मैसूर राज्य का इतिहास

विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद, 1565 ई। में हिन्दू वोडियार वंश द्वारा मैसूर राज्य को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। वोडियार वंश के अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज द्वितीय के शासनकाल में वास्तविक सत्ता देवराज(दलवाई या सेनापति) और नंजराज (सर्वाधिकारी या वित्त एवं राजस्व नियंत्रक) के हाथों में आ गयी थी।ये क्षेत्र पेशवा और निज़ाम के बीच विवाद का विषय बन गया था।1761 ई. में हैदर अली ,जिसने अपने जीवन की शुरुआत एक सैनिक के रूप में की थी,ने मैसूर के राजवंश को हटाकर राज्य पर अपना कब्ज़ा कायम कर लिया।
The History of Mysore State HN
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विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद, 1565 ई। में हिन्दू वोडियार वंश द्वारा मैसूर राज्य को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। वोडियार वंश के अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज द्वितीय के शासनकाल में वास्तविक सत्ता देवराज (दलवाई या सेनापति) और नंजराज (सर्वाधिकारी या वित्त एवं राजस्व नियंत्रक) के हाथों में आ गयी थी।ये क्षेत्र पेशवा और निज़ाम के बीच विवाद का विषय बन गया था। नंजराज द्वितीय कर्नाटक युद्ध में अंग्रेजों के साथ मिल गया और त्रिचुरापल्ली(तमिलनाडु) पर कब्ज़ा कर लिया।

1761 ई. में हैदर अली ,जिसने अपने जीवन की शुरुआत एक सैनिक के रूप में की थी,ने मैसूर के राजवंश को हटाकर  राज्य पर अपना कब्ज़ा कायम कर लिया। हैदर अली(1760-1782) ने मैसूर राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया ,जो  दो वोडियार भाइयों –देवराज और नंजराज द्वारा शासित था। उसे अपने राज्य की स्वतंत्रता को कायम रखने के लिए निज़ाम और मराठों से भी लड़ना पड़ा।उसने निज़ाम और फ्रांसीसियों के साथ मिलकर 1767-1769 के मध्य हुए प्रथम आंग्ल –मैसूर युद्ध मे अंग्रेजों को करारी शिकस्त दी और अप्रैल 1769 में उन्हें मद्रास की संधि के रूप में अपनी शर्तें मानने पर मजबूर कर दिया। 1780-1784 ई के मध्य हुए द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध में भी उसने निज़ाम और मराठों के साथ मिलकर 1782 ई में  अंग्रेजों को हराया लेकिन युद्ध में घायल हो जाने के कारण 1782 ई में उसकी मृत्यु हो गयी।

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टीपू सुल्तान (1782-1799 ई), हैदर अली का पुत्र था और उसके बाद मैसूर राज्य की सत्ता संभाली ,जिसने वीरतापूर्वक अंग्रेजों से युद्ध लड़कर अपने राज्य की रक्षा की। टीपू सुल्तान पहला शासक था जिसने पश्चिमी पद्धतियों को अपने प्रशासन में लागू करने का प्रयास किया। उसने सैन्य प्रशिक्षण में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया और आधुनिक हथियारों के उत्पादन के लिए एक कारखाना भी स्थापित किया । उसने अंग्रेजों और निजाम व मराठों की संयुक्त सेना के विरुद्ध तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध लड़ा  अंतत; उसे श्रीरंगपट्टनम की संधि  करनी पड़ी और संधि की शर्तों के तहत टीपू को अपना आधा राज्य अंग्रेजों और उनके सहयोगियों को देना पड़ा। चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799) के दौरान लड़ते हुए उसकी मृत्यु हो गयी।

टीपू सुल्तान से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियाँ

1.  वह श्रंगेरी के जगतगुरु शंकराचार्य का महान प्रशंसक था और उसने मराठों द्वारा नष्ट की गयी देवी शारदा  की मूर्ति के निर्माण के लिए उन्हें धन प्रदान किया।

2.  उसकी आत्मकथा का नाम तारीख-ए-खुदाई  था।

3.  उसने फ़ताहुल मुजाहिदीन नाम से एक सैन्य पुस्तक भी लिखी जिसमे राकेट साइंस और राकेट ब्रिगेड से सम्बंधित जानकारी दी गयी है।

4.  उसने अपने पिता हैदर अली द्वारा प्रारंभ की गयी लाल बाग परियोजना (बैंगलोर) को पूरा किया और कावेरी नदी पर कृष्णराज सागर बांध का निर्माण कराया।

आधुनिक भारत का इतिहास: सम्पूर्ण अध्ययन सामग्री

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