जानें भारत में विधानसभा किन परिस्तिथियों में भंग की जा सकती है?

राज्य विधानमंडल में राज्यपाल, विधानसभा और विधान परिषद् शामिल होते हैं. विधानसभा को निचला सदन और विधान परिषद् को उच्च सदन कहा जाता है. इस दोनों सदनों में प्रमुख अंतर यह है कि विधानसभा लोगों के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से बनती है इसलिए इसको भंग किया जा सकता है जबकि विधान परिषद् को भंग नहीं किया जा सकता है.
भारतीय संविधान के छठे भाग में अनुच्छेद 168 से 212 तक राज्य विधान मंडल के संगठन, गठन, कार्यकाल, विशेषाधिकारों और शक्तियों के बारे में बताया गया है.
इस लेख में हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि विधानसभा को राज्यपाल किन परिस्तिथियों में भंग कर सकता है.
किसी प्रदेश में स्थित विधानसभा भी लोकसभा की तरह भंग किया जा सकने वाला सदन होता है. इसका सामान्य कार्यकाल आम चुनाव के बाद पहली बैठक से लेकर 5 वर्षों तक होता है. पांच साल बाद यह स्वतः समाप्त हो जाती है और राज्य में नए चुनाव कराने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है.
हालाँकि इसे राज्यपाल द्वारा किसी भी समय (5 साल से पहले) भंग किया जा सकता है. विधानसभा भंग होने के बाद सभी विधयाकों का पद समाप्त हो जाता है और उनको मिलने वाले वेतन भत्ते विधानसभा भंग होने की तारीख से बंद हो जाते हैं हालाँकि पेंशन और अन्य फायदे मिलने शुरू हो जाते हैं.
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आइये जानते हैं कि किन परिस्तिथियों में विधानसभा को भंग किया जा सकता है;(When can an Legislative Assembly be dissolved)
1. जब राज्य में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और अन्य दलों के नेता मिलकर सरकार नहीं बना पाते हैं तो राज्यपाल विधानसभा को भंग कर देता है.
2. संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, यदि एक राज्य सरकार, केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुपालन में अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने में विफल रहती है या सरकार संविधान के अनुसार बताये गए नियमों का पालन नहीं करती है, तो उस राज्य का राज्यपाल इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजता है जो कि केन्द्रीय कैबिनेट की परामर्श के अनुसार राज्य में विधान सभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है.
3. यदि राज्य में चल रही गठबंधन सरकार अल्पमत में आ जाती है अन्य दलों के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं है तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल नए चुनाव कराने के उद्येश्य से राज्य की विधानसभा को भंग कर सकता है.
4. यदि विधानसभा चुनाव अपरिहार्य कारणों (जैसे राज्य का विभाजन, बाहरी आक्रमण इत्यादि) से स्थगित कर दिए गए हैं तो भी राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकता है.
यद्यपि राज्य विधानसभा के विघटन की शक्ति राज्यपाल के पास भी है. हालाँकि राज्यपाल के इस निर्णय को संसद के दोनों सदनों द्वारा 2 महीने के अन्दर अनुमति मिलना जरूरी होता है.
यदि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के पास विधानसभा भंग करने के खिलाफ अपील की जाती है और कोर्ट अपनी जाँच में ये पता लगाते हैं कि राज्य विधानसभा को झूठे या अप्रासंगिक मुद्दे के आधार पर भंग किया गया है तो कोर्ट विधानसभा का भंग किया जाना रोक सकते हैं. इस प्रकार विधानसभा भंग करने का राष्ट्रपति का फैसला अंतिम निर्णय नहीं है और इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.
सन 1994 से पहले, राज्य असेंबली को भंग करने के तरीकों के बारे में व्यापक रूप से निंदा हुई थी. कई लोगों का मानना था कि केंद्र सरकार अपने हितों को पूरा करने के लिए अपने से अलग पार्टी की सरकारों को गैर वाजिब कारणों के हटा रही थी. इसलिए इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में उन कारणों की व्याख्या की जिनके आधार पर किसी राज्य की विधानसभा को भंग किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में उन कारणों को उल्लिखित (specify) कर दिया था जिनके आधार पर किसी राज्य की सरकार या विधानसभा को भंग किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की कठपुतली बनने से हमेशा के लिए रोक दिया था लेकिन फिर भी देश के विभिन्न राज्यों में अन्य कारणों से राज्यों की विधान सभाओं को भंग करने का सिलसिला जारी है.
कुछ साल पूर्व जम्मू & कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य की विधान सभा यह कह कर भंग कर दी थी कि राज्य में कोई भी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है और राज्य में विधायकों की खरीद फरोख्त की शिकायतें उन्हें मिल रही थीं. जबकि सच्चाई यह भी है कि राज्य में कांग्रेस और पीडीपी मिलकर सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर रहे थे.
सारांश के तौर पर इतना कहा जा सकता है कि राज्यपाल की स्थिति राज्य में राष्ट्रपति के प्रतिनिधि की होती और राष्ट्रपति केंद्र सरकार के आदेशों के अनुसार काम करता है. इसलिए जिस राज्य में केंद्र सरकार की पार्टी शासन में नहीं होती है वहां पर राज्यपाल के द्वारा इस तरह के निर्णय बहुत आम होते हैं.
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