In this article you will get UP Board class 10th Science notes on chapter 17 structure of human body 1st part. Quick notes help student to revise the whole syllabus in minutes. This Key Notes clearly give you a short overview of the complete chapter. Many students find science intimidating and they feel that here are lots of thing to be memorised. However Science is not difficult if one take care to understand the concepts well.The main topic cover in this article is given below :
1. मनुष्य को त्वचा की उदग्र काट का नामांकित चित्र तथा त्वचा के कार्यों का उल्लेख
2. त्वचा के कार्य
3. शरीर ताप नियमन
4. संवेदना ग्राही
5. मनुष्य की त्वचा की संरचना
6. अधिचर्म
7. मैलपीघी स्तर
8. स्पाइनोसम स्तर
9. ग्रेन्यूलोसम स्तर
10. ल्यूसिड्म स्तर
11. कार्नियम स्तर
12. चर्म
13. बाल या रोम
14. त्वचीय ग्रन्थियाँ

मनुष्य को त्वचा की उदग्र काट का नामांकित चित्र तथा त्वचा के कार्यों का उल्लेख :
त्वचा के कार्य (Functions of Skin) :
1. शरीर की सुरक्षा - शरीर का अध्यावरण शरीर की सुरक्षा करता है-
(i) यह शरीर को बाहरी आघातों से बचाता है।
(ii) यह शरीर में हानिकारक विषाणुओं, जीवाणुओँ, कवक आदि के बीजाणुओं को प्रवेश करने से रोकता है।
(iii) त्वचा हानिकारक प्रकाश किरणों से शरीर के आन्तरिक अंगो की सुरक्षा करती हैं।
(iv) त्वचा के व्युत्पन्न जैसे नाखून (सींग, खुर, पंजे आदि) शरीर की सुरक्षा में सहायक होते हैं।
(v) त्वचा अनावश्यक जल-हानि को रोकती है।
2. शरीर ताप नियमन – समतापी प्राणियों (मनुष्य) में त्वचा शरीर ताप को निश्चित बनाए रखती है|
(i) शरीर के बाल, वसा का स्तर ऊष्मा को संरक्षित रखने में सहायक होते हैं|
(ii) गर्मियों में शरीर ताप नियमन में पसीना सहायता करता है| अधिक कार्य करने से भी पसीना अधिक आता है। पसीने के वाष्पीकरण हेतु उष्मा शरीर से ग्रहण की जाती है।
(iii) शीत ऋतु में त्वचा को रक्त कोशिकाएँ सिकृड़कर बन्द हो जाती है जिससे त्वचा से उष्मा हानि कम हो जाती है।
3. संवेदना ग्राही - त्वचा ताप, स्पर्श, दबाव, पीड़ा आदि के उद्दीपनों को ग्रहण करती है।
4. त्वचा शरीर के अन्त: वातावरण को सन्तुलित बनाए रखने में अर्थात् होमियोस्टेटिस (homeostatis) एवं उत्सर्जन में सहायता करती है।
5. त्वचा से दुग्ध, सीबम, सीरुमिन आदि उपयोगी पदार्थ सत्रावित होते है।
6. त्वचा 'विटामिन डी' के संश्लेषण में सहायक होती है।
7. त्वचा नर तथा मादा प्राणियों (पुरुष/स्त्री) के मध्य लैंगिक आकर्षण में सहायक होती हैं।
8. अध्यावरण शरीर को निश्चित आकार प्रदान करने में सहायक होता है। त्वचा वसा के रूप में इंजिन संचय में भी सहायक होती है।
मनुष्य की त्वचा की संरचना (Structure of Human Skin) :
शरीर अध्यावरण से घिरा रहता है। अध्यावरण त्वचा तथा इसके व्युत्पन्न (derivatives) से बनता है। मनुष्य की त्वचा पतली, शुष्क तथा रोमयुक्त (hairy) होती है। यह वसीय ऊतक द्वारा पेशियों से जुडी रहती है।
त्वचा मुख्यतया दो स्तरों से बनी होती है-
I अधिचर्म(epidermis), II चर्म (dermis)।
UP Board Class 10 Science Notes : Organic compounds, Part-IV
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I अधिचर्म (epidermis) :
इसकी उत्पत्ति भ्रूण के एक्टोडर्म (ectoderm) से होती है। यह भीतर से बाहर की ओर निम्नलिखित पाँच परतों से बनी होती है-
(i) मैलपीघी स्तर (Stratum Malpighi)
(ii) स्पाइनोसम स्तर (Stratum spinosum)
(iii) ग्रेन्यूलोसम स्तर (Stratum granulosum)
(iv) ल्यूसिड्म स्तर (Stratum lucidum)
(v) कार्नियम स्तर (Stratum corneum)|
(i) मैलपीघी स्तर (Stratum Malpighi) – यह चर्म (dermis) से लगा अधिचर्म का सबसे भीतरी स्तर होता है| इसका निर्माण स्तम्भाकार जीवित कोशिकाओं से होता है| कोशिकाओं में निरन्तर कोशिका विभाजन होते रहने से अन्य स्तरों का निर्माण होता है| मैलपिघी स्तर की कोशिकाओं में रंगा कोशिकाएँ (chromatophores) पाई जाती हैं| ये त्वचा को रंग प्रदान करती हैं|
(ii) स्पाइनोसम स्तर (Stratum spinosum) – यह मैलपिघी स्तर के बाहर स्थित होता है| इस स्तर की कोशिकाएँ बाह्य तथा भीतरी दबाव के कारण शाखान्वित दिखाई देती हैं| कोशिकाओं के प्रवर्ध परस्पर फँसकर अधिचर्म को दृढ़ता प्रदान करते हैं|
(iii) ग्रेन्यूलोसम स्तर (Stratum granulosum) - यह स्पाहनोसम स्तर के बाहर स्थित चपटी कोशिकाओं का स्तर होता है। ये कोशिकाएँ किरेटोहायलीन (Keratohyaline) प्रोटीन के कारण कणिकामय (granulated) हो जाती है।
(iv) ल्यूसिड्म स्तर (Stratum lucidum) - यह ग्रेन्यूलोसम स्तर के बाहर स्थित जलरोधी (water proof) कोशिकाओं का स्तर होता है। इन कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में किंरेटोहायलीन प्रोटीन के विबन्धन से पारदर्शी पदार्थ एलीडिन (elidin) बनता है। ये कोशिकाएँ ग्रेन्यूलोसम स्तर की कोशिकाओं की अपेक्षा अधिक चपटी होती है।
(v) कार्नियम स्तर (Stratum corneum) - यह अधिचर्म का सबसे बाहरी स्तर होता है। इसका निर्माण शल्की, पतली, मृत कोशिकाओं से होता है। कोशिकाओं का एलीडिन युक्त कोशिकाद्रव्य मृत किरेटिन (keratin) में बदल जाता है। यह स्तर रक्षात्मक होता है। किरेटिनयुक्त शल्कीय कोशिकाएँ समय-समय पर शरीर से पृथकृ होती रहती है इस क्रिया को निर्मोचन (moulting) कहते है। हथेली एवं तलुओं पर यह स्तर मोटा होता है।
II. चर्म (dermis) :
इसका निर्माण भ्रूण की मीसोडर्म (mesoderm) से होता है। यह अधिचर्म की तुलना में 2-3 गुना मोटी होती है। इसका निर्माण तन्तुमय संयोजी ऊतक से होता है। इसमें श्वेत कोलैजन तन्तु (collagen fibres), पीले इलास्टिन तन्तु (yellow elastin fibers), त्वक ग्रन्थियाँ (cutaneous glands), रोम पुटिकाएं (hair follicles), तान्त्रिक तन्तु (nerve fibers), त्वचीय स्नवेदांग (cutaneous sense receptors) जैसे पीड़ा, स्पर्श, ताप, दबाव आदि उद्दीपनग्राही एवं रक्त कोशिकाओं का जाल पाया जाता है| चर्म के नीचे वसीय स्तर (adipose tissue) इसे पेशियों से जोड़े रखता है| पशुओं के चर्म से चमड़ा तैयार किया जाता है|
त्वचा के व्युत्पन्न (Derivatives of Skin) :
इसमें निम्नलिखित व्युत्पन्न मुख्य रूप से पाए जाते हैं-
1. बाल या रोम (Hair) – यह स्तनियो का मुख्य लक्षण है। खाल या रोम का वह भाग जो त्वचा में स्थित होता है, बाल को जड़ कहलाता है। यह रोम पुटिका (hair follicle) में स्थित होता है। रोम पुटिका के आधारीय भाग में एक छिछला गडढा होता है, जिसमें रक्त केशिकाओं का गुच्छा रोम पैपिला (hair papilla) पाया जाता है। रोम पुटिका से सिबेसियस ग्रन्थि (sebaceous gland) तथा ऐरेक्टर पिल्लई (arrector pilli) पेशियाँ लगी होती हैं| पेशियों के संकुचन से बाल खड़े (रोंगटे खड़े होना) हो जाते हैं| सिबेसियस ग्रन्थि से स्त्रावित तेलिय तरल सीबम (sebum) बालों को चिकना तथा जलरोधी बनाए रखता है| बाल की जड़ जीवित होती है| बाल का जो भाग अधिचर्म से बाहर निकला होता है, रोम काण्ड (hair shaft) कहलाता है| यह मृत होता है| रोम काण्ड का केंदीय भाग मेद्युला (medulla), मध्य भाग कार्टेक्स (cortex) तथा बाहरी परत उपचर्म (cuticle) कहलाती है कार्टेक्स कोशिकाओं में उपस्थित रंगा कणिकाओं (pigmeted granules) के कारण बालों का रंग होता है|
2. त्वचीय ग्रन्थियाँ (cutaneous glands) - इनका निर्माण अधिचर्म के मैलपिघी स्तर से होता है| येबनने के पश्चात चर्म (demis) में धंस जाती हैं| ये बाहि: स्त्रावी ग्रन्थियाँ होती हैं| ये मुख्यतया निम्न प्रकार की होती है-
(i) स्वेद या पसीने को ग्रन्थियाँ (Sweat glands)- इनसे पसीना स्त्रावित होता है। यह ताप नियमन में सहायता करता है। पसीने के द्वारा अनावश्यक जल तथा उत्सर्जी पदार्थ शरीर से निष्कासित होते हैं।
(ii) सिबेसियस ग्रन्धियाँ (sebaceous glands) - ये रोम पुटिकाओ से सम्बन्धित होती हैं। इनसे तेलीय तरल सीबम स्त्रावित होता है। यह बाल तथा त्वचा को चिकना एवं जलरोधी बनाए रखता है।
(iii) स्तन ग्रन्थियाँ (Mammary glands) - यह स्तनियों की विशेषता है। पुरुष में ये अवशेषी होती है। स्त्रियों में विकसित होती है। प्रसव पश्चात् इनसे दुग्ध (milk)) का स्त्रावण होता है।
(iv) सीरुमिनस ग्रन्थियाँ (Ceruminous glands) - ये बाह्यकर्ण नलिका में पाई जाती हैं। इनसे मोम सदृश पदार्थ सीरुमिन (cerumen) स्त्रावित होता हैं। यह कर्णपटह को नम तथा मुलायम रखता।
(v) मीबोमियन ग्रन्थियाँ (Meibomiam glands) - ये नेत्र की बरौनियों की पुंटिकाओं में खुलती हैं। इनसे स्त्रावित तेलीय तरल कॉंर्निया (cornea) को नम तथा चिकना बनाए रखता है।
(vi) अश्रु या लैक्राइमल ग्रन्थि (Lacrimal gland) – प्रत्येक नेत्र के बाहरी कोण पर ऊपरी पलकों के नीचे स्थित होती है| इससे स्त्रावित जलीय तरल कार्निया को स्वच्छ रखता है|
(vii) मूलाधार ग्रन्थियाँ (Perineal glands) – ये ज़ननागों एवं गुदा के समीप स्थित होती है। इनसे विशेष गन्धयुक्त तरल स्वावित होता है जो लैंगिक आकर्षण में सहायक होता हैं।
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