भारत का प्रधानमंत्री कार्यालय
प्रधानमंत्री कार्यालय की महत्वता और इसकी जिम्मेदारियों की वजह से चर्चित है। इसलिए बड़ी जिम्मेदारी के निष्पादन के लिए उसे प्रधानमंत्री के कार्यालय द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इसे सचिवीय सहायता प्रदान करने के अनुच्छेद 77 (3) के प्रावधान के तहत एक निर्मित प्रशासनिक एजेंसी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसकी शुरूआत 1947 में प्रधानमंत्री पद के सचिव के रूप में हुयी थी तत्पश्चात् 1977 में पुर्न: नामित कर इसका नाम प्रधानमंत्री कार्यालय रखा गया। व्य़ापार आवंटन नियम 1961 के तहत इसे विभाग का दर्जा प्राप्त है। यह स्टाफ एजेंसी मुख्यत: भारत सरकार के शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है। लेकिन फिर भी इसके महत्व अतिरिक्त संवैधानिक निकाय के रूप में भी है।
संरचना -
- राजनीतिक रूप से प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष होता है
- प्रशासकीय रूप से प्रधान सचिव इसका अध्यक्षता होता है
- एक या दो अतिरिक्त सचिव होते हैं
- 5 संयुक्त सचिव होते हैं
- कई निदेशक, उप सचिव और सचिवों के नीचे वाले अधिकारी होते हैं।
(कार्मिक जो आम तौर पर सिविल सेवाओं में होते हैं उन्हें अनिश्चत काल के नियुक्त किया जाता है)
भूमिकाएं और कार्य
व्यापार नियम आवंटन 1961 के अनुसार, पीएमओ के 5 बुनियादी कार्य हैं-
- प्रधानमंत्री को सचिवीय सहायता प्रदान करना और एक थिंक टैंक के रूप में कार्य करना।
- वे सभी मामलों जिन पर प्रधानमंत्री रुचि रखते हैं, के लिए केंद्रीय मंत्रियों और राज्य सरकारों के साथ उसके संबंधों सहित मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में प्रधानमंत्री को समग्र जिम्मेदारियों के निष्पादन में मदद करना।
- योजना आयोग के अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री को उसकी जिम्मेदारी के निर्वहन में मदद करना।
- प्रधानमंत्री के जन सम्पर्क से संबंधित पक्ष जो बौद्धिक मंचों और नागरिक समाज से संबंधित होते हैं, उनमें मदद करना। इससे यह दोषपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ जनता से प्राप्त शिकायतों पर विचार करने के लिए यह जनसंपर्क कार्यालय के रूप में कार्य करता है।
- वर्णित नियमों के तहत आदेश हेतु प्रस्तुत मामलों के परीक्षण में प्रधानमंत्री को सहायता प्रदान करना जिससे प्रशासनिक संदेह से संबंधित मामलों पर सदन निर्णय ले सकता है।
विभिन्न प्रधान मंत्रियों की विकासवादी प्रवृत्ति
भारत में प्रशासन के केंद्रीकरण की धुरी पीएमओ के हाथों में में होती है जो प्रधानमंत्री के स्वभाव से प्रभावित रहती है और वह अपने सचिव की स्थिति को प्रभावित करता है या करती है। इसका वर्णऩ निम्नवत किया जा रहा है:
प्रधान मंत्री |
प्रमुख सचिव |
पीएमओ की विशेषताएं |
जवाहरलाल नेहरू |
ए. जैन |
प्रधानमंत्री सचिवालय प्रधानमंत्री को प्रक्रियात्मक सहायता प्रदान करता था। उस समय प्रधानमंत्री सचिवालय, प्रधानमंत्री का थिंक टैंक नहीं होता था। |
लाल बहादुर शास्त्री |
एल. के. झा |
प्रधानमंत्री सचिवालय आर्थिक मामलों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता था |
इंदिरा गांधी |
एल. के. झा |
राजनीति के साथ- साथ प्रधानमंत्री सचिवालय आर्थिक मामलों के दृष्टिकोण से भी मजबूत हो गया था। यह वह समय था जब प्रधानमंत्री सचिवालय भारतीय प्रशासन की सुपर कैबिनेट के रूप जाना जाता था। |
इंदिरा गांधी |
पी.एन. हस्कर |
प्रधानमंत्री सचिवालय बहुत शक्तिशाली हो गया था जिससे वह भारतीय प्रशासन की सूक्ष्म कैबिनेट के रूप करता था। गरीबी हटाओ कार्यक्रम अन्य कैबिनेट मंत्रियों के साथ परामर्श किये बिना ही तैयार किया गया था। इस समय प्रधानमंत्री सचिवालय की प्रभावशाली स्थिति कैबिनेट सचिवालय की तुलना में बहुत मजबूत थी। |
इंदिरा गांधी |
पी. एन. धर |
इस अवधि में संरचना में स्थिरता बनी हुयी थी। |
मोरारजी देसाई |
पी. एन. धर |
इस अवधि में प्रधानमंत्री सचिवालय (पीएमएस) को पीएमओ के रूप में पुर्न: नामित किया गया था। इस अवधि में कैबिनेट सचिव मजबूत बनाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की शक्तियां और प्रभाव कम कर दी गयी थी। |
इंदिरा गांधी |
पी सी. अलेंक्जेडर |
आवश्यक बुनियादी ढांचा मिलने से प्रधानमंत्री कार्यालय और मजबूत हो गया था। इस प्रकार यह कैबिनेट सचिव की तुलना में और अधिक मजबूत हो गया था। |
राजीव गांधी |
पी. सी. अलेंक्जेडर |
प्रधानमंत्री कार्यालय को संपूर्ण प्रशासनिक बुनियादी सुविधाएं प्राप्त हो गयी थी जिसमें तीन अतिरिक्त सचिव, 5 संयुक्त सचिव थे। इसे व्यापार नियमों के आवंटन के तहत विभाग का दर्जा प्राप्त हुआ था। |
राजीव गांधी |
सरला ग्रेवाल |
उन्होंने (सरला ग्रेवाल) ने कार्यालय की स्थिरता को बनाए रखा था। |
राजीव गांधी |
बी. जी. देशमुख |
प्रधानमंत्री कार्यालय को सरकारी कार्यों के संदर्भ में केंद्रीकरण का सर्वोच्च स्तर प्राप्त हुआ था |
पी वी नरसिंह राव |
ए. एन. वर्मा |
राजनीतिक कार्यकारिणी को प्रधानमंत्री कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया था। इसके अलावा गठबंधन सरकार से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के निपटान के लिए केंद्रीकरण की व्यवस्था को यथावत रखा गया था। |
अटल बिहारी वाजपेयी |
बी. मिश्रा |
प्रधानमंत्री पद की लोकतंत्र में बढ़ती कार्यात्मक मांग के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय और अधिक मजबूत हो गया था। कई संमानांतर संगठनों में इसकी भूमिका बढ़ गयी थी। |
डॉ मनमोहन सिंह |
ए. नायर |
कार्यात्मक मामलों में प्रधानमंत्री कार्यालय अलग संस्था बन गया था। सुब्रमण्यम समिति की सिफारिशों के अनुसार सुरक्षा पहलुओं की जिम्मेदारियों से इसे अलग कर दिया गया था। |
नरेंद्र मोदी |
नृपेंद्र मिश्रा |
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इस प्रकार स्थिति की धुरी और प्रधानमंत्री कार्यालय का प्रभाव प्रधानमंत्री की निजी प्रकृति का एक प्रतिबिंब होता है और राजनीतिक- प्रशासनिक स्थिति की उत्तरदायी होता है।