यकीनन 2 दिसम्बर का दिन दुनिया के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि यह वो दिन है जब एक जीते-जागते इंसान के दिल को आर्टिफिशियल दिल से बदला गया था. इस महान काम को यूटा यूनिवर्सिटी के डॉ विलियम सी डेव्रिस की टीम ने किया था.
किसे लगाया गया था आर्टिफिशियल दिल ![]()
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दुनिया में पहली बार आर्टिफिशियल हार्ट स्वयं एक डॉ को ही लगाया गया था. दरअसल अमेरिका के डेंटिस्ट बर्नी क्लार्क गंभीर दिल की बीमारी से जूझ रहे थे और उनकी इस बीमारी से लगभग सभी डॉ हार मान चुके थे तब यूटा यूनिवर्सिटी के डॉ विलियम सी डेव्रिस और उनकी टीम ने डॉ बर्नी के शरीर में आर्टिफिशियल दिल लगाया.
7 घंटे चला था ऑपरेशन
इंसान के शरीर में आर्टिफिशियल दिल लगाना एक बहुत ज़ोखिम भरा काम था. इस ऑपरेशन को करने में डॉ की टीम को पूरे 7 घंटे का समय लगा था लेकिन ख़ुशी की बात यह है की इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था. ऑपरेशन के बाद डॉ बर्नी ने हाथ हिलाकर बताया था की वह ठीक हैं.
ऑपरेशन के दौरान जब डॉ बर्नी का दिल शरीर से बाहर निकाला गया तो डॉक्टर्स की पूरी टीम बिल्कुल हैरान रह गयी थी क्योंकि उनका असली दिल बिल्कुल कागज़ के फटे हुए टुकड़े की तरह लग रहा था.
इंसान के दिल से कुछ अलग था आर्टिफिशियल दिल
आमतौर पर इंसान का दिल 1 मिनट में 65 से 80 बार धड़कता है लेकिन यह आर्टिफिशियल दिल 1 मिनट में 116 बार धड़क रहा था . डॉ बर्नी को जो आर्टिफिशियल दिल लगाया गया था उसे रोबर्ट जार्विक ने बनाया था इसलिए इसका नाम जार्विक-7 था.
यह आर्टिफिशियल दिल इंसानी दिल से आकार में बड़ा था और इसकी कार्य करने की कैपेसिटी भी अधिक थी.
महज़ 112 दिन ही जीवित रह पाए बर्नी
शरीर में आर्टिफिशियल दिल लगने के बाद भी बर्नी ज़्यादा दिन तक जीवित नहीं रह पाए. ऑपरेशन कामयाब होने के कुछ दिन बाद से ही डॉ बर्नी को ब्लीडिंग की समस्या शुरू हो गयी थी और आखिरकार 112 दिन के बाद मल्टीप्ल ऑर्गन फेलियर के कारण 23 मार्च 1983 को उनकी मौत हो गयी.
भारत में पहला हार्ट ट्रांसप्लांट
वर्ष 1994 से पहले हार्ट ट्रांसप्लांटेशन के लिए भारतीयों को विदेश में जाना पड़ता था लेकिन 1994 में मानव अंग कानून बनने के बाद यह सुविधा देश में भी उपलब्ध होने लगी.
जुलाई 1994 में डॉ वेणुगोपाल की अगुआई में पहला हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया. इस सर्जरी में लगभग 20 सर्जन की एक टीम ने काम किया था.
भारत में किसका हुआ था पहला हार्ट ट्रांसप्लांट
भारत में पहली बार देवीराम नाम के मरीज़ का हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था. इस सर्जरी में 59 मिनट लगे थे. 40 वर्षीय देवीराम भारी उद्योग के एक कर्मचारी थे जिन्हें कार्डियोमायोपेथी नामक एक बीमारी थी.
हार्ट ट्रांसप्लांटेशन के बाद देवीराम 15 वर्षों तक जीवित रहे हालांकि 15 साल बाद भी उनकी मौत ब्रेन हेमरेज के कारण हुई थी और हार्ट ट्रांसप्लांटेशन का उनकी मौत से कोई लेना देना नहीं था.