अयोध्या स्थित भगवान राम के मंदिर की स्थापना अगले वर्ष होनी है इसके लिए तैयारियां जोरों पर हैं इसी कड़ी में भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा के निर्माण के लिए नेपाल शालिग्राम शिलाएं अयोध्या पहुँच गईं हैं. देश में इस शिला का भव्य स्वागत किया गया है. इस शिला से मूर्ति का डिज़ाइन किस प्रकार बनेगा ये मुंबई के एक प्रसिद्ध मूर्तिकार और फाइन आर्ट के प्रोफेसर वासुदेव कामत तय करेंगे. आइये जानें इस शालिग्राम शिला के महत्व और विशेषताओं के विषय में
इस शालिग्राम शिला को नेपाल की गंडक नदी से लाया गया है. विभिन्न मिडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये शिला 2 खंडो में विभाजित है और दोनों शिलाओं का वजन 26 टन और 14 टन है.
पूर्व में माता सीता नेपाल के जनकपुर से ही भारत आईं थी और ये शिलाएं भीअब नेपाल से ही भारत आईं हैं. नेपाल में विशेष पूजा के बाद इन शिलाखंडों को भारत लाया गया है और अब ये शिलाएं अयोध्या पहुँच गईं हैं, इसके पहले ये शिलाएं गोरखपुर पहुंची है जहाँ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन शिलाओं की पूजा अर्चना की.
इन शिलाओं को नेपाल के मुक्तिनाथ से पोखरा तक खोजा गया है जहाँ अंत में गलेश्वर नाथ पर ये खोज समाप्त हुई है. ये शिलाएं लगभग 6 करोड़ वर्ष पुरानी हैं और इन्हें कपिल मुनि जैसे ऋषियों की तपोभूमि से लाया गया है. इन पत्थरों को नेपाल के पोखरा से भी 85 किलोमीटर ऊपर नदी के तट से लाया गया है.
आखिर शालिग्राम पत्थर ही क्यों ?
- हिन्दू धर्म के अनुसार, भगवान शालिग्राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के एक रूप शालिग्राम से हुआ माना गया है. शालिग्राम शिला को अत्यधिक पवित्र माना जाता है.
- इन शालिग्राम शिलाओं की मुख्य विशेषता ये है कि ये नेपाल स्थित गंडक नदी में ही बड़ी तादात में मिलते हैं. ऐसा माना जाता है कि ये पत्थर इस नदी में स्वयं प्रकट हुए हैं. जबकि कुछ मान्यताओं के अनुसार, हिमालय से प्रवाहित होने वाली नदी अपने मार्ग में पर्वतों का अपरदन कर के उनके छोटे-छोटे टुकड़े कर देती है और नेपाल में इन्हीं शिलाओं को शालिग्राम शिला माना जाता है. ये शालिग्राम के पत्थर छोटे से बड़े किसी भी आकार के हो सकते हैं.
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शालिग्राम शिला जिस घर में होती हैं वहां सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है इसी कारण अनेक मंदिरों और घरों में भगवान शालिग्राम की स्थापना होती है.
- अयोध्या पहुँचने के बाद इन शिलाओं को मूर्तिकारों को दिखाया जायेगा और जल्द जल्द मूर्ति निर्माण का कार्य पूरा किया जायेगा . ये मूर्तियाँ भगवान के बाल स्वरूप की होंगी और इनकी ऊंचाई करीब 5 फीट की होगी. रामलला की मूर्ति ऐसी होगी जिसका मंदिर के वास्तुकला से समन्वय होगा. साथ ही रामनवमी के दिन रामलला के ललाट पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ेंगी.
- इन शिलाओं को नेपाल से ख़रीदा नहीं जा रहा है बल्कि नेपाल इन्हें उपहार स्वरूप भेंट कर रहा है. जिस तरह से माता सीता नेपाल से भारत आईं थी उसी प्रकार नेपाल इन पत्थरों को दहेज़ स्वरूप भारत भेज रहा है. नेपाल के संतों ने इसे अयोध्या को सौगात के रूप में दिया है.
- ये पत्थर अत्यधिक कठोर हैं जिसे तराशना अत्यधिक कठिन कार्य है.
- राम लला की मूर्ति निर्माण में किसी भी प्रकार की देरी न हो इसलिए मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों से भी इस तरह के पत्थर मंगाए जा रहे हैं.