Success Story: संघ लोक सेवा आयोग(यूपीएससी) की ओर से हर साल आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में लाखों युवा अपनी किस्मत और मेहनत को आजमाते हैं। हालांकि, यह परीक्षा आसान नहीं है, लेकिन जब आप किसी परेशानी से जूझ रहे हैं, तो यह परीक्षा और भी मुश्किल हो जाती है। क्योंकि, उस समय खुद को और परिवार को संभालते हुए परीक्षा में सफलता पाना बहुत मुश्किल होता है। आज हम आपको पंजाब के मोगा शहर की रहने वाली रीतिका जिंदल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कैंसर से पीड़ित पिता की देखरेख के साथ यूपीएससी की तैयारी की और दूसरे प्रयास में ही 88 रैंक के साथ आईएएस अधिकारी बन गईं।
रीतिका जिंदल का परिचय
रीतिका जिंदल मूलरूप से पंजाब के मोगा शहर की रहने वाली हैं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पंजाब में पूरी करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज लेडी श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉर्मस में दाखिला लिया। यहां से उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
Salute to young #IAS officer #RitikaJindal for breaking age old parochial tradition by performing 'havan' at Shalooni temple, Solan HP. She also taught lessons of equality to priests, others. This gutsy officer shows us true spirit of #Dussehra.@jairamthakurbjp@IASassociation pic.twitter.com/o3xSBjjAnK
— District Collectors (IAS) (@DCsofIndia) October 25, 2020
पिता को हो गया था कैंसर
रीतिका का शुरू से ही आईएएस बनने का सपना था। ऐसे में उन्होंने स्नातक के बाद अपने इस सपने के पूरा करने का निश्चय किया। हालांकि, इस बीच उनके पिता को ओरल कैंसर हो गया था। ऐसे में रीतिका के ऊपर अपने पिता की देखरेख की भी जिम्मेदारी थी। रीतिका ने पिता की देखभाल के साथ यूपीएससी की तैयारी की और अपने पहले प्रयास में ही वह इंटरव्यू तक पहुंची, लेकिन अंतिम लिस्ट में जगह नहीं बना पाई। हालांकि, रीतिका ने हार नहीं मानी, बल्कि तैयारी जारी रखी।
दूसरे प्रयास के दौरान पिता को हो गया था लंग कैंसर
रीतिका जब दूसरे प्रयास के लिए तैयारी कर रही थी, तब उनके पिता को लंग कैंसर हो गया था। ऐसे में पिता की सेहत की वजह से रीतिका की पढ़ाई भी प्रभावित हुई, हालांकि रीतिका पिता की देखभाल के साथ तैयारी में लगी रहीं। रीतिका ने एक साक्षात्कार में बताया था कि उन्हें अपने पिता के इलाज के लिए पिता को लुधियाना लेकर जाना होता था। ऐसे में रीतिका भी अपने पिता के साथ रहती थीं।
सिर्फ 22 साल की उम्र में बनीं आईएएस
रीतिका ने पिता की देखभाल करते हुए अपना दूसरा प्रयास किया और दूसरे प्रयास में उन्होंने 88 रैंक हासिल कर आईएएस बनने के सपने को पूरा किया। वह सिर्फ 22 साल की उम्र में ही आईएएस बन गईं थीं।
भगत सिंह और लाला लाजपत राय की कहानी से प्रभावित
रीतिका ने बताया कि उनका बचपन भगत सिंह और लाला लाजपत राय की कहानियां सुनकर बीता। ऐसे में रीतिका ने भी तय किया था उन्हें देश के लिए कुछ करना है, इसलिए उन्हें सिविल सेवाओं में आकर सामाज के लिए बेहतर करने का निर्णय लिया था।
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