दुनिया के ये हैं ऐसे कानून जिन्हें अपनाकर भारत बन सकता है विकसित देश

भारत की अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है और अब यह दुनिया की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है लेकिन यहाँ अभी भी ऐसे कई कानून हैं जो कि इसे विकासशील देश से विकसित देश की श्रेणी में नही पहुँचने दे रहे हैं | ऐसे ही कानूनों की चर्चा इस लेख में की गयी है |

भारत की अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है और अब यह दुनिया की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है लेकिन यहाँ अभी भी ऐसे कई कानून हैं जो कि इसे विकासशील देश से विकसित देश की श्रेणी में नही पहुँचने दे रहे हैं | ऐसे ही कानूनों की चर्चा इस लेख में की गयी है |

1. सिंगापुर में अपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों की संसदीय उम्मीदवारी रद्द कर दी जाती है |

नागरिकता और मतदान के लिए न्यूनतम उम्र के अलावा सिंगापुर, कनाडा और कुछ अन्य देशों में संसदीय चुनाव के लिए स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों की आवश्यकता होती है| यहां जिस व्यक्ति को एक वर्ष से अधिक जेल की सज़ा हो चुकी होती है, उसे संसदीय चुनाव से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है| इसलिए यहां की संसदों में हमेशा अच्छी छवि के लोग चुनकर जाते हैं | अगर भारत में यह क़ानून हो जाए तो देश का भला हो जाएगा|

भारत में स्तिथि इस प्रकार है :

भारत में 2014 के लोक सभा चुनाव के हिसाब से 543 चुने गए संसद सदस्यों में से 186 (34 प्रतिशत) आपराधिक छवि के हैं जबकि 2009 के चुनाव में यह आंकड़ा 158 (30 प्रतिशत) था और तो और इनमे कुछ लोगों पर तो हत्या और बलात्कार जैसे संगीन आरोप भी हैं | यह सभी आरोप इन लोगों ने अपने चुनावी हलफनामों में स्वीकार भी किये हैं | सबसे शर्मनाक बात यह है कि ये लोग आज भी संसद की कार्यवाही में भाग लेते हैं |

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2. बाल श्रम क़ानून:

बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं| यदि इनका विकास नही हुआ तो देश का विकास नही होगा | जर्मनी में14 वर्ष से कम उम्र के  बच्चों की सुरक्षा के लिए बहुत ही कठोर श्रम कानून हैं | भारत में बाल श्रम के खिलाफ़ बच्चों की रक्षा करने के लिए कई क़ानून हैं, लेकिन ये कानून दृढ़ता और सख़्ती से लागू नही किये जा सकने के कारण बाल श्रम को रोकने में नाकामयाब रहे हैं | अगर भारत को भविष्य में विकसित देश का दर्जा प्राप्त करना है तो जर्मनी और दुनिया के अन्य  विकसित देशों की तरह सख्त बल श्रम क़ानून बनाने और लागू करने होंगे|

एक अनुमान के मुताबिक भारत में कुल श्रम शक्ति का लगभग 3.6% हिस्सा 14 साल से कम उम्र के बच्चों का है| इनकी संख्या 43 लाख से लेकर एक करोड़ तक बताई जाती है | अमेरिका, भारत से भेजे जाने वाले कई उत्पादों को इसलिए लेने से मना कर देता है क्योंकि वह मानता है कि इन उत्पादों में बल श्रम का प्रयोग किया गया है | यह एक झूठा आरोप है जिससे भारत के व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ता है |

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3. श्रम क़ानून:

फ़्रांस में एक कर्मचारी के लिए हफ्ते में 35 घंटे कम करना अनिवार्य है और काम के सिलसिले में 6 बजे के बाद कोई फोन या ईमेल करना गैर कानूनी है | लेकिन भारत में सरकार के श्रम कानूनों के हिसाब से तो प्रत्येक कर्मचारी को 8 घंटे/दिन काम करना ही है लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में प्रत्येक कर्मचारी प्रतिदिन 9 घंटे से लेकर 13 घंटे तक कार्य करता है |

काम के इन्ही ज्यादा घंटों की वजह से भारत में काम करने वाले कर्मचारी अपने जॉब से खुश नही रहते है जिसका सीधा नकारात्मक प्रभाव (कम उत्पादकता, खराब क्वालिटी का काम) उनके काम में देखने को मिलता है |

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4. नि:शुल्क शिक्षा:

चेक गणराज्य अपने देश में हर स्तर के नागरिकों के लिए नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराता है. हालांकि, भारत में भी नि:शुल्क शिक्षा का प्रावधान है लेकिन यह केवल प्राथमिक शिक्षा तक ही सीमित है | भारत में उच्च शिक्षा के अधिक महंगे होने के कारण केवल 10 % बच्चे ही इसे प्राप्त कर पाते हैं जबकि चीन में यह आंकड़ा 22% है | अतः अगर भविष्य में भारत को विकसित देश बनना है तो रक्षा और विकास पर अधिक खर्च, शिक्षा पर अधिक खर्च करना होगा ताकि देश को जरूरत के हिसाब से पढ़े लिखे लोग मिल सकें | भारत अपने सकल घरेलु उत्पाद का लगभग 3.8% शिक्षा पर खर्च करता है जो कि विकसित देशों की तुलना में बहुत ही कम है |

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5. स्वच्छता का कानून:

ऑस्ट्रेलिया में सड़कों और सार्वजनिक जगहों की साफ़-सफ़ाई को बनाये रखने के लिए यह कानून बनाया गया है कि इन जगहों पर जिसका कुत्ता पॉटी करता है उसी व्यक्ति को उस जगह की सफाई करनी होगी अन्यथा उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जायेगी | लेकिन भारत में कुत्ते की पॉटी की चिन्ता कौन करता है जबकि यहाँ आज भी 60% जनसंख्या खुले में शौंच करती है जिसके कारण बहुत सी खतरनाक बीमारियों का जन्म होता है इस कारण लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा दवाओं पर ही खर्च कर देते हैं |

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6. प्राकृतिक प्रकाश का अधिकार:

इंग्लैंड के 'Right to Light' क़ानून के अनुसार मकान का मालिक पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश का हक़दार है| अगर कोई नया मकान/संरचना, पुरानी संरचना के प्रकाश को रोकती है, तो यह पूरी तरह से गैर-क़ानूनी है|

लेकिन भारत में ऐसा कोई कानून नही है और तो और यहाँ पर तो इस बात की होड़ होती है कि अपना नया मकान पडोसी के मकान से ऊँचा होना ही चाहिए | इसका नुकसान यह होता है पुराने मकान वाले को पर्याप्त मात्रा में रोशनी नही मिल पाती है और जिसका परिणाम, उसके बच्चों की आँखों की रोशनी कम हो जाना और विटामिन D की कमी के रूप में होता है |

7. इको-फ्रेंडली पहल:

फ्रांस में छतों के ऊपरी भाग को ढंक कर रखने का क़ानून है | पर्यावरण के लिहाज़ से धरती को हरा-भरा बनाए रखने के लिए फ्रांस ने हाल ही में क्रांतिकारी कदम उठाते हुए एक नया क़ानून लागू किया है, जिसमें हर नए भवन संरचना की छत के ऊपरी भाग को ढंक कर रखना अनिवार्य है|

हालांकि यह आदत भारतीयों में भी पाई जाती है लेकिन बहुत ही कम लोगों में | अगर भारत में भी इस तरह का कानून बना दिया जाता है तो यहाँ पर गर्मी के मौसम में बिजली की खपत को कम किया जा सकता है और साथ ही इसका सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण संतुलन के रूप में देखने को मिलेगा |

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8. समलैंगिक रिश्तों को कानूनी मान्यता देना:

समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन और रोमांसपूर्वक रूप से आकर्षित होना है। वे पुरुष, जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें "पुरुष समलिंगी" या गे और जो महिला किसी अन्य महिला के प्रति आकर्षित होती है उसे भी गे कहा जा सकता है लेकिन उसे आमतौर पर "महिला समलिंगी" या लैस्बियन कहा जाता है। जो लोग महिला और पुरुष दोनो के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें उभयलिंगी कहा जाता है | विश्व के 21 देशों ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता दे दी है| कुछ देशों के नाम हैं: नीदरलैंड, बेल्जियम, कनाडा, स्पेन,नॉर्वे, ब्राजील, इंग्लैंड और वेल्स, फ्रांस और न्यूजीलैंड |

लेकिन भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखा गया है जिससे भारत के एक बहुत बड़े पढ़े लिखे कामकाजी वर्ग को काम करने से रोका गया है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति या महिला अपने समलैंगिक रिश्तों के बारे में सभी को बता देता/देती है तो उसको नौकरी नही मिलती या नौकरी से निकाल दिया जाता है | इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ता है | जुलाई 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेक्शन 377 या समलैंगिक सम्बंधों को कानूनी मान्यता दे दी थी लेकिन दिसंबर 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून को बदल दिया और कहा कि इस पर निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ "संसद" का है, न्यायालय का नही |

 

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9. सट्टा को कानूनी मान्यता देना :

पूरी दुनिया में सट्टा बाजार का आकर 60 अरब डॉलर का अनुमानित किया जाता है | विश्व के बहुत से देशों में सट्टा को कानूनी मान्यता प्राप्त है और वहां की सरकारें इस पर टैक्स लगाकर अच्छी कमाई भी करती है लेकिन भारत में सट्टा बाजार को कानूनी वैद्यता प्राप्त नही है हालांकि गोवा में कसीनो को कानूनी मान्यता प्राप्त है और वहां की सरकार को साल 2013  में 135 करोड़ की कमाई भी हुई थी | एक अनुमान के मुताबिक भारत का ऑनलाइन सट्टा बाजार 5 अरब डॉलर का हो सकता है जिससे सरकार को कर के रूप में भारी रकम मिल सकती है |

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10. दो बच्चे की नीति:  एक बच्चा नीति या एक संतान नीति चीनी जनवादी गणराज्य में परिवार नियोजन की नीति थी। चीन ने अपनी बढती जनसंख्या को काबू में करने के लिए 1970 के दशक में इस नीति को लागू किया था | इसके अनुसार नगरीय दंपतियों को एक और ग्रामीण दंपतियों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति थी। इस नियम का उल्लंघन करने वाले दंपतियों का कई सालों का वेतन काटने और उन्हें जेल भेजने तक का प्रावधान था । लेकिन जब चीन ने इस नीति के कारण अपनी जनसंख्या वृद्धि दर को काबू में कर लिया तो उसने "हम दो हमारे दो" की नीति पर 2013 से अमल शुरू कर दिया है | अब अगर भारत अपनी वर्तमान जनसंख्या वृद्धि दर को जारी रखता है तो 2022 तक भारत विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश होगा | यह एक ऐसी उपलब्धि होगी जिस पर किसी भी भारतीय को गर्व नही होगा क्योंकि भारत में बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, देश के संसाधनों पर दबाव बहुत अधिक बढ़ जायेगा|

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