साइबेरियन क्रेन या स्नो क्रेनः तथ्यों पर एक नजर
साइबेरियन क्रेन (ल्यूकोगेरानस ल्यूकोगेरानस– Leucogeranus leucogeranus) साइबेरियन ह्वाइट क्रेन या स्नो क्रेन ( हिम सारस) के तौर पर भी जाने जाते हैं। साइबेरियन क्रेन करीब– करीब बर्फ जैसे सफेद होते हैं, सिवाए उनके काले प्राथमिक पंख जो उड़ने के दौरान दिखाई देते हैं | इनकी आबादी पश्चिमी एवं पूर्वी रूस के आर्कटिक टुंड्रा में मिलती है। पूर्वी आबादी सर्दियों के दौरान चीन जबकि पश्चिमी आबादी सर्दियों में ईरान, भारत और नेपाल के प्रवास पर चली जाती है। क्रेन (सारसों) के बीच ये सबसे लंबी दूरी का प्रावस करते हैं।
साइबेरियन क्रेन का स्थानः
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भारत में साइबेरियन क्रेन का वितरण:
साइबेरियन क्रेन की तस्वीर:
Image source: animaliaz-life.com
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साइबेरियन क्रेन के बारे में तथ्यों पर एक नजर:
ऑर्डर (Order): ग्रुईफोर्म्स (Gruiformes)
फैमली (Family): ग्रूईडिए (Gruidae)
श्रेणी (Genus): ग्रुस (Grus)
प्रजाति (Species): जी. ल्यूकोगेरानस (G. leucogeranus)
उंचाई (Height): 140 सेमी, 5 फीट
वजन: 4.9 से 8.6 किग्रा
आबादी: 2,900 से 3,000
रुझान: गंभीर संकटग्रस्त, आबादी तेजी से कम हो रही है
आहार: सर्वाहारी ( पौधे, छोटे कृन्तक, केंचुए, मछलियां)
आवास: झीलें और दलदली जमीन
औसत शिकार: 2
परभक्षी: लोमड़ी, चील, जंगली बिल्लियां
पंखों का फैलाव: 2.1 से 2.3 मी
औसत उम्र: 15 से 30 वर्ष
साइबेरियन क्रेन के बारे में दिलचस्प और रोचक तथ्यः
साइबेरियन क्रेन को कैसे पहचानें?
साइबेरियन क्रेन को पक्षियों के झुंड में पहचानना बहुत आसान है। इसका अनूठा लाल रंग वाला मास्क इसके सामने के माथे, चेहरे और सिर के किनारों को कवर करता है और आंखों के पीछे जाकर खत्म होता है।
हालांकि इस प्रजाति को दूसरी प्रजातियों के मुकाबले पहचानना आसान है, लेकिन नर और मादा साइबेरियन क्रेन में भेद करना वाकई बहुत मुश्किल है। मादा क्रेन आकार में थोड़ी छोटी होती है और उसकी चोंच भी थोड़ी सी छोटी होती है।
तस्वीर स्रोतः www.savingcranes.org
इसकी आंखों का रंग पीला होता है जबकि पैर और पंजों का रंग लाल होता है।
जैसा कि नाम से ही पता चलता है, साइबेरियन क्रेन साइबेरिया के निवासी होते हैं। हालांकि पहले, ये पक्षी साइबेरिया के मध्य हिस्से में पाए जाते थे लेकिन अब ये सिर्फ यहां के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में ही पाए जाते हैं। इन्हें प्रजनन, खाने और रहने के लिए जलीय माहौल जैसे झीलें और दलदल वाली जगहें चाहिए है।
साइबेरियन क्रेन के संभोग व्यवहारः
इन पक्षियों का संभोग का मौसम मई से शुरु होता है और जून तक चलता है। इनके संभोग में शरीर की समन्वित गतिविधियां और ध्वनि होती है, इसके जरिए ही वे अपने भागीदार को आकर्षित करते हैं। साइबेरियन क्रेन एक विशेष मुद्रा में खड़े होते हैं, अपने सिर को पीछे ले जाते हैं और अपनी चोंच को आसमान की तरफ करते हैं।
संभोग के लिए नर अपने पंखों को अपने पीठ तक उठा लेता है जबकि मादा अपने पंखों को नीचे की ओर ही रहने देती है।
अंडे कैसे सेते हैं?
साइबेरियन क्रेन अपने घोंसले, दलदल, कीचड़ से भरी जमीन या अन्य गीले स्थानों में बनाती हैं जहां पानी ताजा और जिसकी दृश्यता अच्छी हो। एक मादा औसतन दो अंडे देती है और नर और मादा दोनों 29 दिनों तक उसे सेते हैं। अपनी पहली उड़ान भरने के लिए चूजों को 70-80 दिनों का समय लगता है।
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साइबेरियन क्रेन क्या खाते हैं:
प्रकृति से साइबेरियन क्रेन सर्वाहारी होते हैं लेकिन यह गौर करने वाली बात है कि ज्यादातर समय, प्रजनन के मौसम के अपवाद के साथ, ये पक्षी ज्यादातर शाकाहारी आहार पर निर्भर करते हैं। इनमें गीली मिट्टी में आसानी से खोदने की अच्छी क्षमता होती है इसलिए ये दलदली जमीनों से आसानी से पौष्टिक जड़ें और कंद–मूल निकालने में सक्षम होते हैं। कुछ को केंचुए, केंकड़े और छोटे कीड़े– मकोड़ों को भी खाते देखा गया है।
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साइबेरियन क्रेन कम क्यों होते जा रहे हैं?
मनुष्यों द्वारा साइबेरियन क्रेन के आवास पर कब्जा किए जाने की वजह से ये तेजी से कम हो रहे हैं। एक वजह और है, प्रवास मार्ग में मनोरंजन और मांस के लिए इन पक्षियों का शिकार किया जाता है।
ये प्रवास पर क्यों जाते हैं?
ये प्रवासी पक्षी हैं और गर्म-सर्दियों (warmer winters) वाले सभी उष्णकटिबंधीय देशों में जाते हैं। इनके निवास स्थान: रूस और साइबेरिया में सर्दियों में बहुत ठंड होती है, इसलिए गर्म जलवायु की तलाश में ये पूर्व दिशा में उड़ान भरते हैं।
शीतकालीन जलवायु में पहुंचने, खासकर शक्तिशाली हिमालय पर्वतमाला को पार करने के लिए, इन पक्षियों को बहुत उंचाई पर उड़ान भरना होता है।
इसलिए, ये पक्षी भारत समेत कई दक्षिण– पूर्वी एशियाई देशों की यात्रा करते हैं। राजस्थान का भरतपुर पक्षी अभयारण्य प्रवासी साइबेरियन क्रेन के लिए प्रसिद्ध है।
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