Prithviraj Chauhan: जानें पृथ्वीराज चौहान के वंशज, उनकी वीरता और मोहम्मद ग़ोरी के साथ हुए युद्ध के बारे में

Prithviraj Chauhan: पृथ्वीराज चौहान को भारत के सबसे प्रसिद्ध और चौहान (चहमना) शासकों के राजपूत योद्धा राजा के रूप में जाना जाता है. उन्होंने राजस्थान में सबसे मजबूत राज्य की स्थापना की थी. हाल ही में बॉलीवुड फिल्म 'पृथ्वीराज चौहान' का टीज़र ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया है. फिल्म पृथ्वीराज चौहान के सम्मान में बनाई गई है, जिसमें अक्षय कुमार, संजय दत्त, सोनू सूद और पूर्व मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर ने अभिनय किया है. ट्रेलर हाल ही में Youtube पर रिलीज़ किया गया है.
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— sonu sood (@SonuSood) November 15, 2021
पृथ्वीराज चौहान और उनके वंशज के बारे में
दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले चौहान वंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय) का जन्म 1166 AD में अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के पुत्र के रूप में हुआ था. वे एक मेधावी बच्चा थे और सैन्य कौशल सीखने में बहुत तेज़ थे. साथ ही वे शासकों के चहमान (चौहान) वंश के एक राजपूत योद्धा राजा थे, जिनका राजस्थान में सबसे मजबूत राज्य था.
वे आवाज़ के दम पर ही लक्ष्य को भेदने का हुनर रखते थे. पृथ्वीराज चौहान 1179 में तेरह वर्ष की आयु में अजमेर की गद्दी पर बैठे, जब उनके पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी.
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पृथ्वीराज चौहान को योद्धा राजा के रूप में क्यों जाना जाता था?
दिल्ली के शासक उनके दादा अंगम ने उनके साहस और बहादुरी के बारे में सुनकर उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. एक बार पृथ्वीराज चौहान ने बिना किसी शस्त्र के अकेले ही एक शेर को मार डाला था. इसलिए उन्हें योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था.
जब वे दिल्ली की गद्दी पर बैठे तो उन्होंने यहां किला राय पिथौरा का निर्माण कराया. उनका पूरा जीवन वीरता, साहस, वीरतापूर्ण कर्मों और गौरवशाली कारनामों की एक सतत श्रृंखला थी. उन्होंने मात्र तेरह वर्ष की आयु में गुजरात के शासक भीमदेव को पराजित किया था.
अपने दुश्मन जयचंद की बेटी संयुक्ता के साथ उनकी प्रेम कहानी काफी प्रसिद्ध है. पृथ्वीराज के जीवन के बारे में उनके मित्र चंदबरदाई ने अपनी पुस्तक 'पृथ्वीराज रासो' में लिखा है.
19वीं शताब्दी की शुरुआत में अजमेर में ब्रिटिश प्रशासक कर्नल जेम्स टॉड (Colonel James Tod) ने रासो पर अपना शोध आधारित किया. यह तब कई संस्करणों में व्यापक रूप से उपलब्ध थी (अलग-अलग लंबाई के संस्करण, अलग-अलग सबप्लॉट के साथ). इस पुस्तक को पढ़ने के बाद, उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के नाम के साथ "अंतिम महान हिंदू सम्राट" "Last great Hindu emperor" की उपाधि जोड़ दी.
उनका साम्राज्य उत्तर में स्थानविश्वर (Sthanvishvara) (थानेसर; कभी 7वीं शताब्दी के शासक हर्ष की राजधानी) से लेकर दक्षिण में मेवाड़ तक फैला हुआ था.
उन्होंने अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह को कुचल दिया और 1182 में जेजाभुक्ति (Jejabhukti) के शासक परमदीन देव चंदेला (Parmardin Dev Chandela) को भी हराया. अपने आक्रामक अभियानों के दौरान, उन्होंने कन्नौज के Gahadavala शासक जयचंद्र के साथ भी संघर्ष किया.
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता
किंवदंती के अनुसार, जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी का कारण उनके और जयचंद की बेटी संयोगिता के बीच का रोमांस था. कहा जाता है कि पृथ्वीराज ने अपनी बेटी को उसके स्वयंवर समारोह से अपहरण कर लिया था जब जयचंद ने दरवाजे पर एक गार्ड के रूप में पृथ्वीराज का पुतला लगाकर उसका अपमान करने की कोशिश की थी.
ऐसा भी कहा जाता है कि संयोगिता ने सभी राजाओं को पीछे छोड़ते हुए उस पुतले के गले में अपनी माला डाल दी, बाद में पृथ्वीराज के साथ भाग गईं. जयचंद्र पृथ्वीराज की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं और क्षेत्रीय विस्तार की खोज पर अंकुश लगाने के लिए उत्सुक थे.
माना जाता है कि यह घटना 1191 में तराइन का युद्ध अथवा तरावड़ी का युद्ध की पहली लड़ाई के बाद और 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई से कुछ समय पहले हुई थी, लेकिन संयोगिता प्रकरण की ऐतिहासिकता बहस का विषय बनी ही रही.
नीचे देखें पृथ्वीराज का ट्रेलर:
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद ग़ोरी के बीच युद्ध
पृथ्वीराज चौहान ने 1191 में मोहम्मद ग़ोरी (मूल नाम: मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम) के खिलाफ तराइन की लड़ाई लड़ी. पहली लड़ाई में, मोहम्मद ग़ोरी गंभीर रूप से घायल हो गया था और उसकी सेना केवल एक गंभीर रूप से बड़ी सेना के साथ वापस लौटने के लिए पीछे हट गई थी.
परिणामस्वरूप मोहम्मद ग़ोरी ने फिर से भारत पर हमला किया और तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उन्हें पकड़ लिया गया. ऐसा कहा जाता है कि उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया गया, उनकी आँखों को लाल-गर्म लोहे से जला दिया गया और उन्हें अंधा बना दिया गया था. लेकिन पृथ्वीराज ने हिम्मत नहीं हारी थी.
माना जाता है कि उनके दरबारी कवि और दोस्त चंदबरदाई की मदद से उन्होंने मोहम्मद ग़ोरी को अपने "शब्दभेदी बाण" से मार डाला था. उनके द्वारा बनाई गई ध्वनि के आधार पर ही लक्ष्य को भेदने का उनका कौशल काम आया और मोहम्मद ग़ोरी द्वारा आयोजित तीरंदाजी प्रतियोगिता के दौरान उन्होंने अपने कौशल का प्रदर्शन भी किया था.
किंवदंती के अनुसार, जब मोहम्मद ग़ोरी ने उनकी प्रशंसा की तो उन्होंने उसकी आवाज सुनी और उस पर हमला कर दिया. मोहम्मद ग़ोरी मारा गया. दुश्मनों के हाथों मौत से बचने के लिए उन्होंने और उनके दोस्त चंदबरदाई ने एक-दूसरे को चाकू मार दिया.
चंदबरदाई ने अपनी पुस्तक पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के जीवन की कहानी का संकलन किया है. 1192 AD में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो गई, उनकी मृत्यु के साथ वीरता, साहस, देशभक्ति और सिद्धांतों का एक काल समाप्त हो गया.
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