सांची स्तूप : भारत का प्रसिद्ध बौद्ध स्मारक
भोपाल से 46 किमी. तथा बेसनगर और विदिशा से 10 किमी. की दूरी पर स्थित सांची मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले में स्थित एक छोटा सा गाँव है। यहाँ स्थित सांची स्तूप प्रेम, शांति, विश्वास और साहस का प्रतीक है। सांची स्तूप और उसके चारों तरफ बने भव्य तोरण द्वार तथा उन पर की गई मूर्तिकारी भारत की प्राचीन वास्तुकला तथा मूर्तिकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है। सांची से मिलने वाले अभिलेखों में इस स्थान को 'काकनादबोट' नाम से अभिहित किया गया है। सांची की कीर्ति राजपूत काल तक तो बनी रही, किन्तु बाद में यह गुमनामी में खो गया|
सांची के स्तूप से संबन्धित जानकारी:
I. सांची के स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शती ई.पू में करवाया था |
II. ऐसा माना जाता है अशोक ने यहीं इस स्तूप का निर्माण इसलिये कराया क्योंकि उसकी पत्नी देवी, जो विदिशा के एक व्यापारी की बेटी थी, का संबंध सांची से था |
III. चौदहवीं सदी से लेकर वर्ष 1818 में जनरल टेलर द्वारा पुनः खोजे जाने तक सांची सामान्य जन की जानकारी से दूर बना रहा |
IV. सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में 1912 से लेकर 1919 तक सांची के स्तूप की मरम्मत कराई गयी |
V. सर जॉन मार्शल ने 1919 में सांची में पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना की, जिसे बाद में वर्ष 1986 में सांची की पहाड़ी के आधार पर नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया।
VI. सांची में स्थित स्तूप संख्या-1 या ‘महान स्तूप’ भारत की सबसे पुरानी शैल संरचना है |
VII. सांची में स्तूप संख्या-1 या ‘महान स्तूप’ सबसे महत्वपूर्ण स्मारक है |
VIII. सांची स्तूप में बुद्ध के अवशेष पाये जाते हैं |
IX. सांची, विशेष रूप से स्तूप संख्या-1, में ब्राह्मी लिपि के शिलालेख उत्कीर्ण हैं |
X. सांची के स्तूप का व्यास 36.5 मी. और ऊँचाई लगभग 21.64 मी. है |
XI. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सबसे पहले जिस स्तूप का निर्माण कराया वह सांची का स्तूप ही था|
XII. बौद्ध धर्म में सांची ऐतिहासिक महत्व का स्थल है,जबकि बुद्ध ने कभी भी सांची की यात्रा नहीं की थी |
XIII. सांची का निर्माण बौद्ध अध्ययन एवं शिक्षा केंद्र के रूप में किया गया था |
XIV. सारनाथ से मिले अशोक स्तम्भ, जिस पर चार सिंह बने हुये हैं, के जैसा ही एक अशोक स्तम्भ सांची से भी मिला है| इन स्तंभों का निर्माण ग्रीको-बौद्ध शैली में किया गया था |
XV. सांची का स्तूप बुद्ध के ‘महापरिनिर्वाण’ का प्रतीक है|
XVI. वर्ष 1989 में इसे युनेस्को द्वारा ‘विश्व विरासत स्थल’ का दर्जा प्रदान किया गया |
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