कुमारी कंदम की अनकही कहानी: हिंद महासागर में मानव सभ्यता का उद्गम स्थल

क्या आप जानते हैं कि आधुनिक मानव सभ्यता का उद्गम स्थल भारतीय उपमहाद्वीप में ‘कुमारी कंदम’ नाम के एक द्वीप से हुआ माना जाता है I हालाँकि यह महाद्वीप अब हिन्द महासागर में कई सो साल पहले विलुप्त हो चुका है I इस महाद्वीप को ‘Lemuria’ नाम से भी जाना जाता है | कुछ लोग इस सभ्यता को रावण के साम्राज्य से जोड़कर भी देखते हैं |

तमिल लेखकों के अनुसार आधुनिक मानव सभ्यता का विकास, अफ्रीका महाद्वीप में ना होकर हिन्द महासागर में स्थित ‘कुमारी कंदम’ नामक द्वीप में हुआ था | हालाँकि कुमारी कंदम या लुमेरिया  को हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी काल्पनिक सभ्यता कहा जाता है | इसे कुमारी नाडु के नाम से भी जाना जाता है | कुछ लेखक तो इसे रावण की लंका के नाम से भी जोड़ते हैं, क्योंकि दक्षिण भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला राम सेतु भी इसी महाद्वीप में पड़ता है | इस राम सेतु के अस्तित्व को तो नासा ने भी सिद्ध कर दिया है | इसलिए अब शक की संभावना कम ही बनती है |

कुमारी कंदम या लुमेरिया का इतिहास:

तमिल साहित्य के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में कुमारी कंदम नाम की एक तमिल सभ्यता थी , जो कि अब हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी है | इसी महाद्वीप को Lemuria  नाम इंग्लिश भूगोलवेत्ता फिलिप स्क्लाटर (Philip Sclater) ने 19 वीं सदी में दिया था | सन 1903  में  V.G. सूर्यकुमार ने इसे सर्वप्रथम Kumarinatu" ("Kumari Nadu") या कुमारी क्षेत्र का नाम दिया था | कहा जाता है की यह कुमारी कंदम ही रावण के देश ‘लंका’ का विस्तृत स्वरुप है जो कि वर्तमान भारत से भी बड़ा था ।

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कुमारी कन्दम की शुरूआती खोज (Initial Exploration of Kumari Kandam ):

हिन्द महासागर में एक बहुत बड़े महाद्वीप की संभावना को सबसे पहले ब्रिटिश भूगोलवेत्ता फिलिप स्क्लाटर (Philip Sclater) ने बताया था | उन्होंने मेडागास्कर और भारत में बहुत बड़ी मात्रा में वानरों के जीवाश्मों (Lemur Fossils) के मिलने पर यहाँ एक नयी सभ्यता के होने का अंदेशा व्यक्त किया था | उन्होंने ही इसे ‘लेमुरिया ‘ नाम दिया था | उन्होंने इस विषय पर एक किताब भी लिखी जिसका नाम ‘The Mammals of Madagascar’ था, जो कि 1864  में प्रकाशित हई थी |

कुमारी कंदम का विस्तार कहां तक था ?

इसका क्षेत्र उत्तर में कन्याकुमारी से लेकर पश्चिम में ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट और मेडागास्कर तक फैला था |

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भूगोलवेत्ता वासुदेवन के अनुसार ‘कुमारी मॉडल’

भूगोलवेत्ता A.R. वासुदेवन के उन्नत अध्ययन के अनुसार, मानव सभ्यता का विकास अफ्रीका महाद्वीप में ना होकर कुमारी हिन्द महासागर के ‘कुमारी नामक' द्वीप पर हुआ था | उनके अध्ययन कहते हैं कि आज से लगभग 14,000 साल पहले जब कुमारी कंदम जलमग्न हो गया तो लोग यहाँ से पलायन कर अफ्रीका, यूरोप, चीन सहित पूरे विश्व में फैल गए और कई नयी सभ्यताओं को जन्म दिया |

                                                                                       (पलायन को दर्शाता एक चित्र)

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                                                                                      Image source:www.evoanth.net

आदम के पुल से कुमारी कंदम सभ्यता का सम्बन्ध:

भारत के समुद्र विज्ञान विभाग के शोध के अनुसार 15,000 साल पहले समुद्र का जल स्तर आज के स्तर से 100 मीटर नीचे था और 10,000 साल पहले लगभग 60 मीटर नीचे था, इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि उस समय भारत के दक्षिणी हिस्से को श्रीलंका से जोड़ने के लिए एक पुल का अस्तित्व रहा हो | परन्तु जैसे-जैसे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हई, यह पुल पानी में डूब गया |

इस पुल का अस्तित्व आज भी भारत से 18 मील दूर स्थित ‘पाक की खाड़ी’ में ‘आदम के पुल’ (जिसे राम सेतु भी कहा जाता है) के रूप में है |

यह पुल चूना पत्थर रेत, गाद और छोटे-छोटे कंकडों तथा बलुआ पत्थरों से मिलकर बना है | शायद इसी पुल का विवरण धार्मिक ग्रन्थ रामायण में मिलता है जिसे भगवान राम ने सीता जी की खोज करने के लिए अपनी वानर सेना (ध्यान रहे कि Philip Sclater को अपनी खोज के दौरान वानरों के अवशेष मिले थे) के द्वारा बनवाया था |

(भगवान राम, वानरों की सहायता से राम सेतु का निर्माण कराते हुए)

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(पाक की खाड़ी में विद्यमान राम सेतु, ऐसा माना जाता है कि यह वही सेतु है जिसका निर्माण श्रीराम ने कराया था)

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Image source:newsdekh.com

इस सभ्यता के पतन के क्या कारण थे ?

ऐसा माना जाता है कि हिम युग के अंतिम सालों में तापमान बढ़ना शुरू हो गया था जिसके कारण ग्लेशियरों का पिघलना शुरू हुआ और समुद्र का जल स्तर बहुत बढ़ गया और अंततः यह सभ्यता पानी में डूब गयी |

(हिम युग की तस्वीर)

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(कुमारी कंदम के हिन्द महासागर में डूबे हुए अवशेष)-

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(पानी में डूबा हुआ महल का टूटा हुआ एक हिस्सा और तैरती हुई मछलियाँ)

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(पानी के अन्दर लेटे हुए भगवन की मूर्ति)

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(पानी में डूबा हुआ महल, जिसके आस पास मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है)

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तमिल लेखकों के अनुसार-

1. जब कुमारी कंदम जल मग्न हुआ तो उसका 7,000 मील का क्षेत्र 49 टुकड़ों में बंट गया था |

2. तमिल पुनर्जागरण वादियों ने इसे संस्कृत और तमिल साहित्य के आधार पर पांडियन महापुरुषों के साथ जोड़ा है | ये लोग मानते है कि कुमारी कंदम के पांडियन राजा का पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन था |

इस प्रकार कुमारी कंदम के समर्थकों के तर्कों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जब यह महाद्वीप, हिम युग के अंत  में समुद्र में डूबा तो लोगों ने अलग-अलग जगहों पर शरण ली और पूरी दुनिया में कई नयी सभ्यताओं (यूरोप,अफ्रीका, भारत, मिश्र, चीन इत्यादि) का विकास हुआ I इस प्रकार अब यह कहना गलत नहीं होगा कि आधुनिक मानव सभ्यता का विकास अफ्रीका महाद्वीप (जैसी कि मान्यता है) में न होकर कुमारी कंदम में हुआ था |

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