स्मॉग टॉवर क्या होता है और यह कैसे काम करता है?

दुनिया के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बना हुआ है. डब्लूएचओ के नए डेटा से पता चलता है कि दुनिया में 10 में से 9 लोग उच्च स्तर के प्रदूषकों से युक्त हवा में सांस ले रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से हर साल लगभग 7 मिलियन लोग मरते हैं जबकि अकेले भारत में इस कारण से मरने वालों की संख्या 1.2 मिलियन है. भारत की राजधानी विश्व से सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है.
वायु प्रदूषण की समस्या पूरे विश्व में फैलती जा रही है.चीन के कई शहरों में हालात बहुत बुरे रह चुके हैं अब चीन ने इस दिशा में काम करते हुए स्मॉग टॉवर भी लगा दिए हैं ताकि लोगों को स्वस्थ हवा दी जा सके.
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भारत भी इसी तरह की पहल करने की योजना बना रहा है. दिल्ली की एक कंपनी 'कुरिन सिस्टम्स' को हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े वायु शोधक का पेटेंट मिला है. यह कंपनी दिल्ली में कुछ IIT की मदद से स्मोग टॉवर लगाने की योजना बना रही है.
स्मॉग टॉवर क्या होता है? (What is Smog Tower)
स्मॉग टॉवर एक चिमनी के आकार की संरचना है जो कि रेडीमेड कंक्रीट से भी बनायी जा सकती है. दिल्ली में लगाये जाने वाले स्मॉग टॉवर का आकार 40 फीट लम्बा और 20 फीट गोलाई वाला होगा. इस प्रकार यह एक तरह का बहुत बड़ा एयर प्यूरीफायर होता है.
यह डिवाइस सभी 360-डिग्री कोणों से हवा को सोख सकता है और एक घंटे में लगभग 13 लाख क्यूबिक मीटर स्वच्छ हवा उत्पन्न करने में सक्षम होगा.
हालांकि इसकी क्षमता प्रतिदिन 32 मिलियन क्यूबिक मीटर हवा को साफ करने की क्षमता होगी.
इस विशाल एयर प्यूरीफायर को, स्वच्छ हवा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए 48 पंखों की जरूरत होगी. इस उपकरण के निर्माता का दावा है कि यह प्यूरीफायर 3 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले 75,000 लोगों को स्वच्छ हवा प्रदान कर सकता है.
यह हवा को कैसे फ़िल्टर करता है? (How does it filter the air)
यह स्मॉग टॉवर अपने आस-पास की प्रदूषित हवा को सोख लेता है और फिर इसमें लगे कई फिल्टरों की सहायता से इसे साफ़ करके दुबारा पर्यावरण में छोड़ देता है. एक एयर प्यूरीफायर जितना बड़ा होगा, उतनी ही अधिक हवा को साफ करेगा. इनको बिजली और सोलर पॉवर से भी चलाया जा सकता है.
हवा को शुद्ध करने के लिए इसमें; अत्यधिक प्रभावशाली H14 ग्रेड हाईली इफेक्टिव पार्टिकुलेट अरेस्ट (HEPA) फिल्टर का उपयोग किया जाएगा. यह फिल्टर, हवा में मौजूद 99.99% पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) को साफ कर सकता है.
यह पीएम 2.5, पीएम 10 जैसे हानिकारक कणों से हवा को शुद्ध करता है, जो कि प्रदूषण के मुख्य कारक माने जाते हैं.
हालाँकि इसके पहले दिल्ली में ITO के पास लगाया गया एयर प्यूरीफायर ‘वायु’ सफल नहीं हो सका था क्योंकि इसके फ़िल्टर 4-5 दिन में ख़त्म हो जाते थे और ज्यादा हवा को साफ़ भी नहीं कर पा रहे थे.
ज्ञातव्य है कि दुनिया का पहला स्मॉग फ्री टॉवर नीदरलैंड में 2015 में लगा था.
स्मॉग टॉवर की लागत (Cost of the Smog Tower)
प्रत्येक स्मॉग टॉवर की लागत लगभग 10 से 12 करोड़ रुपये आती है, जिसमें फ़िल्टरिंग उपकरण, निगरानी प्रणाली और टॉवर का निर्माण शामिल है.
इस उपकरण के समर्थकों का कहना है कि यह गंभीर वायु गुणवत्ता से कुछ राहत पाने के लिए एक अच्छी तकनीकी है, दूसरी ओर, इस उपकरण के प्रतिपक्षी कहते हैं कि यह बहुत महंगा है और इसकी प्रभावशीलता को जानने के लिए कोई प्रामाणिक डेटा उपलब्ध नहीं है.
इसलिए हमें इस स्मॉग टॉवर के वास्तविक प्रभावों को जानने के लिए कुछ और समय का इंतजार करना होगा. लेकिन यह कहा जा सकता है कि देश के नागरिकों को स्वच्छ हवा प्रदान करने के लिए यह एक अच्छा कदम है.
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