Tulsi Gowda, Padma Shri Winner: जानें 'जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया', पद्मश्री तुलसी गौड़ा के बारे में

Tulsi Gowda, Padma Shri Winner: तुलसी गौड़ा को पर्यावरण की सुरक्षा में उनके योगदान के लिए 8 नवंबर 2021 को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आखिर कौन हैं 'जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया' तुलसी गौड़ा? आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं.
Tulsi Gowda
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Tulsi Gowda, Padma Shri Winner: तुलसी गौड़ा कर्नाटक की एक आदिवासी महिला हैं जो कर्नाटक में हलक्की स्वदेशी जनजाति (Halakki Indigenous Tribe) से संबंधित हैं. वे एक भारतीय पर्यावरणविद् हैं जो कि 30,000 से अधिक पौधे लगा चुकी हैं  और वन विभाग की नर्सरी की देखभाल करती हैं. औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद, उन्होंने पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में अपार योगदान दिया है.

तुलसी गौड़ा को पद्मश्री से सम्मानित किया गया 

तुलसी गौड़ा  के काम को भारत सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है. उन्हें 8 नवंबर 2021 को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया. राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने आदिवासी पर्यावरणविद् को पुरस्कार प्रदान किया, जो समारोह में नंगे पैर और पारंपरिक पोशाक पहने हुए आई थीं. 


आज, उन्हें 'जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया' (‘Encyclopedia of the Forest’) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्हें दुनिया भर में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों और पौधों की प्रजातियों के बारे में व्यापक ज्ञान है. वे किशोरी अवस्था से ही पर्यावरण की रक्षा में सक्रिय रूप से योगदान दे रही हैं और हजारों पेड़ लगा चुकी हैं.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक पर्यावरणविद् के रूप में उनकी कहानी कई वर्षों में कई लोगों के लिए प्रेरणा साबित हुई है.

तुलसी गौड़ा के बारे में 

तुलसी गौड़ा का जन्म भारतीय राज्य कर्नाटक में उत्तर कन्नड़ जिले, बस्ती होन्नल्ली गांव के भीतर हलक्की आदिवासी परिवार में हुआ था.

तुलसी गौड़ा का पहला नाम सीधे प्रकृति से जुड़ा हुआ है तुलसी जो कि हिंदू धर्म में एक पवित्र पौधा माना जाता है.

वह एक गरीब परिवार में पैदा हुई थीं और जब वह केवल 2 वर्ष की थीं तब उन्होंने अपने पिता को खो दिया था. काफी छोटी उम्र में ही उन्होंने अपनी माँ के साथ एक स्थानीय नर्सरी में काम करना शुरू कर दिया था. गौड़ा कभी स्कूल नहीं जा पाई और उनकी शादी तब हुई जब वह अपनी किशोरावस्था में भी नहीं थीं.

गौड़ा ने पर्यावरण की रक्षा में सक्रिय योगदान दिया है और हजारों पेड़ लगाए हैं. वह एक अस्थायी स्वयंसेवक के रूप में वन विभाग में शामिल हुईं, जहाँ उन्हें प्रकृति संरक्षण के प्रति समर्पण के लिए पहचाना गया. बाद में उन्हें विभाग में स्थायी नौकरी ऑफर की गई. वह 15 और वर्षों के बाद 70 वर्ष की आयु में रिटायर हुईं.

इस नर्सरी में अपने पूरे समय के दौरान, उन्होंने प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से प्राप्त भूमि के अपने पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके वन विभाग द्वारा वनीकरण के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए सीधे योगदान दिया और काम किया.

तुलसी जी ने न केवल अनगिनत पौधे लगाए हैं जो आगे उगेंगे भी, और कई बड़े होकर ऐसे पेड़ बन गए हैं जो दुनिया को बेहतर जीवन जीने में मदद करते हैं, उन्होंने शिकारियों को वन्यजीवों को नष्ट करने से रोकने में भी मदद की है, और कई जंगल की आग को रोकने के लिए भी काम किया है.

जनजातीय लोगों पर राष्ट्रीय समिति की रिपोर्ट (National Committee Report on Tribal People) के अनुसार "जनजातीय क्षेत्र खनिजों से भरपूर हैं. ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्यों में पर्याप्त खनिज भंडार हैं- उनके पास भारत का 70 प्रतिशत कोयला भंडार, 80 प्रतिशत उच्च श्रेणी का लोहा, 60 प्रतिशत बॉक्साइट और क्रोमियम का भंडार है. एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि शीर्ष खनिज उपज वाले जिलों में से आधे आदिवासी हैं और उनके पास 28 प्रतिशत का वन कवर भी है, जो राष्ट्रीय औसत 20.9 प्रतिशत से अधिक है."

तुलसी गौड़ा अब अपना समय और भी पेड़ लगाने में बिताती हैं, साथ ही बच्चों को भी ऐसा करने का महत्व और कला सिखाती हैं. तुलसी गौड़ा के अनुसार “हमें जंगलों की जरूरत है. जंगलों के बिना सूखा होगा, फसल नहीं होगी, सूरज असहनीय रूप से गर्म हो जाएगा. जंगल बढ़ेगा तो देश भी बढ़ेगा. हमें और जंगल बनाने की जरूरत है". 

तुलसी गौड़ा को किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?

कर्नाटक वानिकी विभाग में अपने व्यापक कार्यकाल के अलावा, तुलसी गौड़ा को बीज विकास और संरक्षण में अपने काम के लिए कई पुरस्कार और मान्यता मिली है.

इस वर्ष के पद्म श्री के अलावा, तुलसी गौड़ा को कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है - कर्नाटक राज्य सरकार का राज्योत्सव पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार, इंदवालु एच. होनाय्या समाज सेवा पुरस्कार (Indavaalu H. Honnayya Samaj Seva Award) और श्रीमती कविता स्मारक पुरस्कार (Shrimathi Kavita Smarak Award), इत्यादि.

"मुझे खुशी है कि मैंने यह पुरस्कार जीता. मैंने कई अन्य पुरस्कार भी जीते हैं. इन सभी पुरस्कारों के बावजूद, पौधे मुझे सबसे ज्यादा खुशी देते हैं, ”तुलसी गौड़ा कहती हैं.

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