जलियांवाला बाग नरसंहार के 101 साल: कारण और उसके प्रभाव

जलियांवाला बाग नरसंहार आज ही के दिन 101 साल पहले 1919 में हुआ था। भारतीय इतिहास में कुछ ऐसी तारीख हैं जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता। 13 अप्रैल 1919 उन तारीखों में से एक है जो ब्रिटिशों के अमानवीय चेहरे को सामने ला देती है। आइये इस लेख के माध्यम से जलियांवाला बाग हत्याकांड के कारण और उसके प्रभाव के बारे में अध्ययन करते हैं।
Jallianwala Bagh Massacre HN
Jallianwala Bagh Massacre HN

कोरोना वायरस या COVID-19 महामारी के कारण जलियांवाला बाघ को जून तक बंद किया गया है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि यहां पर कोई कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया है और सन्नाटा ही पहली बार देश पर कुर्बान हुए शहीदों को श्रद्धांजलि देगा। ऐसे तो निर्माण कार्य के कारण जलियांवाला बाघ को 15 फरवरी से बंद किया गया था लेकिन 13 अप्रैल को यह खोला जाना था।

जलियांवाला बाघ हत्याकांड 

बात 13 अप्रैल 1919 की है जब एक प्रतिबंधित मैदान हो रहे जनसभा के एकत्रित निहत्थी भीड़ पर, बगैर किसी चेतावनी के, जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश सैनिकों ने अंधा-धुंध गोली चला दी थी। यह जनसभा जलियाँवाला बागमें हो रही थी, इसलिए इसे जलियाँवाला बाग हत्याकांड भी बोला जाता है। इस जनसभा की मुखबिरी हंसराज नामक भारतीय ने  किया था और उसके सहयोग से इस हत्याकांड की साज़िश रची गयी थी।

13 अप्रैल को यहाँ एकत्रित यह भीड़ दो राष्ट्रीय नेताओं –सत्यपाल और डॉ.सैफुद्दीन किचलू ,की गिरफ्तारी का विरोध कर रही थी। अचानक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जनरल डायर ने अपनी सेना को निहत्थी भीड़ पर,तितर-बितर होने का मौका दिए बगैर, गोली चलाने के आदेश दे दिए और 10 मिनट तक या तब तक गोलियां चलती रहीं जब तक वे ख़त्म नहीं हो गयीं। इन 10 मिनटों, (कांग्रेस की गणना के अनुसार) एक हजार लोग मारे गए और लगभग दो हजार लोग घायल हुए। गोलियों के निशान अभी भी जलियांवाला बाग़ में देखे जा सकते है,जिसे कि अब राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है। यह नरसंहार पूर्व-नियोजित था और जनरल डायर ने गर्व के साथ घोषित किया कि उसने ऐसा सबक सिखाने के लिए किया था और अगर वे लोग सभा जारी रखते तो उन सबको वह मार डालता। उसे अपने किये पर कोई शर्मिंदगी नहीं थी। जब वह इंग्लैंड गया तो कुछ अंग्रेजों ने उसका स्वागत करने के लिए चंदा इकट्ठा किया। जबकि कुछ अन्य डायर के इस जघन्य कृत्य से आश्चर्यचकित थे और उन्होंने जांच की मांग की । एक ब्रिटिश अख़बार ने इसे आधुनिक इतिहास का सबसे ज्यादा खून-खराबे वाला नरसंहार कहा।

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21 वर्ष बाद ,13 मार्च,1940 को,एक क्रांतिकारी भारतीय ऊधम सिंह ने माइकल ओ डायर की गोली मारकर ह्त्या कर दी क्योंकि जलियांवाला हत्याकांड की घटना के समय वही पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था। नरसंहार ने भारतीय लोगों में गुस्सा भर दिया जिसे दबाने के लिए सरकार को पुनः बर्बरता का सहारा लेना पड़ा। पंजाब के लोगों पर अत्याचार किये गए,उन्हें खुले पिंजड़ों में रखा गया और उन पर कोड़े बरसाए गए। अख़बारों पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए और उनके संपादकों को या तो जेल में डाल दिया गया या फिर उन्हें निर्वासित कर दिया गया। एक आतंक का साम्राज्य ,जैसा कि 1857 के विद्रोह के दमन के दौरान पैदा हुआ था,चारों तरफ फैला हुआ था। रविन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा उन्हें प्रदान की गयी नाईटहुड की उपाधि वापस कर दी। ये नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

जलियांवाला बाग हत्याकांड में कितने लोग मारे गए?
जलियांवाला बाग हत्याकांड के दौरान हुई मौतों की संख्या पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं था। लेकिन अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।

दिसंबर,1919 में अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें किसानों सहित बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। यह स्पष्ट है कि इस नरसंहार ने आग में घी का काम किया और लोगों में दमन के विरोध और स्वतंत्रता के प्रति इच्छाशक्ति को और प्रबल कर दिया।

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