भारत में किस शहर को कहा जाता है 'पहलवानों का शहर', जानें

भारत के हर शहर की अपनी कहानी और समृद्ध इतिहास है। ऐसे में यहां के इतिहास में यहां के खेल भी शामिल हैं, जो कि कुश्ती के बिना अधूरे हैं। आज भी भारत में एक बड़ा वर्ग क्रिकेट के बाद कुश्ती का दिवाना है और बड़ी संख्या में कुश्ती को देखा करता है। देश के ग्रामीण इलाकों में कुश्ती लोकप्रिय खेलों में से एक है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत का एक शहर ऐसा भी है, जिसे पहलवानों का शहर भी कहा जाता है। कौन-सा यह शहर और क्या है शहर की कहानी, जानने के लिए यह लेख पढ़ें। 

Kishan Kumar
Oct 4, 2023, 19:16 IST
भारत में पहलवानों का शहर
भारत में पहलवानों का शहर

भारत में अलग-अलग शहर मौजूद हैं। हर शहर की अपनी खासियत है, जो कि भारत को खास बनाने काम करती है। हर साल बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी भी भारतीय संस्कृति और इसकी अनूठी परंपराओं से रूबरू होने के साथ यहां के शहरों के समृद्ध इतिहास, इमारतें और शहरों को जानने के लिए भारत आते हैं।

ऐसे में यहां से वे अपने साथ अपनी यादों के पिटारे में यहां अतीत के पन्नों में दर्ज इतिहास व किस्से और कहानियों को भी लेकर जाते हैं। भारत में हर शहर का अपना समृद्ध इतिहास और कहानी भी है, जिससे कुछ शहरों को वैश्विक स्तर पर पहचान बनाने में मदद भी मिली है।

इस कड़ी में क्या आप जानते हैं कि भारत का एक शहर ऐसा भी है, जिसे पहलवानों का शहर भी कहा जाता है। कौन-सा है यह शहर और क्या है शहर की कहानी, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।  

 



किस शहर को कहा जाता है पहलवानों का शहर

भारत में आपने अलग-अलग शहरों के बारे में पढ़ा और सुना होगा। इस कड़ी में क्या आपने कभी पहलवानों के शहर के बारे में सुना या पढ़ा है। यदि नहीं, तो आपको बता दें कि भारत के महाराष्ट्र राज्य के दक्षिण भाग पर पंचगंगा नदी के तट पर स्थित कोल्हापुर शहर को भारत में पहलवानों का शहर कहा जाता है।

 

क्यों कहा जाता है पहलवानों का शहर

अब सवाल यह है कि भारत में कई शहर मौजूद हैं, जहां पहलवान हैं। ऐसे में इस शहर को ही पहलवानों का शहर क्यों कहा जाता है। आपको बता दें कि इस शहर में प्रमुख रूप से खेले जाने वाले खेल कुश्ती, फुटबॉल और कबड्डी है।

इस शहर का कुश्ती से पुराना रिश्ता है। साल 1894 से 1922 के बीच यहां के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज के शासनकाल में स्पोर्ट्स को बढ़ावा मिला। उन्होंने यहां पर कई अखाड़ों का निर्माण करवाया, जिन्हें स्थानीय स्तर तालीम भी कहा जाता है।

ऐसे में यहां अलग-अलग जगहों से पहलवानों को बुलाया जाता था और कुश्ती का आयोजन होता था। इसके बाद यहां की कुश्ती संस्कृति में गंगवेश तालीम, साहुपुरी तालीम और मोतीबाग तालीम का वर्चस्व रहा। 

 

इन पहलवानों ने लहराया परचम

आपको बता दें कि कुश्ती में भारत के लिए पहला ओलंपिक जीतने वाला खाशाबा दादासाहेब जाधव भी कोल्हापुर के थे, जिन्होंने 1952 के समर ओलंपिक में भारत के लिए ओलंपिक में कांस्य जीता था।

वहीं, इनके अलावा देश के पहले हिंद केसरी श्रीपति खंचनाले और रूस्तम-ए-हिंद दादू चौगुले भी कोल्हापुर से थे। देश का सबसे बड़ा रेस्लिंग स्टेडियम भी कोल्हापुर में है, जो कि खाशबाग रेस्लिंग स्टेडियम है। यह 100 साल से पुराना स्टेडियम है, जो कि एक विरासत स्थल भी है। 

 

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