भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी): एक समग्र अध्ययन
जीएसटी का अर्थ वस्तु एवं सेवा कर है। यह एक अप्रत्यक्ष कर है जिसे माल और सेवाओं की बिक्री पर लगाया जाता है। जीएसटी में कराधान के उद्देश्य के लिए वस्तु और सेवाओं के बीच कोई फर्क नहीं होगा। इस सिस्टम के लागू होने के बाद चुंगी, सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी), राज्य स्तर के सेल्स टैक्स या वैट, एंट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टैप ड्यूटी, टेलीकॉम लाइसेंस फीस, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के ट्रांसपोटेर्शन पर लगने वाले टैक्स खत्म हो जाएंगे।
देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने के लिए संविधान (122वां संशोधन) विधेयक, 2014, संसद में प्रस्तुत किया गया। संविधान में प्रस्तावित संशोधन में संसद और राज्य विधानसभा, दोनों को एक ही प्रकार के लेन-देन पर वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर जीएसटी लगाने के लिए कानून बनाने की शक्तियां प्रदान करेगा।
जीएसटी लगाने को लेकर तर्क:
वर्तमान में, संविधान केंद्र सरकार को विनिर्माण पर उत्पाद शुल्क और सेवाओं की आपूर्ति पर सेवा कर लगाने का अधिकार प्रदान करता है। इसके अलावा संविधान राज्य सरकारों को माल की बिक्री पर बिक्री कर या मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाने का अधिकार प्रदान करता है। इन वित्तीय शक्तियों के विभाजनों ने देश में अप्रत्यक्ष करों की बहुलता का मार्ग प्रशस्त किया। इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा माल की अन्तर्राज्यीय ब्रिक्री पर केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) लगाया जाता है, लेकिन इसे निर्यातक राज्यों द्वारा एकत्र किया जाता है। इसके अलावा, कई राज्य स्थानीय क्षेत्रों में माल के प्रवेश पर प्रवेश-कर भी लगाते हैं।
देश में एक जटिल अप्रत्यक्ष कर ढांचे का ही परिणाम है कि राज्य और केंद्रीय स्तर पर बहुत अधिक मात्रा में कर लगाए जाते हैं, जो कि व्यापार और उद्योग में हिडन कॉस्ट के रूप में लगे रहते हैं। पहला, सभी राज्यों में कर दरों का कोई एकरूपता और संरचना नहीं है। दूसरा, वहाँ 'टैक्स पर टैक्स' के कारण करों की व्यापक सीमा है।
जीएसटी को लेकर राज्य सरकारों में चिंता भी है। बड़ा सवाल है कि टैक्स स्लैब क्या होगा और नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई कौन करेगा। कहा जा रहा है कि जीएसटी का सिस्टम पूरी तरह तैयार नहीं है। इसके अलावा राज्य और केंद्र के बीच टैक्स बंटवारे को लेकर भी सवाल है। टैक्स बढ़ाने या घटाने का फैसला कौन करेगा इसपर भी चिंता है। राज्यों को मिली मनमर्जी से टैक्स वसूलने की छूट खत्म हो जाएगी। राज्यों की मांग है कि सरकार इस मुद्दे का कोई हल निकाले, या फिर उन्हें भारी-भरकम मुआवजा दे। वैसे मुआवजा न मिलने की स्थिति में राज्य सरकारों की मांग है कि पेट्रोलियम और एंट्री टैक्स को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए। हालांकि ये पूरा का पूरा बोझ सीधे जनता पर आएगा, लेकिन सकल लागत के 10-12 प्रतिशत से ज्यादा का नहीं होगा।
स्त्रोत- वित्त मंत्रालय
गंतव्य आधारित खपत करः जीएसटी एक गंतव्य आधारित कर होगा। इसका अर्थ है कि सभी एसजीएसटी को आमतौर पर राज्य में वहां से एकत्र किया जाएगा जहां उपभोक्ताओं को वस्तुएं या सेवाएं बेची जा रही हैं।
केन्द्रीय करों शामिल हैं:
I- सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी
II- अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
III- औषधीय और प्रसाधन अधिनियम के तहत आबकारी शुल्क लगाया जाता है।
IV- सेवा कर
V- अतिरिक्त सीमा शुल्क, सामान्यतः प्रतिकारी शुल्क (सीवीडी) के रूप में जाना जाता है
VI- सीमा शुल्क पर 4% का अतिरिक्त विशेष शुल्क (एसएडी)
VII- माल और सेवाओं की आपूर्ति के संबंध में उपकर और अधिभार
राज्य करों में शामिल हैं:
I. वैट / बिक्री कर
II. केन्द्रीय बिक्री कर (केंद्र की ओर से लगाया जाता है और राज्य द्वारा एकत्र किया जाता है)
III. मनोरंजन कर
IV. चुंगी और एंट्री टैक्स (सभी रूपों में)
V. खरीद कर
VI. लक्जरी टैक्स
VII. लॉटरी, शर्त और जुए पर कर
VIII. माल और सेवाओं की आपूर्ति के संबंध में राज्यों का उपकर और अधिभार।
मानव उपभोग के लिए शराब को छोड़कर, सभी वस्तुओं और सेवाओं को जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा।
संविधान संशोधन (122वां) विधेयक, 2014 की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
1. जीएसटी, या वस्तु एवं सेवा कर को उत्पाद शुल्क, प्रतिकारी शुल्क (काउंटरवेलिंग), सेवा कर की तरह केंद्रीय अप्रत्यक्ष करों के नियम के अंतर्गत लगाने के साथ- साथ मूल्य वर्धित कर कर, चुंगी और प्रवेश कर, विलासिता कर लगाने का अधिकार राज्य के पास होगा।
2. अंतिम उपभोक्ता को केवल सभी पिछले चरणों में जीएसटी आपूर्ति श्रृंखला में हुए लाभ पर अंतिम डीलर द्वारा लगाया गया जीएसटी कर देना होगा।
3. पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों को संवैधानिक रूप से जीएसटी के तहत 'माल' की की श्रेणी में शामिल किया गया है। हालांकि, यह भी प्रावधान किया गया है कि पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों को तब तक जीएसटी नहीं लगाया जाएगा जब तक जीएसटी परिषद की सिफारिशों के बाद इसे लगाने की तारीखों की घोषणा नहीं की जाती। वर्तमान में पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों पर राज्यों और केंद्र द्वारा लगाए जाने वाले कर, जैसे राज्यों द्वारा बिक्री कर / वैट और सीएसटी, और केंद्र द्वारा लगाए जाने वाला उत्पाद शुल्क, अंतरिम अवधि तक लगना जारी है ।
4. केंद्र की ओर से तंबाकू और तंबाकू उत्पादों पर लगाए जाने वाले करों को जारी रखा जाएगा जो जीएसटी के दायरे से बाहर रहेंगे।
5. मानव उपभोग वाली शराब के मामले में, राज्य द्वारा वर्तमान में लगाया जाने वाला कर जारी रहेगा, यानी, राज्य उत्पाद शुल्क और बिक्री कर / वैट।
6. यह दो प्रकार का होगा- केन्द्र स्तर का जीएसटी केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाएगा और राज्य स्तर का जीएसटी राज्यों द्वारा लगाया जाएगा।
7. हालांकि, केवल केंद्र ही अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य की आपूर्ति के दौरान जीएसटी लगा सकता है या एकत्र कर सकता है। एकत्रित किए गए कर का बटवारा जीएसटी परिषद की सिफारिशों पर संसद द्वारा तय किये गए नियमों के अनुसार राज्य और केंद्र के बीच किया जाएगा।
8. जीएसटी परिषद के अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री होंगे और वित्त राज्य मंत्री तथा प्रत्येक राज्य के वित्त मंत्री भी इसमें शामिल होंगे।
9. विधेयक में वस्तुओं के अंतर-राज्यीय व्यापार पर एक अतिरिक्त कर लगाने का प्रस्ताव हे जो 1% से अधिक नहीं होगा तथा इसे केंद्र द्वारा लगाने के साथ केंद्र द्वारा ही एकत्र भी किया जाएगा ।
10. जीएसटी मुआवजा: अभी हमारे देश में अप्रत्यक्ष कर वस्तु के उत्पादन बिंदु पर लगता है लेकिन अब यह उस स्थान पर लगेगा जहाँ पर उत्पाद अंतिम रूप से बेचा गया है इस कारण कुछ राज्यों को उनकी कर आय में कमी आने का अंदेशा है । परन्तु केंद्र सरकार पहले ही कह चुकी है कि वह पहले 5 वर्ष तक राज्यों के सभी घाटों की भरपाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।
जीएसटी को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय अनुभव
विश्व के लगभग 140 देशों में जीएसटी लागू है 1954 में सबसे पहले फ़्रांस ने जीएसटी लागू किया, कनाडा में जीएसटी 60% की दर से लगाया जाता है जिससे कनाडा की जीडीपी में आश्चर्यजनक रूप से 24 % की बढ़ोत्तरी देखने को मिली कनाडा के अनुभवों को भारतीय परिप्रेक्ष्य के सबसे निकट कहा जा सकता है।