भारत सरकार और आरबीआई के बीच रिज़र्व फण्ड ट्रान्सफर विवाद क्या है?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपने स्वयं के रिज़र्व से अगस्त 2019 में 1.76 लाख करोड़ केंद्र सरकार को लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर देने का फ़ैसला किया था. लेकिन इसी फण्ड विवाद को लेकर रिज़र्व बैंक और सरकार के बीच कुछ साल पहले खींचतान भी हुई थी. आइये इसी लेख में जानते हैं कि यह हस्तांतरण किस नियम के तहत और क्यों किया जाता है?
RBI vs Finance Ministry
RBI vs Finance Ministry

हर देश में एक केन्द्रीय बैंक होता है जो कि उसकी सरकार के अधीन कार्य करता है. भारत का केन्द्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) जिसकी स्थापना RBI एक्ट 1935 के आधार पर 1 अप्रैल 1935 को की गयी थी. कुछ देशों के केन्द्रीय बैंक को सरकार के हस्तक्षेप से स्वतंत्रता हासिल होती है अर्थात वे स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं.

हालाँकि भारत का केन्द्रीय बैंक सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार कार्य करता है और जरूरत पड़ने पर उसको रुपये उधार भी देता है और सरकार के लिए वित्तीय सलाहकार का कार्य भी करता है.

चूंकि RBI के पास देश के कमर्शियल बैंक CRR के दिशा निर्देशों के कारण अपनी कुल जमा का कुछ हिस्सा (वर्तमान में 4%) RBI के पास जमा करते हैं और RBI इस जमा पर कोई ब्याज नहीं देता है इसके अलावा अन्य बैंकों पर पेनाल्टी भी लगता है जिसके कारण इसके पास हर साल बड़ी मात्रा में अतिरिक्त धन इकठ्ठा हो जाता है जिसे सरप्लस फण्ड कहा जाता है. यही अतिरिक्त धन RBI सरकार को भेज देती है. वर्तमान में RBI और भारत सरकार के बीच विवाद की जड़ यही सरप्लस फण्ड है.

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रिजर्व बैंक के पास कितना आरक्षित कोष है? (Reserve Fund with RBI)

रिजर्व बैंक के पास 9.7 लाख करोड़ रुपए का आरक्षित कोष है. इसमें से कॉन्टिजेंसी फंड (जिसे नहीं छूना है) 2.3 लाख करोड़ रुपए है. करंसी एवं स्वर्ण पुनर्मूल्यांकन खाते में बैंक ने 6.92 लाख करोड़ रुपए रखे हैं. पिछले वित्त वर्ष में यह आरक्षित कोष 8.38 लाख करोड़ था.

बैंक के आरक्षित कोष में 3 माध्यमों से धन आता है:-

1. सरकारी बॉन्ड पर ब्याज और विदेशी मुद्रा में निवेश से हुई आय

2. सरकार को डिविडेंड देने के बाद बची आय

3. करंसी एवं स्वर्ण पुनर्मूल्यांकन के जरिए

4. करेंसी स्वैप अग्रीमेंट होने से 

5. खुले बाजार की क्रियाओं से (Open market operations)

दुनिया के केंद्रीय बैंकों से तुलना

दुनिया में फण्ड रखने के मामले में आरबीआइ का स्थान दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों में चौथा है. आरबीआइ का परिसंपत्ति की तुलना में नकदी का कोष 26.8% है. दुनिया में नॉर्वे के केंद्रीय बैंक का सर्वाधिक 40%, रूस का 36%, मलेशिया का 30%, भारत का 26.8% है, अमेरिका का 0.9% और चीन का 0.1% है.

सरकार और RBI के बीच विवाद का कारण: (RBI vs government surplus fund transfer conflict)

भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के अनुसार, RBI अपना जोखिम विश्लेषण करता है और हर साल केंद्रीय बैंक, खराब या संदिग्ध ऋण, कर्मचारियों के लिए योगदान, परिसंपत्तियों के मूल्यह्रास और अवमूल्यन निधि (superannuation funds) के प्रावधान के बाद अपने लाभ का अतिरिक्त हिस्सा सरकार को भेज देता है. हालाँकि इस ट्रान्सफर के लिए कोई मानक पहले से तय नहीं है.

इन दोनों के बीच विवाद का मुख्य कारण यह है कि RBI अप्रत्याशित जोखिमों और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा अतिरिक्त रिज़र्व अपने पास रखना चाहता है जबकि केंद्र सरकार अपने वित्तीय घाटे के लक्ष्य (2018 में 3.3%) को प्राप्त करने के लिए अधिक फण्ड चाहता है.

सरकार चाहती है कि RBI; बैंकिंग क्षेत्र को और अधिक तरलता दे. इसके अलावा सरकार 11 सरकारी बैंकों पर अपने उधार प्रतिबंधों को खत्म करने लिए सरकार रिजर्व बैंक से आग्रह कर रही है. 11 बैंकों को तब तक के लिए उधार देने से रोक दिया गया है, जब तक उनका कर्ज भार खत्म नहीं होता है. सरकार का कहना है कि इन प्रतिबंधों के कारण मध्यम और छोटे वर्ग के व्यवसायों को कर्ज मिलना मुश्किल हो गया है जिससे देश में कम रोजगार पैदा हो रहा है.

अब तक RBI ने सरकार को कितना फण्ड ट्रान्सफर किया किया है?

केंद्रीय बैंक, जो जुलाई-जून वित्तीय वर्ष का अनुसरण करता है, ने 2017-18 के लिए 50,000 करोड़ रुपये की अधिशेष राशि के हस्तांतरण को मंजूरी दी थी. भारत सरकार ने अपने बजट में RBI से 45,000 रुपये मिलने की उम्मीद जताई थी लेकिन RBI ने इसे 5,000 करोड़ रुपये अधिक देने की मंजूरी दी थी.

वित्त वर्ष 2018 में सरकार कथित तौर पर RBI पर उन्हें 13,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त देने का दबाव डाल रही थी, जिसके बाद RBI ने इस वर्ष मार्च में अंतरिम लाभांश के रूप में 10000 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए थे. हालाँकि यह वित्त वर्ष 2018 के लिए घोषित 50,000 करोड़ रुपये के अधिशेष हस्तांतरण का एक हिस्सा था.

सारांश के तौर यह कहा जा कसता है कि इन दोनों संस्थाओं को अपने व्यक्तिगत हितों को एक तरफ रखकर समग्र देश के हितों की भलाई के लिए सोचना चाहिए. अगर इन दोनों सम्माननीय संस्थाओं के विवाद सार्वजानिक रूप से सामने आयेंगे तो इससे देश की छवि को नुकसान होगा और विदेशी निवेशकों का देश की अर्थव्यवस्था के प्रति भरोसा कम होगा.

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