ईश्वरचंद विद्यासागर: विधवा पुनर्विवाह के प्रवर्तक

सामाजिक सुधार आन्दोलन, जो देश के सभी भागों और सभी धर्मों तक विस्तृत था, वास्तव में धार्मिक सुधार आन्दोलन भी था| महान विद्वान और सुधारक ईश्वर चंद विद्यासागर के विचारों में भारतीय और पश्चिमी मूल्यों का सुन्दर समन्वय था| वे उच्च नैतिक मूल्यों में विश्वास करते थे और निर्धनों के प्रति उदार भाव से सम्पन्न एक महान मानववादी विचारक थे| उनकी महान शिक्षाओं के लिए कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज,जिसके वे कुछ वर्षों के लिए प्रिंसिपल रहे थे, ने उन्हें ‘विद्यासागर’ की उपाधि प्रदान की थी.
Ishwar Chandra Vidyasagar
Ishwar Chandra Vidyasagar

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म 1820 ई. में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने संस्कृत के छात्र के रूप में एक बेहतरीन उपलब्धि हासिल की थी| उनकी महान शिक्षाओं के लिए कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज,जिसके वे कुछ वर्षों के लिए प्रिंसिपल रहे थे,ने उन्हें ‘विद्यासागर’ की उपाधि प्रदान की|

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर अपने सादगीपूर्ण रहन-सहन,निर्भीक स्वभाव,आत्म-बलिदान के भाव,शिक्षा के प्रति अपने समर्पण-भाव के कारण दलितों व वंचितों के बीच एक महान व प्रसिद्ध व्यक्तित्व के रूप में उभरे| उन्होंने संस्कृत कॉलेज में आधुनिक पश्चिमी विचारों का अध्ययन आरम्भ कराया और तथाकथित निम्न जाति के छात्रों को संस्कृत पढ़ने हेतु कॉलेज में प्रवेश दिया|

पहले संस्कृत कॉलेज में केवल परंपरागत विषयों का ही अध्ययन होता था| संस्कृत के अध्ययन पर भी ब्राह्मणों का एकाधिकार था और तथाकथित निम्न जातियों को संस्कृत के अध्ययन की अनुमति नहीं थी| उन्होंने बंगाली भाषा के विकास में भी योगदान दिया था और इसी योगदान के कारण उन्हें आधुनिक बंगाली भाषा का जनक माना जाता है| वे कई समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं के साथ भी गंभीरता से जुड़े हुए थे और सामाजिक सुधारों की वकालत करने वाले कई महत्वपूर्ण लेख भी लिखे|

उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान विधवाओं की स्थिति में सुधार और स्त्री शिक्षा का प्रसार था|विधवा-पुनर्विवाह को क़ानूनी वैधता प्रदान करने वाले अधिनियम को पारित कराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी| 1856 ई. में कलकत्ता में हुए प्रथम विधवा-पुनर्विवाह में वे व्यक्तिगत रूप से शामिल हुए थे| विधवा-पुनर्विवाह एवं स्त्री शिक्षा के लिए किये जाने वाले प्रयासों के कारण रूढ़िवादी हिन्दुओं द्वारा उन पर हमले भी किये गए|

वर्ष 1855 ई. में जब उन्हें स्कूल-निरीक्षक/इंस्पेक्टर बनाया गया तो उन्होंने अपने अधिकार-क्षेत्र में आने वाले जिलों में बालिकाओं के लिए स्कूल सहित अनेक नए स्कूलों की स्थापना की थी| उच्च अधिकारियों को उनका ये कार्य पसंद नहीं आया और अंततः उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया| वे बेथुन के साथ भी जुड़े हुए थे ,जिन्होनें 1849 ई. में कलकत्ता में स्त्रियों की शिक्षा हेतु प्रथम स्कूल की स्थापना की थी|

विचार और शिक्षाएं

• उन्होंने संस्कृत कॉलेज में आधुनिक पश्चिमी विचारों का अध्ययन आरम्भ कराया था.

• विधवा-पुनर्विवाह एवं स्त्री शिक्षा के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया था.

• विधवा-पुनर्विवाह को क़ानूनी वैधता प्रदान करने वाले अधिनियम को पारित कराने वालों में एक नाम उनका भी था|

• वे विधवा-पुनर्विवाह के प्रबल समर्थक थे|

• वे कई समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं के साथ भी गंभीरता से जुड़े हुए थे और सामाजिक सुधारों की वकालत करने वाले कई महत्वपूर्ण लेख भी लिखे|

• उन्होंने बंगाली भाषा के विकास में भी योगदान दिया था और इसी योगदान के कारण उन्हें आधुनिक बंगाली भाषा का जनक माना जाता है|

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