इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका दिया है कोर्ट ने आदेश दिया है कि जो शिक्षक एनपीएस को अभी तक नहीं अपना पायें हैं और जिन्होंने परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर यानी प्रान में खुद को पंजीकृत नहीं किया है सरकार उनका वेतन नहीं रोक सकती है और सरकार को उन्हें वेतन देना चाहिए .
उल्लेखनीय है कि राज्य के बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों ने राज्य सरकार के 16 दिसम्बर 2022 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमे कहा गया था कि, एनपीएस न अपनाने वाले शिक्षकों के वेतन को रोकने का प्रावधान किया गया है. कोर्ट ने कहा है इस मामले में सरकार को और विचार करने की आवश्कता है.
योगेन्द्र कुमार सागर व अन्य की याचिका पर फैसला देते हुए न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने आदेश दिया है कि, जिन शिक्षिकों ने अभी तक खुद को एनपीएस और प्रान (परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर) में रजिस्टर नहीं करवाया है सरकार ऐसे शिक्षकों का वेतन नहीं रोक सकती है.
कोर्ट में याचिका कर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि, वर्ष 2005 में सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके कहा था कि जिन शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वर्ष 2005 के बाद दिए जाएंगे उन्हें एनपीएस में स्वयं को रजिस्टर्ड करना अनिवार्य है. जबकि वर्ष 2005 के पहले ये शिक्षकों के लिए स्वैक्षिक था. 16 दिसम्बर 2022 को सरकार ने एक आदेश जारी कर ये प्रावधान कर दिया था कि जिन शिक्षकों ने अभी तक एनपीएस और प्रान में खुद को पंजीकृत नहीं किया है वे अब वेतन के हकदार नहीं होंगे.
कोर्ट में शिक्षकों की तरफ से दी गई दलील में कहा गया है कि सरकार द्वारा जारी आदेश मनमाना और गलत है सरकार इस तरह के आदेश जारी कर शिक्षकों के वेतन नहीं रोक सकती है. इस संदर्भ में हाईकोर्ट ने सरकार और बेसिक शिक्षा विभाग के वकीलों से अपना जवाब दाखिल करने के लिए 6 सप्ताह का टाइम दिया है.