भारत 2020 तक अधिकतर कार्यरत युवा वर्ग वाले देश के रुप में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो जायेगा. यहाँ 29 वर्ष तक की उम्र वाले कार्यरत युवाओं की संख्या अधिकतम है. उम्मीद है कि 2020 तक भारत श्रमशक्ति में मिलेनियल्स पीढ़ी की भागीदारी वाला सबसे बड़ा देश बन जायेगा. मॉर्गन स्टेनली रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार,भारत में 400 मिलियन से अधिक मिलेनियल्स पीढ़ी हैं जो कुल कर्मचारियों की संख्या की 46% है.
मिलेनियल्स कौन हैं?
यह एक पीढ़ी है, जो 1980 और 2000 के बीच पैदा हुई है और वर्तमान में अर्थव्यवस्था में कार्यरत है एवं देश के जीडीपी में अपना अपूर्व योगदान दे रही है. इसलिए किसी भी व्यापार का भविष्य, उनके करियर की आकांक्षाओं, कार्य के प्रति रवैया और नई प्रौद्योगिकियों के बारे में उनके ज्ञान से सीधे प्रभावित होता है. संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि वे 21 वीं सदी के कार्यस्थल की संस्कृति को पूरी तरह से परिभाषित करते हैं.

उनका महत्व क्यों है ?
कार्यबल का एक महत्वपूर्ण भाग इस उपसमूह से उभर रहा है. वे अपने घरों में कमाई करने वाले मुख्य सदस्य होते हैं.
दरअसल मिलेनियल्स हमारी अर्थव्यवस्था का इंजन है और इसलिए उनकी भलाई हमारे देश के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय होना चाहिए.
लेकिन जब हम कार्पोरेट जगत की ओर देखते हैं,तो हमारा जीवन उतना सरल नहीं होता. हमें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
नीचे कुछ ऐसे ही चुनौतियों का वर्णन किया गया है जो मिलेनियल्स के कार्यों को सीधे सीधे प्रभावित करती हैं.
1. ऑफिस पॉलिटिक्स
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू (एचबीआर) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के तहत भारत के विभिन्न उद्योगों के 18 से 34 वर्ष के बीच लगभग 1,700 लोगों से संपर्क किया गया. इन उत्तरदाताओं के अनुसार ऑफिस पॉलिटिक्स उनकी उत्पादकता कम करने वाली प्रमुख बाधाओं में से एक है. 42.3 प्रतिशत लोगों ने यह बताया कि ऑफिस पॉलिटिक्स उनके लिए तनाव और चिंता का कारण बनती है. इसके परिणामस्वरूप एकाग्रता में कमी आती है और इससे उनका कार्य प्रभावित होता है.यह
आश्चर्यजनक बात यह है कि महिलाएं ऑफिस पॉलिटिक्स से बहुत प्रभावित होती हैं तथा तनाव और अवसाद की शिकार होती हैं.
संगठनों द्वारा ऐसी समस्याओं के समाधान हेतु रास्ते तलाशने चाहिए. इसके लिए उन्हें ऐसा कुछ करना चाहिए ताकि कर्मचारी कार्यालय की गंदी राजनीति में ना तो संलिप्त हों और ना ही उससे प्रभावित हों. कर्मचारियों की इस प्रवृति से कभी कभी संस्थान को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
2. वर्क प्रेशर
एक अन्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत के 80 फीसदी से ज्यादा कर्मचारी अपने बॉस के वनिस्पत अधिक मेहनत करते हैं. यह सर्वे दिल्ली स्थित एड-टेक फर्म टैलेंट एज कंपनी द्वारा किया गया. इस सर्वे में आठ महानगरों के 1,000 से अधिक युवा पेशेवरों से सोशल मीडिया के जरिये तथा आमने सामने बात कर निष्कर्ष निकाला गया.
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले कर्मचारियों का कहना था कि वे काम पर लगभग 12 घंटे से अधिक समय बिताते है जबकि उनके वरिष्ठ अधिकारी उनकी तुलना में केवल दो प्रतिशत ही अपना समय देते हैं. खुद काम करने की बजाय वो काम करने के लिए सारा प्रेशर अपनी टीम पर देते हैं.
वर्क प्रेशर की वजह से मिलेनियल्स तनावग्रस्त हो जाते हैं जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है तथा इसका असर उत्पादकता पर पड़ता है.
3. वर्क लाइफ बैलेंस
इस सन्दर्भ में चिंता का एक मुख्य कारण वर्क लाइफ बैलेंस भी है. 2017 में रैंडस्टैड एम्प्लायर ब्रांड रिसर्च ने एक सर्वेक्षण किया जिसमें भारत के 7,500 से अधिक कर्मचारियों ने हिस्सा लिया. उनके इस सर्वेक्षण से यह साफ़ पता चलता है कि मिलेनियल्स वर्क लाइफ बैलेंस को बहुत महत्व देते हैं. लगभग 45 प्रतिशत वर्क लाइफ बैलेंस को एक चुनौती के रूप में लेते हैं तथा किसी भी नए संस्थान में जाने से पहले इस पर बहुत मंथन करते हैं.
ज्यादातर मिलेनियल्स अधिक लचीली और विविधतापूर्ण नीतियाँ चाहते हैं ताकि उनका वर्क लाइफ बैलेंस न गड़बड़ाए.
सर्वाइवल के लिए संघर्ष क्यों ?
अधिकांश मिलेनियल्स में यह कमी होती है कि उनका कम्यूनिकेशन स्किल बहुत अच्छा नहीं होता. हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू (एचबीआर) ने अपने एक सर्वेक्षण में यह बताया है कि टेक्नोलॉजी में प्रवीण तथा प्रतिभाशाली होने के बावजूद इन कुछ कारणों से वे पीछे रह जाते हैं -
1.भावनात्मक बुद्धि ( इमोशनल इंटेलिजेंस)
2.तनाव प्रबंधन, ( स्ट्रेस मैनेजमेंट )
3.दूसरे को कनविंस करने की कला ( पावर टू परसुएड)
4.विश्लेषणात्मक सोच (एनालिटिकल थिंकिंग)
वस्तुतः हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू और अन्य प्रतिष्ठित अनुसंधान कंपनियों के निष्कर्ष फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के निष्कर्षों से पूरी तरह मेल खाते हैं. इस निष्कर्ष में सॉफ्ट कम्यूनिकेशन स्किल का पर्याप्त ज्ञान न होना लाखों भारतीय कर्मचारियों के करियर विकास में प्रमुख बाधा है.
यदि काम करने वाले व्यक्तियों के इस समूह ने संचार, आत्म-जागरूकता और आत्म-प्रबंधन की कला सीख ली, तो हो सकता है कि उन्हें करियर के विकास में ऐसी चुनौतियों का सामना न करना पड़े.