जानें इंदिरा गांधी ने भारत में राष्ट्रीय आपातकाल कब और क्यों लगाया था ?

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहां पर जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार देश का शासन चलाती है, लेकिन जब देश में कुछ विशेष परिस्तिथियाँ पैदा हो जातीं हैं, तो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा भी करनी पड़ती है. भारतीय संविधान में आर्टिकल 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंध दिए गए हैं. आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाता है और सभी राज्य, केंद्र सरकार के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं.
राष्ट्रीय आपातकाल किसे कहते हैं? (What is National Emergency)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का प्रावधान है. राष्ट्रीय आपातकाल उस स्थिति में लगाया जाता है, जब पूरे देश को या इसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता है. भारत में पहला राष्ट्रीय आपातकाल इंदिरा गाँधी की सरकार ने 25 जून 1975 को घोषित किया था और यह 21 महीनों तक चला था.
आज हम आपको इस लेख के माध्यम से आपातकाल के बारे में बताएंगे। साथ ही विस्तार से यह भी जानेंगे कि किन परिस्तिथियों में यह आपातकाल लगाया गया था?
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आपातकाल लगने से पहले देश का राजनीतिक माहौल
इंदिरा गांधी द्वारा 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने से भारत के बैंकों पर अमीर घरानों का कब्ज़ा ख़त्म होने और ‘प्रिवी पर्स’ (राजपरिवारों को मिलने वाले भत्ते) खत्म करने जैसे फैसलों से इंदिरा की इमेज ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में बन गई थी.
अपने सलाहकार और हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा दिए गए ‘गरीबी हटाओ’ के नारे ने देश में इंदिरा की छवि गरीबों के मसीहा के रूप में पक्की की थी. अब लोगों को लग रहा था कि सिर्फ इंदिरा ही गरीबों के लिए लड़ रही है.
यही कारण है कि जब मार्च 1971 में देश में आम चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी. कुल 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा (352) सीटें हासिल हुई थी.
इस चुनाव में इंदिरा गाँधी भी उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोक सभा सीट से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण को हराया था. (नीचे तस्वीर में)
बताते चलें कि राजनारायण उत्तर प्रदेश के वाराणसी के प्रखर समाजवादी नेता थे. उनके इंदिरा गांधी से कई मसलों पर नीतिगत मतभेद थे. इसलिए वे कई बार उनके खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़े और हारते रहे. वर्ष 1971 में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और यहीं से शुरू होता है देश में राजनीतिक उथल पुथल का दौर.
कोर्ट का निर्णय इंदिरा का खिलाफ
राजनारायण के कोर्ट में प्रसिद्द वकील शांतिभूषण थे. हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. यह मामला राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ नाम से जाना जाता है.
वकील शांतिभूषण ने सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग सिद्ध करने के लिए यह उदाहरण दिया कि प्रधानमंत्री के सचिव यशपाल कपूर ने राष्ट्रपति द्वारा उनका इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही इंदिरा गांधी के लिए काम करना शुरू कर दिया था, जो कि सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का पुख्ता सबूत था.
उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले में माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है.
(जज जगमोहन लाल सिन्हा)
अदालत ने अगले 6 साल तक उनके कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा में जाने का रास्ता भी नहीं बचा था. अब उनके पास प्रधानमंत्री पद छोड़ने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.
हालांकि अदालत ने कांग्रेस पार्टी को थोड़ी राहत देते हुए ‘नई व्यवस्था अर्थात नया प्रधानमन्त्री’ बनाने के लिए तीन हफ्तों का वक्त दे दिया था.
समस्या को हल करने के क्या प्रयास हुए थे?
ज्ञातव्य है कि इस समय देश में ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ का माहौल था. ऐसे माहौल में इंदिरा के होते किसी और को प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता था. साथ ही इंदिरा अपनी पूरी पार्टी में किसी पर भी विश्वास नहीं करती थीं.
इस संकट के समय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष डीके बरुआ ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि अंतिम फैसला आने तक वे कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं और उन्हें प्रधानमंत्री का पद सौंप दें.
पत्रकार इंदर मल्होत्रा के अनुसार, जब प्रधानमंत्री आवास पर यह चर्चा चल रही थी उसी समय वहां संजय गांधी आ गए. उन्होंने अपनी मां को कमरे से बाहर ले जाकर सलाह दी कि वे इस्तीफा न दें. उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाया कि यदि उन्होंने प्रधानमंत्री का पद किसी और को दिया तो फिर वह व्यक्ति इसे नहीं छोड़ेगा और आपके द्वारा पार्टी में बनायीं गयी पकड़ ख़त्म हो जाएगी.
इंदिरा गांधी अपने बेटे के तर्कों से सहमत हो गई और उन्होंने तय किया कि वे इस्तीफा देने के बजाय 3 हफ़्तों की मिली मोहलत का फायदा उठाते हुए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी.
इस केस की सुनवाई जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने की थी. जज ने अपने फैसले में कहा कि वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर पूर्ण रोक नहीं लगाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति तो दे दी ,लेकिन कहा कि वे अंतिम फैसला आने तक सांसद के रूप में मतदान नहीं कर सकतीं.
जयप्रकाश नारायण की भूमिका (Role of Jayaprakash Narayan before Emergency in India)
कोर्ट की उठापटक के बीच बिहार, गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ छात्रों का आंदोलन भी उग्र हो रहा था. बिहार में इस आंदोलन को हवा दे रहे थे जयप्रकाश नारायण.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन यानी 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली थी. जयप्रकाश ने इंदिरा गांधी के ऊपर देश में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया और रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता के अंश " सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" का नारा बुलंद किया था.
(जयप्रकाश नारायण,एक रैली में)
जयप्रकाश ने विद्यार्थियों, सैनिकों, और पुलिस वालों से अपील कि वे लोग इस दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना मानें, क्योंकि कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमन्त्री पद से हटने को बोल दिया है. बस इसी रैली के आधार पर इंदिरा ने आपातकाल लगाने का फैसला किया था. इसके अलावा इन कारणों ने भी इंदिरा को आपातकाल के लिए मजबूर किया था;
1. इंदिरा के खिलाफ पूरे देश में जन आक्रोश बढ़ रहा था. इसमें छात्र और सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट हो गए थे.
2. कोर्ट के आदेश ने इंदिरा की हालात को पंगु बना दिया था, क्योंकि इंदिरा अब संसद में वोट नहीं डाल सकती थी और उनको पार्टी के किसी नेता पर भरोसा भी नहीं था.
3. इसके अलावा इंदिरा को लगा कि जयप्रकाश के आवाहन पर सेना तख्ता पलट कर सकती है.
ऊपर दिए गए हालातों में इंदिरा को आपातकाल लगाने का सबसे बड़ा बहाना जयप्रकाश द्वारा बुलाया गया असहयोग आन्दोलन था. इसी आधार पर इंदिरा ने 26 जून, 1975 की सुबह राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि जिस तरह का माहौल (सेना, पुलिस और अधिकारियों के भड़काना) देश में एक व्यक्ति अर्थात जयप्रकाश नारायण के द्वारा बनाया गया है ,उसमें यह जरूरी हो गया है कि देश में आपातकाल लगाया (National Emergency in India) जाये ताकि देश की एकता और अखंडता की रक्षा की जा सके.
इस प्रकार देश में पहला राष्ट्रीय आपातकाल (first National Emergency in India)25 जून 1975 में लागू किया गया था, जो कि 21 महीने अर्थात 21 मार्च 1977 तक चला था. उस समय देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे.
इस तरह इंदिरा गाँधी द्वारा देश में लगाया गया आपातकाल भारत के राजनीतिक इतिहास की एक अमित घटना बन गया है. उम्मीद है कि अब आप ठीक से समझ गए होंगे कि देश में आपातकाल कब और क्यों लगाया गया था.
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