sHyderabad Nizam: इस देश में यूं तो कई निजाम रहे, लेकिन आज हम आपको सबसे अमीर निजाम मीर उस्मान अली खान के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने समय के सबसे अमीर और सबसे कंजूस निजाम हुआ करते थे। उस्मान ने आखिर तक हैदराबाद का शेष भारत में विलय करने से मना कर दिया था। साथ ही वह अपने रौब के लिए जाने जाते थे। तो आइये जानते हैं हैदराबाद के आखिरी निजाम की कहानी।
1911 में संभाली थी हैदराबाद की गद्दी
मीर उस्मान अली खान ने सन 1911 में हैदराबाद रियासत की गद्दी संभाली थी। अपने जमाने में उनकी गिनती सबसे अमीर लोगों में होती थी। एक पत्रिका ने उन्हें दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बताकर अपने प्रमुख पेज पर जगह दी थी। हैदराबाद 80 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक था, जो कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल इलाके से भी बहुत
अधिक है।
इस तरह दिखते थे निजाम
निजाम का कद छोटा था और वह झुककर चलते थे। उनके कंधे छोटे थे और वह चलने के लिए भूरे रंग की मुड़ी हुई छड़ी का सहारा लेते थे। वह 35 साल पुरानी फैज कैप पहना करते थे। उनकी आंखें आक्रामक ढंग से देखा करती थी। निजाम की शेरवानी मटमैली रंग की होती थी व पैरों में पीले मोजे होते थे, जिनके किनारे ढीले हुआ करते थे। वह अक्सर लोगों पर हावी रहते थे।
जोर से चिल्ला दे, तो 50 गज तक जाती थी आवाज
कहा जाता है कि वह कभी जोर से चिल्लाते थे, तो 50 गज दूर तक उनकी आवाज सुनाई देती थी। जब वह किसी को अपने यहां बुलाते थे, तो बहुत कम खाना परोसा जाता था। यहां तक कि चाय पर सिर्फ दो बिस्कुट रहते थे, जिसमें से एक मेहमान व एक खुद के लिए रहता था।
वहीं, मेहमान के हिसाब से बिस्किट की संख्या तय होती थी। कभी अंग्रेज उन्हें सिगरेट देते थे, तो वह एक पैकेट में से एक सिगरेट के बजाय चार से पांच रखा करते थे। उनकी सिगरेट का पैकेट चार मीनार हुआ करता था, जिनके 10 पैकेट 12 पैसे में आ जाया करते थे।
निजाम के पास था 282 कैरेट का जैकब हीरा
निजाम के पास छोटे नींबू के बराबर 282 कैरेट का जैकब हीरा हुआ करता था, जिसे वह साबुन दानी में रखा करते थे। हैदराबाद में रस्म थी कि सोने के सीकों को छूकर वापस लौटाना, लेकिन आखिर निजाम ने लोगों के सिक्कों को नहीं लुटाया। एक बार सभा में सिक्का गिरा गया था, तो वह हाथ व पैर के बल पर ढूंढते रहे। नीजाम अव्यवहारिक जिंदगी जीते थे। निजाम का निजी श्यन कक्ष भी गंदा होता था। यहां कूड़ा पड़ा होता था। इसे साल में एक बार सिर्फ उनके जन्मदिन पर साफ किया जाता था।
जब माउंटबेटन को बुलाया हैदराबाद
जॉन जुबुर्की द लास्ट निजाम में लिखते हैं कि माउंटबेटन ने निजाम को दिल्ली बुलाया था, लेकिन उन्होंने माउंटबेटन को हैदराबाद बुलाया। भारत सरकार ने निजाम के सामने प्रस्ताव रखा था कि हैदराबाद विलय का फैसला जनमत संग्रह से कराया जाए, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसे लेकर वीपी मेनन ने अपनी किताब द स्टोरी ऑफ द इंटिग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स में लिखा है। उस समय चर्चा थी कि भारत यदि हैदराबाद पर हमला करेगा, तो पाकिस्तान युद्ध करेगा। भारतीय सेना ने हैदराबाद को घेर लिया और आदेश का इंतजार किया। लेकिन, हैदराबाद की 25 हजार सैनिकों की सेना इस हमले के लिए तैयार नहीं हो सकी। उन्होंने भारतीयों टैंकों पर पत्थरों से हमला किया। उस समय पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का निधन हुआ, तो पाकिस्तान पीछे हट गया।
जब महल पर भारतीय सेना ने किया नियंत्रण
17 सितंबर 1948 को निजाम के प्रधानमंत्री मीर लई कली ने रेडिया संदेश में ऐलान किया था कि आज मंत्रीमंडल ने महसूस किया के सेना के खिलाफ खून बहाने का मतलब नहीं है। हालात में हुए बदलाव को स्वीकार करती है। निजाम जिस समय अपनी नमाज पढ़ रहे थे तभी भारतीय सैनिका ने कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के सैनिकों के आत्मसर्मपण के बाद निजाम के सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, निजाम व उनके परिवार को नहीं छुआ गया। उन्हें उनके महल में ही रहने दिया गया।
जब निजाम ने भारत के साथ किया समझौता
25 जनवरी 1950 को निजाम ने भारत सरकार के साथ समझौता किया, जिसके तहत सरकार ने प्रति वर्ष 42 लाख 85 हजार 714 रुपये का राज भत्ता देने की घोषणा की। निजाम ने 1 नवंबर 1956 तक हैदराबाद के राज्य प्रमुख के तौर पर काम किया। इसके बाद राज्य पुनर्गठन विधेयक के तहत उनकी रियासत को महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में बांट दिया गया। 24 फरवरी 1967 को निजाम ने अंतिम सांस ली।
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