कृषि और ग्रामीण विकास के लिए नीतियां: एक अवलोकन
कृषि उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने हेतु राज्यों के प्रयासों में सुधार और दक्षता लाने के लिए 2008 में कृषि मैक्रो मैनेजमेंट (एमएमए) 2008 में संशोधन किया गया। किसानो को अधिक खाद्यान्न के उत्पादन के लिए प्रेरित करने हेतु केंद्र सरकार ने 1966-1967 से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP Policy) नीति की शुरूआत की है । यह नीति प्रत्येक फसल के लिए किसानों को न्यूनतम मूल्य की गारंटी देती है। दूसरी ओर, सरकार ने ग्रामीण गरीबों के लिए महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसी योजनाओं की शुरूआत की है।
भारत में ग्रामीण क्षेत्र में नियोजन अवधि के दौरान शुरू की गईं महत्वपूर्ण नीतियां इस प्रकार हैं:
तकनीकी उपाय: जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने के उपायों की शुरूआत की गई और औद्योगिक विकास के लिए भी एक आधार प्रदान किया गया। इसमें खेती की उत्पादकता में वृद्धि करने वाले व्यापक और गहन दोनों उपाय शामिल हैं। किसानों के लिए, सिंचाई सुविधाएं प्रदान की गईं जिससे वे बड़े पैमाने पर कृषि अयोग्य भूमि को कृषि के लिए तैयार कर सकें। बाद में, 1966 में नई कृषि नीति को देश के चुने हुए क्षेत्रों में एक पैकेज कार्यक्रम के रूप में पेश किया गया। इस कार्यक्रम को चालू रखने तथा बड़े पैमाने पर एक विस्तृत भूभाग में इसका विस्तार करने, उच्च गुणवत्ता के बीज (उत्पादकता में वृद्धि लाने के) लिए कई कदम उठाए गए। अर्थव्यवस्था के भीतर उर्वरकों और कीटनाशकों तथा जरूरत के अनुसार घरेलू उत्पादन में आयात आवश्यक है। खाद्यान्न उत्पादन जो कि 1950-51 में केवल 50.8 मिलियन टन था वह 2011-12 में 252.6 मिलियन टन पहुंच गया है।
भूमि सुधार: मध्यस्थों को समाप्त करने के लिए देश में भूमि सुधार उपाय शुरू किए गए थे। इसके तहत निम्न कदमों को उठाया गया: (i) बिचौलियों का खात्मा (Ii) (क) किरायदारों द्वारा जमींदारों को भुगतान किए जाने वाले किराए के लिए काश्तकारी सुधार (ख) किरायेदारों के कार्यकाल की सुरक्षा, और (ग) किरायेदारों को स्वामित्व का अधिकार प्रदान करना, और (iii) भूमिहीन मजदूरों और सीमांत किसानों के बीच वितरण के लिए भूमि की खरीद हेतु जुताई योग्य भूमि का अधिरोपण।
चकबंदी व्यवस्था को लागू करना : कृषि और उपखंड तथा स्वामित्व वाली भूमि के विखंडन को रोकने के लिए चकबंदी व्यवस्था को लागू किया गया। भारतीय कृषि नीति ने सहयोग और जोत के समेकन के कार्यक्रमों की शुरूआत की। बाद में कार्यक्रमों का लक्ष्य उन जगहों पर केंद्रित किया जहां गांव में एक किसान की अपनी जमीन विभिन्न स्थानों पर है और उसे एक ही जगह पर उसकी पूरी जमीन के बराबर या उसकी जमीन कीमत के अनुसार जमीन प्रदान की गई।
योजना बनाने में लोगों की भागीदारी सुनिश्चत करने के लिए संस्थानों की भागीदारी: छोटे और सीमांत किसानों को संयुक्त खेती करने के लिए एक साथ लाना कहानी का केवल आधा भाग है। इसे ध्यान में रखते हुए 1952 में देश में सामुदायिक विकास कार्यक्रम शुरू किया गया। नियोजन प्रक्रिया में आम जनता की भागीदारी (और राजनीतिक निर्णय लेने) को प्रोत्साहित किया गया Iएक अन्य कार्यक्रम लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का कार्यक्रम था, जिसे अक्सर पंचायती राज के रूप में जाना जाता था।
संस्थागत ऋण: किसानों को संस्थागत ऋण सुविधाएं प्रदान करने के विस्तार करने हेतु सन 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की भी स्थापना की गई थी। इसके परिणाम के रूप में, उन साहूकारों का वर्चस्व तेजी से घटता गया जो किसानों का शोषण करते थे। वर्तमान में कृषि ऋण वितरण 2015-16 में 8.5 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है।
खरीद और समर्थन मूल्य: किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करना ताकि वे अधिक से अधिक फसलों को उगाने के लिए प्रेरित हो सकें।
कृषि पर इनपुट सब्सिडी: सरकार किसानों को सिंचाई, उर्वरक और बिजली जैसे कृषि आदानों पर भारी सब्सिडी प्रदान करती है।
खाद्य सुरक्षा प्रणाली: उपभोक्ताओं को सस्ते और रियायती दरों पर खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं को प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने योजना अवधि के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के रूप में एक विस्तृत खाद्य सुरक्षा प्रणाली का निर्माण किया।
ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम: सरकार ने चौथी पंचवर्षीय योजना के बाद से कई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की शुरूआत की । उदाहरण स्वरूप लघु कृषक विकास एजेंसी (SFDA), सीमांत किसान और कृषि श्रम विकास एजेंसी (MFAL), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP),ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम (RLEGP), जवाहर रोजगार योजना (JRY), जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (JGSY), संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाई), राष्ट्रीय कार्य खाद्य कार्यक्रम (NFFWP), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA), आदि।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY): राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शुरूआत 2007-08 में की गई थी जिसका बजट ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 25 हजार करोड़ रुपये था। इसका मुख्य लक्ष्य ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राज्यों को कृषि और संबंधित क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना था ताकि कृषि क्षेत्र में 4 फीसदी की विकास दर हासिल की जा सके।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन भारत सरकार की एक फसल विकास योजना है जिसका लक्ष्य मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करना और वर्ष 2011-12 के अंत तक क्रमश: चावल, गेहूं और दालों का 10, 8 और 2 लाख टन अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त करना है। इस योजना को 2007 में शुरू किया गया ता जिसका मंजूरी परिव्यय 2007-08 से 2011-12 तक की अवधि के लिए 4,883 करोड़ रूपये था। राज्य के औसत से नीचे गेहूं / चावल की उत्पादकता के साथ जिलों पर ध्यान केंद्रित करना मिशन का मुख्य लक्ष्य था।
कृषि मैक्रो मैनेजमेंट- कृषि मैक्रो मैनेजमेंट (एमएमए) एक केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में से एक है, जिसकी स्थापना 2000-01 में की गई थी। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि केन्द्र से राज्यों को मिलने वाली सहायता सही तरीके से कृषि के विकास के लिए खर्च की जा सके। योजना को शुरू करने के साथ, इस योजना में 27 केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम शामिल है जो सहकारी फसल उत्पादन कार्यक्रम (चावल, गेहूं, मोटे अनाज, जूट, गन्ना और के लिए), जलग्रहण (वाटरशेड) विकास कार्यक्रम (वर्षा सिंचित क्षेत्रों, नदी घाटी परियोजनाओं / बाढ़ प्रवण नदियों के लिए राष्ट्रीय वाटरशेड विकास परियोजना), बागवानी उर्वरक, मशीनीकरण और बीज उत्पादन कार्यक्रमों से संबंधित है। वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) की शुरूआत के साथ, दस योजनाओं को बागवानी विकास से संबंधित योजना के दायरे से बाहर रखा गया है। वर्ष 2008-09 में कृषि योजना के मैक्रो मैनेजमेंट को संशोधित किया गया तांकि कृषि उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने की दिशा में कार्य हो सके।
• देश के पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रांति का विस्तार करने और शुष्क भूमि क्षेत्रों को विकसित करने के प्रयास के तहत सातवीं पंचवर्षीय योजना में दो विशिष्ट कार्यक्रमों की शुरुआत की गई:
- विशेष चावल उत्पादन कार्यक्रम
- वर्षा पर निर्भर रहने वाली खेती के लिए राष्ट्रीय संग्रहण विकास कार्यक्रम।
• आयात को कम करने हेतु तिलहन का उत्पादन बढ़ाने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए केंद्र सरकार ने 1986 में तिलहन पर प्रौद्योगिकी मिशन की शुरुआत की थी। बाद में 1990-91, 1992 और 1995-96 में क्रमश: दलहन, पाम तेल और मक्का को भी मिशन के दायरे में लाया गया।
• 1996-97 के दौरान एक एकीकृत त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य कुछ अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने में राज्यों को ऋण देकर उनकी मदद करना था। 1996-97 से लेकर 31 नवंबर 2011 तक केंद्रीय ऋण सहायता / अनुदान के रूप में एआईबीपी के तहत 50381 करोड़ रुपये जारी किये जा चुके हैं।
• फसल बीमा के दायरे में और अधिक फसलों को लाने की मांग को पूरा करने, इसके दायरे का विस्तार कर सभी किसानों को इसके तहत लाने (दोनों ऋणी और गैर-ऋणी),और बीमा की इकाई क्षेत्र को कम करने के लिए सरकार ने वर्ष 1999-2000 में रबी सीजन से देश में 'राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) की शुरूआत की। योजना के तहत सभी खाद्य फसलों (अनाज और दालों), तिलहन और वार्षिक बागवानी / वाणिज्यिक फसलों को शामिल करने का निर्णय लिया गया। फसल बीमा योजना में आगे सुधार के उद्देश्य के साथ, संशोधित एनएआईएस (MNAIS) रबी 2010-11 के सीजन से देश के 50 जिलों में पायलट परियोजना के आधार पर कार्यान्वयनित है।
• किसानों को अल्पकालिक ऋण के लिए उपयोग की सुविधा प्रदान करने के लिए 1998-99 में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना शुरू की गई थी। इस योजना ने काफी लोकप्रियता हासिल की है और इसका कार्यान्वयन देश भर में 27 वाणिज्यिक बैंक, 378 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक / राज्य सहकारी बैंक और 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक कर रहे हैं।
• आरआईडीएफ के अतिरिक्त, ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए 2005 में एक और महत्वपूर्ण पहल भारत निर्माण कार्यक्रम की घोषणा की गई। यह कार्यक्रम बुनियादी ढांचे के छह घटकों को कवर करता है: सिंचाई, ग्रामीण सड़कें, ग्रामीण आवास, ग्रामीण जल आपूर्ति, ग्रामीण विद्युतीकरण और ग्रामीण टेलीफोन। इसके उद्देश्य इस प्रकार हैं: (a)सिंचाई: 10 लाख हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का निर्माण करना। (b) ग्रामीँण सड़कें; 1000 से ऊपर की सभी आबादी वाले गांवो और सभी बारहमासी सड़कों के साथ (पहाड़ी / जनजातीय क्षेत्रों में 500) सभी को बस्तियों (66,802) से जोड़ना। (c) ग्रामीण आवास - ग्रामीण गरीबों के लिए 60 लाख घरों का निर्माण करना। (d) ग्रामीण जल आपूर्ति - सभी बस्तियों (55,067) को पेयजल उपलब्ध कराना और पानी की सुविधा से महरूम बस्तियों का पता लगाना; (e) ग्रामीण विद्युतीकरण - जहां बिजली नहीं हैं उन गांवों (1,25,000) में बिजली पहुंचाना और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे 2.3 करोड़ परिवारों को इससे जोड़ना; तथा (f) ग्रामीण टेलीफोन - शेष गांवों (66,822) को सार्वजनिक टेलीफोन की सुविधा से जोडना।