वैश्विक गरीबी परिदृश्य
विकासशील देशों में रहने वाले अत्यधिक आर्थिक गरीबी वाले लोगों के अनुपात में विश्व बैंक द्वारा एक दिन में 1 डॉलर से कम आमदनी वाले लोगों को रखा गया था । विश्व में गरीबी 1990 में 28 प्रतिशत थी जो कि 2001 में 21 प्रतिशत और वर्तमान में लगभग 13% है। विश्व के कुछ देशों में गरीबी के हालत इस प्रकार है (आंकड़े विश्व बैंक- 2011)...सब सहारा अफ्रीका में आज लगभग 43% जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जी रही है, दक्षिण एशिया में 19% और यूरोप और मध्य एशिया में करीब 2% गरीब हैं। ( पैमाना- $ 1.90/दिन)
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का अवलोकन
गरीबी रेखा की विभिन्न परिभाषाओं की वजह से, भारत में गरीबी (वर्तमान में कुल जनसंख्या का 21.9%) राष्ट्रीय अनुमान से भी अधिक दिखायी देती है। उप-सहारा अफ्रीका में गरीबी में 1981 में 41 प्रतिशत की तुलना में 2001 में 46 प्रतिशत हो गयी है। लैटिन अमेरिका में गरीबी का अनुपात वही है जो पहले था। रूस जैसे पूर्व समाजवादी देशों में गरीबी में परिवर्तन हुआ है जहां यह पहले सरकारी तौर पर यह अस्तित्वहीन थी। संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दि विकास लक्ष्य ने कहा है कि गरीबी के मानक को 1990 के 1 डॉलर प्रतिदिन के मुकाबले 2015 तक आधा करने को कहा गया था । (नये सहस्राब्दि विकास लक्ष्य 2030 तक गरीबी उन्मूलन करना चाहते हैं)।
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गरीबी के कारण:
1. गरीबी का एक ऐतिहासिक कारण: ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के तहत आर्थिक स्तर पर विकास कम रहा। औपनिवेशिक सरकार की नीतियों ने पारंपरिक हस्तशिल्प को बर्बाद कर दिया और कपड़े जैसे उद्योगों के विकास को हतोत्साहित किया।
2. जनसंख्या की उच्च विकास दर: जैसा कि हम सब जानते हैं कि वैश्विक आबादी 7 अरब के आंकड़े को पार कर गयी है, लेकिन संसाधन उस अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं इसके कारण दुनिया में गरीबों की संख्या बढ़ती जा रही है।
3. भूमि और अन्य संसाधनों का असमान वितरण: संसाधनों के असमान वितरण के कारण गरीब और गरीब हो रहा है तो अमीर साल दर साल अमीर होता जा रहा है। भारत में स्तिथि यह है कि 90% संसाधनों पर सिर्फ 10% लोगो का हक़ है।
4. भूमि सुधार जैसे प्रमुख नीतिगत पहलों जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति का पुनर्वितरण करना था, को ठीक से लागू नहीं किया गया।
5. कई अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारक भी गरीबी के लिए जिम्मेदार हैं। कई लोग सामाजिक दायित्वों, धार्मिक अनुष्ठानों जैसे मुंडन, शादी समारोह, त्रियोदशी इत्यादि में बहुत सारा पैसा खर्च करते है और ऋण जाल में फस जाते हैं।
6- कृषि में कम उत्पादकता: ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारी मात्रा में उर्वरकों के उपयोग के बावजूद भूमि की उत्पादकता में प्रति वर्ष कमी आ रही है जिसके कारण पूरी दुनिया के किसानों की आर्थिक हालत कमजोर हैं।
7- संसाधनों का अल्पतम उपयोग: कृषि में छिपी हुई बेरोजगारी और अल्प रोजगार की दशाओ के कारण संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग नही हो पता है जिसके कारण किसानों की आर्थिक हालत कमजोर रहती है।
8. मुद्रास्फीति: सतत और तेज मूल्य वृद्धि से गरीबी में वृद्धि हुयी है। इससे समाज में कुछ लोगों को लाभ हुआ है और निम्न आय वर्ग के व्यक्तियों के लिए अपनी आवश्यकताएं पूरा करना कठिन हो रहा है।
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गरीबी उन्मूलन के उपाय:
गरीबी हटाओ का नारा भारतीय विकास की रणनीति के प्रमुख उद्देश्यों में से एक रहा है। सरकार की मौजूदा गरीबी-विरोधी रणनीति मोटे तौर पर आर्थिक विकास के दो तथ्यों पर आधारित है (1) आर्थिक विकास को बढ़ावा देना (2) लक्षित गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।
अस्सी के दशक में तीस साल से ज्यादा की अवधि तक चलने वाले कार्यक्रमों में प्रति व्यक्ति आय में हल्की वृद्धि हुयी थी लेकिन गरीबी में बहुत ज्यादा कमी नहीं हुई थी। सरकारी गरीबी अनुमान जिसमें 1950 के दशक में गरीबी में लगभग 45 फीसदी का इजाफा हुआ है, जो 80 के दशक तक वहीं बना रहा था। भारत की आर्थिक विकास दर दुनिया में सबसे तेजी उभरती हुयी विकास दरों में से एक है जबकि अफ्रीका महाद्वीप आज भी घोर गरीबी की चपेट में है ।
भारत में गरीबी उन्मूलन के निम्न उपाय किये गए हैं ...
- पंडित दीनदयाल उपाध्यादय श्रमेव जयते कार्यक्रम
- वन बंधु कल्याण योजना
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
- मेक इन इंडिया कार्यक्रम
- सरकारी ग्रामीण विकास कार्यक्रम
- काम के बदले अनाज योजना
- मुद्रा योजना
- स्व-सहायता समूह बैंक लिंकेज मॉडल
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण स्कीम
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना