Indian Railway: जब भी कभी आप रेलवे में सफर करते होंगे, तो आपने कुछ जगहों पर रेलवे ट्रैक पर पटरियों के बीच में V आकार की पटरियों को लगा होगा। यह खासतौर पर पुलों पर दिखाई देती होंगी। साथ ही अन्य कुछ जगहों पर भी आपने इसे देखा होगा। लेकिन, क्या आपको पता है कि आखिर रेलवे को दो पटरियों के बीच में V आकार की पटरियों का लगाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से इसके बारे में जानें।
मजबूती देना होता है काम
भारतीय रेलवे में दो पटरियों में लगी V पटरियों का काम चलने के लिए नहीं होता है, बल्कि मेन ट्रैक को मजबूती प्रदान करने के लिए इन पटरियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसे गार्ड रेल भी कहा जाता है।
इन जगहों पर किया जाता है इस्तेमाल
दो पटरियों के बीच अन्य पटरियों का इस्तेमाल अक्सर डेक ब्रिज, लेवल क्रॉसिंग और तीव्र मोड़ पर किया जाता है। दरअसल, पुल पर गुजरने के दौरान ट्रेन के भार से पटरियों के मुड़ने की संभावना रहती है, क्योंकि वहां पटरियों के नीचे जमीन से पकड़ नहीं होती है। ऐसे में पटरियों को एक ही जगह पर मजबूती से टिके रहने के लिए V आकार की पटरियों का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, तीव्र मोड़ पर भी पटरी के साथ एक अन्य साइड रेल(पटरी) का इस्तेमाल किया जाता है। इससे तीव्र मोड़ पर ट्रेन के रफ्तार में होने पर भी पहिये के पटरी से उतरने की संभावना कम रहती है, क्योंकि यहां पर पहिया दो पटरियों के बीच फंसकर चलता है। वहीं, लेवल क्रॉसिंग पर भी वी आकार की पटरी का इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि, क्रॉसिंग का हिस्सा सिमेंट से बना होता है। ऐसे में पटरियों को मजबूती से टिके रहने के लिए पटरियों के बीच अन्य पटरी का इस्तेमाल किया जाता है।
इतने से कम नहीं होना चाहिए वजन
आपको बता दें कि इन पटरियों का इस्तेमाल करने के लिए भी रेलवे ने पैमाना तय किया हुआ है, जिसके तहत पटरी का वजन 40 किलोग्राम प्रति मीटर से कम नहीं होना चाहिए। ऐसे में हल्का और पतले लोहे का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
140 मिमी की होनी चाहिए दूरी
आपको यह भी बता दें कि रेलवे इन पटरियों के इस्तेमाल में दूरी का भी विशेष ध्यान रखता है, जिसके तहत मेन और गार्ड रेल के बीच 140 मिमी से कम की दूरी नहीं होनी चाहिए।
सिंगल और डबल होती है गार्ड रेल
कुछ जगहों पर इनका इस्तेमाल अलग-अलग होता है। इसलिए यह गार्ड रेल दो प्रकार की होती है, जो कि सिंगल और डबल गार्ड रेल है। कुछ मोड़ पर केवल सिंगल गार्ड रेल से ही काम चल जाता है, जबकि कुछ जगहों पर रिस्क अधिक होने की वजह से रेलवे डबल गार्ड रेल का इस्तेमाल करता है।
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