शहीद भगत सिंह ने क्यों कहा कि "मैं नास्तिक हूँ"

भगत सिंह को शहीद-ए-आजम के नाम से भी जाना जाता था| वे 12 साल की उम्र में ही क्रांतिकारी बन गए थे. 13 अप्रेल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके दिमाग पर गहरी चाप छोड़ी थी जिसके कारण वे वीर स्वतंत्रता सेनानी बने और अपने कॉलेज की पढाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना कर डाली| जिस प्रकार से उन्होंने ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया उसे भुलाया नहीं जा सकता है|
India will always remember the sacrifice of Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru. These are greats who made an unparalleled contribution to our freedom struggle. pic.twitter.com/SZeSThDxUW
— Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2023
उनका जन्म सितम्बर 1907 में पंजाब में हुआ था और सैंडर्स की हत्या के आरोप में दोषी पाये जाने के कारण 23 मार्च 1931 को उन्हें लाहौर के सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गयी थी |
उन्होंने 5,6 अक्टूबर 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल से एक धार्मिक आदमी को जवाब देने के लिये एक निबंध लिखा था जिसने उनके ऊपर नास्तिक होने का आरोप लगाया था | भगत सिंह की उम्र उस समय 23 वर्ष की थी | इस निबंध को 1934 में प्रकाशित किया गया था और इसे युवाओं के बीच बहुत ही जबरदस्त समर्थन मिला था | कॉलेज के विद्यार्थियों ने इस किताब को बहुत पसंद किया था और इसकी बहुत सी प्रतियाँ भी बिकी थीं|
शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता-आंदोलन को अपने विचारों व प्राणों से सींचकर, जिस क्रांतिभाव का संचार किया, वैसा इतिहास में विरले ही देखने को मिला।
— Amit Shah (@AmitShah) March 23, 2023
इनका शौर्य और देशप्रेम युगों तक प्रेरणादायक रहेगा।
आज शहीद-दिवस पर करोड़ों देशवासियों के साथ इन्हें चरणवंदन करता हूँ। pic.twitter.com/DdDdJOzo1o
उन्होंने लिखा था कि मैं सर्वशक्तिमान परमात्मा को मानने से इंकार करता हूँ, मैं नास्तिक इसलिये नहीं बना कि मैं अभिमानी, पाखंडी या फिर निरर्थक हूँ, मैं ना तो किसी का अवतार हूँ और ना ही ईश्वर का दूत और ना ही खुद परमात्मा | मैं अपना जीवन एक मकसद के लिए न्योछावर करने जा रहा हूँ और इससे बड़ा आश्वासन क्या हो सकता है| ईश्वर में विश्वास रखने वाला एक हिन्दु पुनर्जन्म में एक राजा बनने की आशा कर सकता है, एक मुसलमान या एक इसाई को स्वर्ग में भोगविलास पाने की इच्छा हो सकती है, लेकिन मुझे क्या आशा करनी चाहिए| मैं जानता हूँ कि जिस पल रस्सी का फंदा मेरे गले लगेगा और मेरे पैरो के नीचे से तख्ता हटेगा वो मेरा अंतिम समय होगा, पर किसी स्वार्थ भावना के बिना, यहाँ या यहाँ के बाद किसी पुरस्कार की इच्छा किये बिना मैंने अनासक्त भाव से अपने जीवन को आज़ादी के नाम कर दिया है |
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पर वे ये भी कहते थे कि जब उनको लाहौर केस में पुलिस ने पकड़ लिया था तब भी उनका विश्वास भगवान से नहीं उठा था क्योंकि बचपन में वे पूजा अर्चना करते थे, उनके पिता ने उन्हें पाला था और वे आर्य समाजी थे और उन्ही की वजह से उन्होंने खुद को देश के लिए समर्पित किया था। कॉलेज के समय से वो भगवान के बारे मे सोचते थे और फिर वे एक रेवोल्यूशनरी पार्टी में शामिल हो गए और वहाँ उन्हें सचिन्द्र नाथ सान्याल के बारे में पता चला जिनको क़ाकोरी षड्यंत्र में जेल हुई थी । वहाँ से भगत सिंह के जीवन को एक नया मोड़ मिला और उनको पता चला की किसी भी क्रांतिकारी नेता को अपने विचारों से ही लोगों को प्रभावित करना होता हैं । पर जब उन चारो को फाँसी दे दी गई थी और सारी ज़िम्मेदारीं उनके कंधो पर आ गई , तब उन्हें समझ मे आया कि 'धर्म मानव कमजोरी का परिणाम या मानव ज्ञान की सीमा है' क्योकिं वे चारों जिनको फाँसी हुई थी वे भी धर्म के साथ ही देशभक्ति का प्रचार करते थे ।
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फिर भगत सिंह लिखते हैं कि हमारे पूर्वजो को ज़रूर किसी सर्वशक्तिमान अर्थात भगवान में आस्था रही होगी और उस विश्वास के सच या उस परमात्मा के अस्तित्व को जो भी चुनौती देता है, काफ़िर या फिर पाखंडी कहा जाता है| चाहे उस व्यक्ति के तर्क इतने मज़बूत क्यों ना हो कि उन्हें झुठलाना नामुमकिन हो, या उसकी आत्मा इतनी शसक्त क्यों ना हो की उसे ईश्वर के प्रकोप का डर दिखा कर भी झुकाया नही जा सकता है| मैं घमंड की वजह से नास्तिक नहीं बना बल्कि ईश्वर पर मेरे अविश्वास ने आज सभी परिस्तिथियों को मेरे प्रतिकूल बना दिया है और ये स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ सकती है| जरा सा अध्यात्म इस स्थिति को एक अलग मोड़ दे सकता है, लेकिन अपने अंत से मिलने के लिए मैं कोई तर्क देना नही चाहता हूँ|
लाहौर सेंट्रल जेल
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15 अगस्त 1947 रात 12 बजे ही क्यों भारत को आजादी मिली थी?
आगे वे लिखते हैं कि मै यथार्थवादी व्यक्ति हूँ और अपने व्यवहार पर मैं तर्कशील होकर विजय पाना चाहता हूँ, भले ही मैं हमेशा इन कोशिशो में कामियाब नही रहा हूँ, लेकिन ये मनुष्यों का कर्तव्य है कि वो कोशिश करता रहे क्योंकि सफलता तो सहयोग और हालातों पर ही निर्भर करती है| आगे बढ़ते रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये ज़रूरी है कि वो पुरानी आस्था के सभी सिद्धान्तो में दोष ढूंढे और उसे एक-एक करके सभी मान्यताओं को चुनौती देनी चाहिए, उसे सभी बारीकियों को परखना और समझना चाहिए| अगर कठोर तर्क वितर्क के बाद वो किसी निर्णय तक पहुँचता है तो उसके विश्वास को सरहाना चाहिए| उसके तर्कों को झूठा भी समझा जा सकता हैं, पर ये भी तो संभव हैं की उसे सही ठहराया जाए क्योंकि तर्क ही जीवन का मार्गदर्शक हैं | बल्कि मुझे यह कहना चाहिए की विश्वास होना गलत नही है पर अंधविश्वास बहुत ही घातक हैं | वो एक व्यक्ति कि सोच एवं समझने की शक्ति को मिटा देता हैं और उसे सुधार विरोधी बना देता हैं |
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जो भी व्यक्ति खुद को यथार्थवादी कहने का दावा करता है, उसे पुरानी मान्यताओं को चुनौती देनी होगी और मेरा मानना हैं कि यदि आस्था तर्क के प्रहार को सहन ना कर पाए तो वो बिखर जाती है| यहाँ पर अंग्रेजों का शासन इसीलिए नहीं है क्योंकि ईश्वर ऐसा चाहता है बल्कि इसलिए है कि उनके पास ताकत है और हममें उनका विरोध करने का साहस नहीं है | अंग्रेज़ ईश्वर की मदद से हमें काबू मे नहीं रख रहें हैं बल्कि वो बन्दूको, गोलियों ओर सेना के सहारे ऐसा कर रहें हैं और सबसे ज्यादा हमारी बेपरवाही की वजह से | मेरे एक दोस्त ने मुझसे प्रार्थना करने को कहा, जब मैंने उसे अपने नास्तिक होने की बात कही तो उसने कहा कि जब तुम्हारें आखरी दिन नज़दीक आएँगे तब तुम यकीन करने लगोगे | तब मैंने कहा नहीं मेरे प्यारे मित्र ऐसा कभी नहीं होगा| मैं इसे अपने लिए अपमानजनक और नैतिक पतन की वजह समझता हूँ, ऐसी स्वार्थी वजहों से मैं कभी भी प्रार्थना नहीं करूँगा |
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भगत सिंह को लगता था कि स्वार्थी होकर हमें परमात्मा से प्रार्थना नहीँ करनी चाहिए बल्कि खुद को अंग्रेजों के लिए इतना मज़बूत बनाना चाहिए की हम उन लोगों का सामना कर सकें ।
भगत सिंह के कुछ प्रमुख कथन
-जिंदगी अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर जनाजे उठा करते हैं।
-मेरा धर्म देश की सेवा करना है।
-प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।
-देशभक्तों को लोग अक्सर पागल कहते हैं।
-किसी भी इंसान को मारना आसान है, लेकिन उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।
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