ध्वनि प्रदूषण
तेज विक्षोभी ध्वनि को वातावरण में इसके विपरीत प्रभाव का अनुमान लगाये बगैर उत्पन्न करने को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। सबसे ज्यादा बाहरी शोर का स्रोत दुनिया भर में मुख्य रूप से मशीनों और परिवहन प्रणालियों, मोटर वाहन, विमान, और रेलगाड़ियों के कारण होता है।
क्षेत्र के अनुसार परिवेश शोर की अनुमति इस प्रकार है:
क्षेत्र |
दिन (6.00 – 21.00 Hr) |
रात्रि (21.00 - 6.00 Hr) |
उद्योग |
75 dB |
70 dB |
व्यापारिक |
65 dB |
55 dB |
आवास |
55 dB |
45 dB |
शांत क्षेत्र |
50 dB |
40 dB |
शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव
अत्यधिक शोर का सबसे प्रत्यक्ष हानिकारक प्रभाव कान पर पड़ता है और इससे अस्थायी या स्थायी रूप से श्रवण शक्ति खो जाती है जिसे अस्थायी सीमा पारी (टीटीएस) कहते हैं | इस हालत से पीड़ित लोग कमजोर ध्वनियों का भी पता लगाने में भी असमर्थ होते हैं | हालांकि सुनने की क्षमता आम तौर पर एक महीने के भीतर आ जाती है |महाराष्ट्र में गणेश मंडलों के पास के इलाके में रहने वाले लोगों को जहां गणेश उत्सव के दस दिन तक ज़ोर से संगीत बजता रहता है उन्हे आमतौर पर इस घटना से पीड़ित होना पड़ता है | स्थायी नुकसान, आमतौर पर जिसे शोर प्रेरित स्थायी सीमा पारी (NIPTS)कहा जाता है सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचाता है जिसे किसी भी प्रकार से ठीक नहीं किया जा सकता |
80 dBA स्तर की आवाज़ के नीचे श्रवण शक्ति की क्षति बिलकुल भी नहीं होती है | हालांकि 80 और 130dBA के बीच ध्वनि के स्तर पर अस्थायी प्रभाव देखा गया है | लगभग 50 प्रतिशत लोग अपने काम के दौरान 95 dBA ध्वनि के स्तर के संपर्क में आते हैं उनमें NIPTS विकसित हो जाती है और ज़्यादातर लोग जोकि 105 dBA से अधिक ध्वनि के स्तर पर आते हैं उन्हे कुछ हद तक स्थायी बहरापन हो जाता है | 150 DBA या उससे ज्यादा का ध्वनि स्तर शारीरिक रूप से मानव के कान के पर्दे को फाड़ सकता है | श्रवण शक्ति के नुकसान की डिग्री ध्वनि के अवधि ऑर तीव्रता पर निर्भर करता है | ध्वनि भावनात्मक या मानसिक प्रभाव का कारण भी बन सकते हैं जैसे चिड़चिड़ापन, चिंता और तनाव । शोर के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य प्रभाव में एकाग्रता और मानसिक थकान जैसे बीमारियाँ शामिल हैं |
ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव
आम तौर पर, ध्वनि प्रदूषण की वजह से तनाव संबन्धित समस्याएँ , भाषण हस्तक्षेप, बहरापन , नींद व्यवधान, और उत्पादकता में कमी जैसी बीमारियाँ शामिल हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात है, इसके तीन प्रमुख प्रभाव हैं जिन्हें हम देख सकते हैं :
शोर और सुनने में रुकावट होना
एक व्यक्ति पर शोर प्रदूषण का तत्काल और तीव्र प्रभाव, लंबे समय की अवधि के लिए, बहरापन होना है। एक व्यक्ति के लिए लंबे समय तक आवेगी शोर में रहने के कारण उसके कान के पर्दे को नुकसान पहुँच सकता है जिसके वजह से स्थायी बहरापन हो सकता है |
ध्वनि और उपद्रव समुद्री पशु
समुद्री वैज्ञानिकों को तेल अभ्यास, पनडुब्बियों और अन्य जहाजों पर से और समुद्र के अंदर इस्तेमाल कियाजाने से अत्यधिक शोर होने से चिंतित हैं। बहुत से समुद्री जीव , विशेष रूप से व्हेल, भोजन ढूँढने, संवाद करने के लिए, रक्षा और समुद्र में जीवित रहने के लिए श्रवण शक्ति का उपयोग करती हैं | उदाहरण के लिए, एक नौसेना की पनडुब्बी के सोनार के प्रभाव से 300 मील दूर स्रोत से महसूस किया जा सकता है।
(सोनार पण्डुब्बियों और अन्य मछ्ली पकड़ने की नौकाओं द्वारा पानी की गहराई को मापने के लिए, वस्तु की निकटता जानने के लिए या पानी में अन्य वस्तुओं की आवाजाही के लिए ध्वनि के उपयोग को कहते हैं |
इन किनारे वाली कई व्हेलों को शारीरिक आघात का सामना करना पड़ा है जिसमें मस्तिष्क व कान के आसपास खून बहना और अन्य ऊतकों और उनके अंगों में बड़े बुलबुले बनना |
शोर और उपद्रव का सामान्य स्वास्थ्य पर प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव में चिंता, और तनाव की प्रतिक्रिया और कई मामलों में भय भी शामिल है | शारीरिक अभिव्यक्तियों में सिर दर्द, चिड़चिड़ापन और घबराहट और थकान महसूस करना और कार्य कुशलता में कमी होना शामिल होना है । उदाहरण के लिए, आपके शहर में पूरी रात दमकल कर्मियों का, पुलिस या एंबुलेंस का साइरन बजने से हर रोज सुबह में लोगों को (विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों) तनाव होगा और थके हुए महसूस करेंगे |
यह ध्यान देने योग्य बात है कि ये प्रभाव ध्वनि परेशानी ना लगें परंतु सच्चाई यह है कि समय के साथ इनके परिणाम बहुत ही चिंताजनक हो सकते हैं |
ध्वनि नियंत्रण तकनीक
निम्न चार मूलभूत तरीके हैं जिनसे ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है :
1. तेज़ ध्वनि करने वाले स्रोतों को कम करना ,
2. ध्वनि प्रदूषण करने वाले मार्गों को बंद करना
3. ध्वनि के पथ की लंबाई को बढ़ाना और प्राप्तकर्ता की रक्षा करना
4. ध्वनि स्तर के स्रोतों को कम करना