क्या किसानों के पास पराली जलाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है?

वायु प्रदूषण की समस्या विश्व के लगभग हर देश में बढ़ती ही जा रही है. वर्तमान में यह समस्या भारत की राजधानी दिल्ली में विकट रूप में दिखाई दे रही है. दरअसल दिवाली के समय या यूं कहें कि अक्टूबर और नवम्बर महीने के दौरान हर साल दिल्ली और उससे सटे क्षेत्रों में हर साल धुंध छा जाती है जिसके मुख्य कारणों में वाहनों, फैक्टरियों का धुआं, पटाखों का धुआं और पंजाब और हरियाणा में जलायी जाने वाली पराली होते हैं.
पराली किसे कहते हैं (What is Parali / Stubble)
बरसात का मौसम धान की पैदावार के लिए बहुत ही अनुकूल होता है इसलिए पंजाब और हरियाण सहित पूरे देश में धान की फसल पैदा की जाती है लेकिन अक्टूबर और नवम्बर में ये फ़सल हार्वेस्टर मशीन की सहायता से काट ली जाती है लेकिन इस कटाई में फसल का सिर्फ अनाज वाला हिस्सा अर्थात धान के पौधे के ऊपर का हिस्सा ही काटा जाता है और बाकी का हिस्सा खेत में ही लगा रहता है जिसे पराली कहते हैं.
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किसान पराली क्यों जलाते हैं (Causes of Stubble Burning)
चूंकि अक्टूबर और नवम्बर में किसान को रबी की फसल की बुबाई के लिए खेत को खाली करना होता है इसलिए किसान खेत में लगी हुई पराली को जमीन से काटने की बजाय उसमें आग लगा देते हैं जिससे खेत खाली हो जाता है और गेहूं या अन्य किसी फसल की बुबाई कर देते हैं.
नोट: ध्यान रहे कि जब मशीनों का अविष्कार नहीं हुआ था तब किसान धान की फसल का पूरा पौधा हसिये की मदद से काटता था जिससे खेत में पराली बचती ही नहीं थी. (चित्र देखें)
(इस तरह से फसल काटने पर खेत में पराली नहीं बचती है)
इसी जलायी गयी पराली का धुंआ उड़ता हुआ दिल्ली और राजधानी क्षेत्र में आ जाता है जिससे यहाँ पर दिन में ही धुंध छा जाती है और लोग साफ सुथरी हवा के लिए तरसने लगते हैं.
पराली का धुंआ इस कारण से और खतरनाक हो जाता है क्योंकि अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में हवा की गति कम हो जाती है.
पराली जलाने के नुकसान (Disadvantages of Stubble Burning):
1. ऐसा नहीं है कि पराली जलाने से किसानों का नुकसान नहीं होता है. सभी जानते हैं कि केंचुआ किसानों का दोस्त माना जाता है क्योंकि यह जमीन को भुरभुरा बनाता है जिससे उसकी उर्वरक शक्ति बढती है लेकिन पराली जलाने से केंचुआ भी मर जाता है.
2. पराली जलाने से खेत की मिटटी में पाया जाने वाला राइजोबिया बैक्टीरिया (Rhizobia bacteria) भी मर जाता है. यह बैक्टीरिया पर्यावरण की नाइट्रोजन को जमीन में पहुंचाता है जिससे खेत की पैदावार क्षमता बढ़ती है.
3. राइजोबिया बैक्टीरिया के खत्म हो जाने से किसानों को खेती में नाइट्रोजन वाली खाद ज्यादा मात्रा में डालनी पड़ती है जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है और किसान को मिलने वाला लाभ कम हो जाता है.
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पराली की समस्या बहुत पुरानी नहीं है दरअसल यह समस्या तकनीकी के विकास का दुष्परिणाम है क्योंकि जब मशीन नही थी तो किसान फसल को पूरा काटते थे लेकिन अब हार्वेस्टर से कटाई के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा है.
समस्या का समाधान (Solution of Parali/ Stubble Burning)
1. इस समस्या का सबसे बड़ा समाधान इस बात में है कि यदि फसल पूरी तरह से काटी जाए क्योंकि जब आधा कटा हुआ धान ही नहीं होगा तो फिर किसानों के पास जलाने के लिए पराली ही नहीं होगी.
2. अब इस तरह की तकनीकी भी विकसित हो गयी है कि पराली का इस्तेमाल सीट (seat) बनाने में किया जा सकता है.
3. ऐसी मशीनें हैं जो फसल अवशेषों को बड़े बड़े बंडलों में बाँध सकतीं है जिनको बाद में विद्युत उत्पादन के लिए थर्मल प्लाटों को बेचकर पैसे कमाए जा सकते हैं.
4. इस पराली को गड्ढों में भरकर पानी डालकर गलाया जा सकता है जिससे कि कम्पोस्ट खाद बनायी जा सकती है जो कि खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है.
(कम्पोस्ट खाद)
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ''पराली से प्रदूषण पूरे उत्तर भारत मे होता है. दिल्ली से ज्यादा उन किसानों के लिए चिंता होती है जो ये पराली जलाते हैं. पूसा के एक एक्सपेरिमेंट पर दिल्ली सरकार दिल्ली में छिड़काव कर रही है. इससे खाद बनेगी. करनाल में पराली से CNG बनाने का बहुत बड़ा कारखाना शुरू हो गया है. इसमें किसान को पैसा मिलता है. किसान का कोई खर्च नही है. गैस भी IGL खरीद लेती है.''
उन्होंने आगे कहा कि "पंजाब में पराली से कोयला बनाने वाली सात फैक्ट्री चल रही हैं. ये NTPC को कोयला बेचती हैं. अगर हम सारी सरकारें मिलकर ऐसे काम करने लगें कि पराली जलाई जाने के बजाए ऐसी फैक्ट्री में लग जाए. इससे कितना फायदा होगा.''
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