भूमि अधिग्रहण अध्यादेश 2015
सरकार द्वारा आधारिक संरचना के विकास के लिए मूलभूत आवश्यकता भूमि होती है. अपनी इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा भूमि को अधिग्रहित किया जाता है. इसी प्रणाली को भूमि अधिग्रहण कहा जाता है.
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश 2015
सरकार द्वारा आधारिक संरचना के विकास के लिए मूलभूत आवश्यकता भूमि होती है. अपनी इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा भूमि को अधिग्रहित किया जाता है. इसी प्रणाली को भूमि अधिग्रहण कहा जाता है.
1894 का भूमि अधिग्रहण अधिनियम –
यह अधिनियम सरकार को विभिन्न सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए भूमि के अधिग्रहण का अधिकार प्रदान करता था. परन्तु यह अधिनियम बहुत हद तक निरंकुश था क्योंकि इसमें जिस व्यक्ति विशेष की भूमि का अधिग्रहण किया जाता था उससे अनुमति लेने का या उसे निश्चित उचित मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं था. और ना ही इसमें पुनर्वास और पुनर्स्थापन जैसी किसी प्रणाली की व्यवस्था थी.
2013 का भूमि अधिग्रहण अधिनियम –
भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 में संशोधन करते हुए सप्रंग सरकार ने 120 साल बाद नए भूमि अधिग्रहण कानून को अधिनियमित किया.
इस अधिनियम को भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, (RFCTLARR) 2013 नाम दिया गया.
इस अधिनियम को 1 जनवरी 2014 से लागू किया गया.
2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के मुख्य प्रावधान –
• 2013 के भूमि अधिग्रहण के तहत यदि भूमि को किसी सार्वजनिक और निजी भागीदारी वाले किसी उपक्रम के लिए अधिग्रहित किया जाएगा तो इसके लिए उस क्षेत्र विशेष के 70 प्रतीशत लोगों की सहमति की आवश्यकता होगी और यदि यह अधिग्रहण किसी निजी उपक्रम के लिए किया जा रहा है तो 80 प्रतीशत लोगों की सहमति की आवश्यकता होगी.
• यदि अधिग्रहित भूमि को 5 वर्षों में नहीं विकसित किया गया तो वह भूमि पुनः भूमि मालिक को लौटा दी जाएगी.
• अधिग्रहण सिर्फ बंजर भूमि पर ही होगा.
• अधिनियम के तहत पुनर्वास और पुनर्स्थापन की व्यवस्था की गई थी.
• पुनर्स्थापन भत्ते के तौर पर 50000 रुपए का प्रावधान किया गया था.
• यदि किसी भूमि के अधिग्रहण के कागजों में 5 वर्ष हो गए हैं और सरकार के पास भूमि का कब्ज़ा नहीं है और न ही भूमि मालिक को मुआवजा मिला है तो वह व्यक्ति न्यायालय जा सकता है.
• आदिवासी और अनुसूचित इलाकों में अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा और यदि अधिग्रहण होता भी है तो इसके लिए वहां जो भी ग्राम सभा या जो भी स्थानीय जन प्रतिनिधित्व ढांचा सक्रिय होगा उसके अनुमोदन के बाद ही भूमि ली जा सकेगी.
2013 के भूमि आदिग्रहण अधिनियम में संशोधन –
मई 2014 में सत्ता में राजग सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन करने का फैसला लिया. राजग सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 दिसंबर 2014 को भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013 में कुछ संशोधन को मंजूरी दी और इसे अध्यादेश के जरिये लागू करने का फैसला किया.
संशोधन के अंतर्गत –
• भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 10ए में 5 नए उद्देश्य भी जोडे गए. इसके अंतर्गत राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा उत्पादन, ग्रामीण आधार भूत संरचना, सस्ते आवासों के निर्माण, औद्योगिक गलियारे बनाने एवं सार्वजनिक-निजी परियोजनाओं पर सामाजिक उद्देश्य के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करने के वास्ते भी भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा.
• भूमि अधिग्रहण कानून पर अध्यादेश के तहत 13 कानूनों को जमीन अधिग्रहण कानून की कठोर शर्तों से बाहर किया गया. ये कानून हैं -
1.परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962
2. भारतीय ट्रामवेज अधिनियम, 1886
3. रेल अधिनियम, 1989
4. प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष कानून1958
5. पेट्रोलियम और खनिज पाइपलाइन (भूमि में उपयोगकर्ता के अधिकार अधिग्रहण) अधिनियम, 1962
6. दामोदर घाटी निगम अधिनियम, 1948
7. विद्युत अधिनियम, 2003
8. अचल संपत्ति का अधिग्रहण और पुनराधिग्रहण अधिकार अधिनियम, 1952
9. विस्थापित लोगों के लिए पुनर्वास (भूमि अधिग्रहण) अधिनियम, 1948
10.मेट्रो रेल (निर्माण कार्य) अधिनियम, 1978
11.कोयला क्षेत्र और विकास अधिनियम, 1957
12.राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956
13.भूमि अधिग्रहण (खान) अधिनियम, 1885
• संशोधन के तहत उपजाऊ और सिचाईं वाली भूमि को भी अधिग्रहित किया जा सकता है.
• भूमि लौटाने की सीमा 5 साल से बढ़ा कर परियोजना के समाप्त होने में निर्धारित किए गए समय के बराबर कर दिया गया.
• नए संशोधन के अनुसार भूमि मालिक से अनुमति लेना अब आवश्यक नहीं होगा.
9 मार्च 2015 को लोकसभा में पास हुए विधेयक में निम्न संशोधन को सम्मलित किया गया था –
1. संशोधन के तहत अब निजी अस्पतालों और निजी शिक्षण संस्थानों को सार्वजनिक प्रयोजन की परिभाषा के अंतर्गत नहीं शामिल किया जाएगा.
2. सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा उत्पादन, ग्रामीण बुनियादी ढांचे सहित विद्युतीकरण, औद्योगिक गलियारे और सरकार के स्वामित्व वाली जमीन पर बनने वाली सार्वजनिक-निजी योजनाओं के ऊपर से सामाजिक प्रभाव आकलन और बंजर भूमियों के अधिग्रहण की बाध्यता समाप्त कर दी है.
3. संशोधन में सरकार को बंजर भूमि का सर्वेक्षण करना होगा और उसका रिकॉर्ड भी बनाना होगा.
4. प्रभावित परिवार के कम से कम एक सदस्य को अनिवार्य रोजगार सुनिश्चित करने के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है.
5. संशोधन के अनुसार भूमि अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास (लार) प्राधिकरण जिस जिले में अधिग्रहण हुआ है उस जिले के जिला अधिकारी की अनुमति के बाद ही सुनवाई करेगी और सुनवाई उस जिले में ही होगी.
6.नए संशोधन के अनुसार 5 वर्ष की समय अवधि की बाध्यता को तब नहीं लागू किया जाएगा यदि भूमि भौतिक रूप से सरकार के पास नहीं है और मालिक को मुआवजा नहीं मिला है.
विश्लेषण-
एक आकलन के अनुसार देश का 90 फीसदी कोयला आदिवासी इलाकों में है. पचास प्रतिशत के आस पास प्रमुख खनिजों के स्रोत वहीं हैं और कई हजार लाख मेगावाट की ऊर्जा संभावनाएं भी वहीं बिखरी हुई हैं. बढती जनसंख्या की माँग और उर्जा खपत को पूरा करने के लिए उन संसाधनों का प्रयोग करना अति आवश्यक है.
ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्ति को भी विकास से दूर नहीं रखा जा सकता और उन्हें भी राष्ट्रीय राजमार्ग, सड़कों,घरों , अस्पतालों और रेलवे लाइनों जैसी बुनियादी सुविधाओं से जोड़ना जरुरी है और इन सबके लिए भूमि एक बुनियादी जरूरत है.
यदि कानून में पुनर्वास, पुनर्स्थापन और रोजगार की उचित व्यवस्था की जाए तो यह अधिनियम नक्सल समस्या का एक बड़ा हल बन सकता है क्योंकि अब तक नक्सलवाद पनपने का मुख्य कारण आदिवासी इलाकों में अनैतिक और अवैध कब्जे, विस्थापन, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव ही था.
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