनी तैयारी को धार देना शुरू किया।
पहले प्रयास में हुए फेल
रवि कुमार ने सिविल सेवा की तैयारी के दौरान अपना पहला प्रयास किया और पहले प्रयास में ही परीक्षा को पास नहीं कर सके। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने दूसरे प्रयास के लिए तैयारी करने लगे।
दूसरे प्रयास में 38वीं रैंक के साथ आईएएस
रवि कुमार ने अपना दूसरा प्रयास किया। इस बार उन्होंने अपनी कमियों पर काम करते हुए पढ़ने के साथ-साथ रिवीजन पर भी फोकस किया। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में प्रीलिम्स, मेंस और इंटरव्यू में जगह बनाते हुए न सिर्फ सिविल सेवा परीक्षा पास की, बल्कि 38वीं रैंक के साथ आईएएस टॉपर भी बन गए।
पिता अजय साहा हैं बर्तन दुकानदार
रवि के पिता अजय साहा झारखंड में ही एक बर्तन दुकानदार हैं। उनके परिवार की जीविका बर्तन कारोबार से चली।
बहन बैंक में हैं क्लर्क
रवि को उनकी बहन पूजा ने प्रेरणा दी। जब भी वह तैयारी के दौरान निराश होते थे, तो उनकी बहन उन्हें हमेशा उन्हें मोटिवेट करती थी। बहन से प्रेरणा मिलने के कारण वह अपनी तैयारी को कम नहीं होने देते थे।
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