Here you will get UP Board class 10th Science notes on organic compounds fourth part. we are providing each and every notes in a very simple and systematic way. Many students find science intimidating and they feel that here are lots of thing to be memorised. However Science is not difficult if one take care to understand the concepts well.The main topic cover in this article is given below :
1. वाश से शुद्ध एथिल एल्कोहाल प्राप्त करना
2. परिशोधित सिपरिट (rectified spirit) का शोधन
3. प्रयोगशाला में परिशुद्ध एल्कोहाल बनाना
4. व्यापारिक मात्रा में परिशुद्ध एल्कोहाल बनाना
5. एथिल ऐल्कोहाल के उपयोग
6. एथिल एल्कोहाल के रासायनिक गुणधर्म
7. किण्वन
8. किण्वन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
वाश से शुद्ध एथिल एल्कोहाल प्राप्त करना – वाश के प्रभाजी आसवन से एथिल ऐल्कोहाल काफे भभके (Coffey’s still) द्वारा प्राप्त किया जाता है (चित्र 16.4) | इस भभके में दो प्रभाजक स्तम्भ होते हैं, इनमें एक विश्लेषक (analyser) और दूसरा परिशोधक (rectifier) कहलाता है| विश्लेषक तथा परिशोधक एक – दुसरे से जुड़े होते हैं| विश्लेषक तांबे की प्लेटों द्वारा कई खानों में विभक्त रहता है जिनके तल समान्तर रहते हैं| इन प्लेटों में छिद्र होते हैं| जिनमें ऊपर की ओर खुलने वाले वाल्व लगे होते हैं| प्रत्येक से एक नली निकलकर अपने से नीचे वाले प्याले में डूबी रहती है| परिशोधक (rectifier) का निचला आधा अंश भी विश्लेषक (analyser) की भाँती इसी प्रकार खानों में विभक्त होता है| वाश को शोधन में ले जाने वाली सर्पाकार नली में पम्प द्वारा विश्लेषक के ऊपर पहुंचकर नीचे छोड़ा जाता है| विश्लेषक में नीचे से ऊपर की ओर भाप प्रवाहित की जाती है, जो नीचे आने वाले द्रव के वाष्पशील द्रव को वाष्पों में बदलकर ऊपर ले जाती है| यह वाष्प विश्लेषक से लगी नली द्वारा परिशोधक के नीचे पहुँचती है और फिर परिशोधक में ऊपर उठती है| परिशोधक के ऊपर एक नली लगी होती है जो एक संघनित्र से जुडी होती है| ऊपर आने वाली वाष्प इस नली में होती हुई परिशोधक के ऊपर पहुँचती है और ठण्डी होकर द्रवित हो जाती है, जिसमें 90% एथिल ऐल्कोहाल होता है| इसको परिशोधित सिपरिट (rectified spirit) कहते हैं| विश्लेषक (analyser) के पेंदे में बचा हुआ पदार्थ स्पेंट वाश (spent wash) कहलाता है|

परिशोधित सिपरिट (rectified spirit) का शोधन – काफे भभके से प्राप्त परिशोधित स्पिरिट में जल के अतिरिक्त ग्लिसरीन, स्किस्निक अम्ल, एसिटेल्दिहाइड और फ्युजेल तेल आदि अधुद्धियाँ मिली होती हैं| इन अशुद्धियों को दूर करने के लिए पहले परिशोधित सिपरिट को कोयले के छन्ने में छान लेते हैं और फिर इसका प्रभाजी आसवन करते हैं| प्रभाजी आसवन से मुख्य तीन अंश मिलते हैं-
UP Board Class 10 Science Notes : Organic compounds, Part-I
UP Board Class 10 Science Notes : Organic compounds, Part-II
(i) प्रथम अंश – इसमें ऐसीटेलिडहाइड होता है|
(ii) द्वितीय अंश – इसमें 95.6% शुद्ध एथिल एल्कोहाल तथा 4.4% जल होता है|
(iii) अन्तिम अंश – इसमें फ्युजेल तेल होता है| यह बहुत विषैला पदार्थ होता है, जिसके मिलाने पर एथिल एल्कोहाल दवाइयाँ बनाने के अयोग्य हो जाता है|
प्रयोगशाला में परिशुद्ध एल्कोहाल बनाना – परिशोधित सिपरिट में बारीक चुना डालकर दो दिन के लिए रख देते हैं और फिर इसे छान लेते हैं| कुछ जल चुना अवशोषित कर लेता है और शेष जल हटाने के लिए छने हुए एथिल एल्कोहाल में कैल्शियम धातु के कुछ टुकड़े डालकर आसवन कर लेते हैं| इस प्रकार ग्राही में परिशुद्ध एल्कोहाल प्राप्त होता है|
व्यापारिक मात्रा में परिशुद्ध एल्कोहाल बनाना – परिशोधित सिपरिट और बेन्जीन के मिश्रण का प्रभाजी आसवन करने से 64.8oC पर जल, एल्कोहाल तथा बेन्जीन का स्थिर क्वथ्नी मिश्रण (constant\ boiling mixture) प्राप्त होता है| फिर 68.30oC पर बेन्जीन तथा एल्कोहाल का स्थिर क्वथ्नी मिश्रण अलग हो जाता है| इस मिश्रण को पुन: आसवित करने पर 78.3oC पर परिशुद्ध ऐल्कोहाल पृथक हो जाता है|
सिपरिट में 85.90% एथिल ऐल्कोहाल तथा 15% मेथेनाल पाया जाता है जबकि शराब (वाइन) में मात्र 8-10% एथिल ऐल्कोहाल उपस्थित रहता है|
एथिल ऐल्कोहाल के उपयोग :
(1) प्रयोगशाला में विलायक के रूप में प्रयोग किया जाता है|
(2) इसका प्रयोग नशीले पदार्थ के रूप में किया जाता है| ये है - स्पिरिट तथा शराब यदी एल्कोहाली पेय पदार्थ आसवित है तो वह सिपरिट कहलाता है तथा अनासवित एल्कोहालीय पदार्थ शराब कहलाता है|
एथिल एल्कोहाल के रासायनिक गुणधर्म :
एथिल ऐल्कोहाल के उपयोग :
(1) प्रलाक्ष (lacquers), वार्निश, सुगंध तथा औषधि उद्योग में, एथेनाल एक विलायक के रूप में प्रयुक्त होता है|
(2) पुतिरोधी के रूप में घावों को रोगाणुरहित करने के लिए|
किण्वन – खमीर या यीस्ट एक प्रकार का पौधा या फफूँदी है जो एककोशिकीय सूक्ष्मजीव भी है| यह जीव अपने भोजन को आपूर्ति के लिए शर्करायुक्त पदार्थो के अपघटन से उर्जा प्राप्त करता है| यीस्ट को किवं (ferment) भी कहते हैं| यीस्ट (किंव) द्वारा शर्कराओं के अपघटन की क्रिया को किण्वन कहते हैं| अत: किण्वन एक ऐसी रासायनिक अभिक्रिया है जिसमें कार्बनिक पदार्थों का अनुजीवों (किण्वनों) या उनमें उपस्थित एन्जाइमों द्वारा मन्द गति से अपघटन होता है|
अणुजीवों में विदमान नाइट्रोजनयुक्त पदार्थो को एन्जाइम कहते हैं जो मूल रूप से कार्बनिक यौगिक के अपघटन के जिम्मेदार होते हैं| दूध से दही बनना, पदार्थों का सड़ना तथा गन्ने के रस से सिरका बनना किण्वन के उदाहरण हैं| किण्वन क्रिया में CO2, CH4 आदि गैसें निकलती हैं और उर्जा मुक्त होती है|
किण्वन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-
1. ताप – 25o-35oC ताप एल्कोहालिक किण्वन के लिए अत्यन्त उपयोगी है|
2. वायु की उपस्थिति – वायु की उपस्थिति किण्वन के लिए अनुकूल है|
3. सांद्रता – किण्वन के लिए विलयन का तनु (8-10%) होना आवश्यक है|
4. पोषक पदार्थों की उपस्थिति – किण्वन के लिए कुछ पोषक पदार्थ; जैसे – (NH4)2SO4, अमोनियम फास्फेट आदि नाइट्रोजनी पदार्थों का होना आवश्यक है; क्योंकि ये उर्जा के आभाव में किण्वों को उर्जा प्रदान करते हैं|
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UP Board Class 10 Science Notes : Organic compounds, Part-III