वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले कौन से हैं?

भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है. इसकी स्थापना 28 जनवरी 1950 को की गयी थी. सुप्रीम कोर्ट में अधिकतम 30 न्यायधीश तथा 1 मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान है. इस लेख हमने सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2018 में दिए गये महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में बताया है. ये निर्णय हैं, पदोन्नति में आरक्षण, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश और समलैंगिक संबंधों को सहमती इत्यादि.
आइये इन निर्णयों पर एक-एक कर नजर डालते हैं;
1. दिल्ली सरकार ही दिल्ली का 'बॉस'
दिल्ली सरकार बनाम एलजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई, 2018 को फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को हर मामले में फैसले से पहले एलजी की सहमति की जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार अहम है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि दिल्ली के असली बॉस एलजी नहीं, बल्कि दिल्ली सरकार ही है.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, लोकतंत्र में रियल पॉवर चुने हुए प्रतिनिधियों में होनी चाहिए, क्योंकि विधायिका के प्रति वे जवाबदेह हैं. सरकार के प्रतिनिधियों को सम्मान दिया जाना चाहिए.
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस, भूमि और कानून व्यवस्था (जो केंद्र के एक्सक्लूसिव अधिकार हैं) को छोड़कर दिल्ली सरकार को अन्य मामलों में कानून बनाने और प्रशासन करने की इजाजत दी जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल मनमाने तरीके से सारे मामलों को राष्ट्रपति को नहीं भेजेंगे और कोई केस राष्ट्रपति को भेजने से पहले वो अपना दिमाग लगाएंगे.
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2. व्यभिचार कानून पर रोक
27 सितंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर ने 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को खत्म कर दिया है. अर्थात सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित कर दिया हैं.
कोर्ट ने फैसले में कहा कि अब यह कहने का समय आ गया है कि पति, महिला का मालिक नहीं होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति के कहने पर पत्नी किसी की इच्छा की पूर्ति कर सकती है, तो इसे भारतीय नैतिकता कतई नहीं मान सकते.
क्या है धारा 497
आईपीसी की धारा 497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ रजामंदी से संबंध बनाता है तो उस महिला का पति एडल्टरी के नाम पर “इस” पुरुष के खिलाफ केस दर्ज कर सकता है लेकिन वो अपनी पत्नि के खिलाफ किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है.
साथ ही इस मामले में शामिल पुरुष की पत्नी भी महिला के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवा सकती है.
इसमें ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में शामिल पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है.
3. अब समलैंगिकता अपराध नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है. चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने फैसले में धारा 377 को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा कि एलजीबीटी समुदाय को भी समान अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कौन व्यक्ति या महिला किस प्रकार के यौन संबध रखना चाहते हैं यह उनकी व्यक्तिगत च्वाइस है. यौन प्राथमिकता बाइलोजिकल और प्राकृतिक है, इसमें राज्य को दखल नहीं देना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन है. धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार के अनुच्छेद 14 का हनन करती है.
इस तरह अब पुरुषों को अपना पुरुष साथी और महिलाओं को अपना महिला साथी चुनने का अधिकार मिल गया है.
4. पटाखों पर कोर्ट का आंशिक बैन
सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर को पटाखे तैयार करने वालों की आजीविका के मौलिक अधिकार के साथ-साथ 1.3 अरब से अधिक लोगों के स्वास्थ्य पर विचार करते हुए यह फैसला लिया कि पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से बैन नहीं लगाया जायेगा.
कोर्ट ने कहा कि कम प्रदूषण फैलाने वाले ग्रीन पटाखों को ही बनाने और बेचने की अनुमति दी जाएगी. ज्यादा प्रदूषण करने वाले और तेज आवाज फैलाने वाले पटाखों की बिक्री और फोड़ने पर रोक रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे फोड़ने के लिए भी समय तय कर दिया है. दिवाली के मौके पर पटाखे फोड़ने का समय रात के 8 बजे से 10 बजे के बीच जबकि क्रिसमस और नए साल जैसे अन्य अवसरों पर 11:55 से 12:30 AM का समय तय किया है.
दिवाली में अधिक पटाखे जलने से PM2.5 और PM10 का स्तर बड़े पैमाने पर बढ़ता है. ये इस दिन प्रदूषण बढ़ने के मुख्य घटक हैं. इसके अलावा, पटाखे ‘बेरियम साल्ट नामक जहरीली गैसें और एल्यूमीनियम सामग्री को निकालते है, जो त्वचा की समस्याओं को पैदा करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. कुछ लोगों द्वारा इस बैन को धर्म से जोड़ दिया गया है इसलिए यह मामला थोडा विवादास्पद भी हो गया है.
5. अदालत की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग
सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर, 2018 को यह निर्णय सुनाया कि अब अदालत के कामकाज की लाइव स्ट्रीमिंग दिखाई जाएगी. तीन जजों की पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे. जजों ने कहा कि इससे जनता के 'जानने का हक' कानून को भी मजबूती मिलेगी. जाहिर है इससे कई पक्षों की नफरतें भी मिटेंगी और अदालती कार्यवाही पर भरोसा बढ़ेगा.
ज्ञातव्य है कि अभी दुनिया के 200 देशों में मात्र 14 ही ऐसे देश हैं जहां अदालत में कार्यवाही का लाइव प्रसारण दिखाया जाता है. इनमें कनाडा,इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं. तो अब भारत भी इन देशों में शामिल हो गया है.
हालाँकि संवेदनशील मामलों जैसे अयोध्या विवाद, आरक्षण जैसे मुद्दों की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं होगी. लाइव स्ट्रीमिंग को रोकने का फैसला उसी जज के पास होगा जो उस मामले की सुनवाई कर रहा है. बता दें कि प्रसारण का कॉपीराइट कोर्ट के पास होगा, जो कमर्शियल उद्येश्य के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकेगा.
6. SC/ST सरकारी कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण
5 जून, 2018 को न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अवकाशकालीन पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसलों पर रोक लगाते हुए कहा था कि केंद्र सरकार पदोन्नति में आरक्षण दे सकती है.
न्यायालय ने कहा, यह मामला संविधान पीठ में है, इसलिए इस मामले पर आखिरी फैसला लेने का अधिकार संविधान पीठ के पास है. संविधान पीठ जब तक इस मामले में फैसला नहीं लेती है, तब तक केंद्र सरकार एससी/एसटी के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देती रहेगी.
पांच जजों की संविधान पीठ में पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस संजय कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं. हालाँकि पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा अब रिटायर हो गये हैं.
संविधान पीठ ने SC/ST वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान बनाने से पहले किसी भी सरकार के समक्ष इन मानदंडों को रखा था:
1. पिछड़ापन,
2. अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं
3. कुल प्रशासनिक कार्यक्षमता
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि SC/ST वर्गों के लिए पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान बनाने से पहले सरकार को इस बात के योग्य आंकड़े जुटाने होंगे कि ये वर्ग कितने पिछड़े रह गए हैं, इनका प्रतिनिधित्व में कितना अभाव है और यह कि प्रशासन के कार्य पर क्या फर्क पड़ेगा.
7. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं से प्रवेश से बैन हटा
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने की इज़ाज़त 28 सितम्बर 2018 को दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं, जहाँ एक तरफ, महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है वहीँ दूसरी ओर उनको इतना अपवित्र माना जाता है कि उन्हें मंदिर में प्रवेश से भी रोका जाता है. यह उनके साथ समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
Image source:Hari Bhoomi
ध्यान रहे कि सबरीमाला मंदिर में उन्हीं महिलाओं को प्रवेश से रोका जाता था जो कि मासिक धर्म के योग्य हो जातीं हैं.
ऊपर दिए गए सभी मुद्दों का हम सभी लोगों का किसी ना किसी रूप में जुड़ाव अवश्य है. इसलिए वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ये सभी निर्णय हम सभी भारतीयों को किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रभावित करेंगे.