IAS Success Story: देश के सबसे प्रतिष्ठित सेवाओंं में सिविल सेवा की गिनती की जाती है। इसके लिए कोई युवा कोचिंग तो कोई युवा बिना कोचिंग के ही तैयारी करते हैं। हालांकि, दोनों मामले में सफलता निश्चित नहीं होती है। यही वजह है कि इस परीक्षा को पास करने में कई बार सालों साल लग जाते हैं। आज हम आपको अजीत यादव की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने न केवल कठिन मेहनत से परीक्षा पास की, बल्कि परीक्षा पास करने के बाद भी उन्होंने सेवा को हासिल करने के लिए कठिन परिश्रम किया। सिविल सेवा की तैयारी कर रहे युवाओं को अजीत यादव की कहानी प्रेरणा दे सकती है। तो आइये जानते हैं अजीत यादव के संघर्ष के सफर के बारे में।
अजीत यादव का परिचयः
मूल रूप से हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के रहने वाले अजीत के पिता रामपथ सिंह ब्लॉक डेवलपमेंट और पंचायत अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। अजीत की मां ग्रहणी हैं। अजीत जब 5 वर्ष के थे, तब किसी बीमारी के कारण उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी। आंखों की रोशनी चली गई थी, तो जीवन में कई बार परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकि, उन्होंने नेत्रहीन होने की वजह से कभी भी जीवन में हार नहीं मानी।
नेत्रहीन होते हुए 9वीं और 10वीं में किया टॉप
अजीत की प्रारंभिक शिक्षा करोल बाग के स्प्रिंग डेल स्कूल से पूरी हुई। स्कूल में सभी बच्चों के बीच सिर्फ अजीत ही नेत्रहीन थे। हालांकि, उन्होंने इस चीज को कभी आड़े नहीं आने दिया और कक्षा 9वीं और 10वीं में टॉप किया। स्कूली शिक्षा के पूरा होने के बाद अजीत ने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस में दाखिला लिया। यहां से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने B.Ed. की डिग्री पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली में ही शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू की।
यूपीएससी परीक्षा पास करने पर नहीं मिला आइएएस का पद तो लड़ी लड़ाई
अजीत यादव ने नौकरी के साथ यूपीएससी सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दी। उन्होंने इस परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत की और 2008 में परीक्षा में 208 रैंक प्राप्त कर सफलता भी हासिल भी कर ली। हालांकि, उनका सघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। बल्कि, उन्हें आइएएस अधिकारी का पद नहीं मिला। इसके बदले उन्हें भारतीय रेलवे में अधिकारी का पद मिला, लेकिन अजीत ने यह पद लेने से मना कर दिया। अजीत ने इसके खिलाफ मामला दर्ज कराया और लंबी कानूनी लड़ाई, जिसके बाद साल 2012 में फैसला अजीत के पक्ष में सुनाया गया और वह आइएएस अधिकारी के रूप में चयनित हुए।
अजीत की कहानी हमको बताती है कि जीवन आसान नहीं बल्कि मुश्किल होता है। इसमें जीतता वही है, जो डटकर मुश्किलों का सामना करता है। यदि मुश्किलों से लड़ा जाए, तो हर लक्ष्य को पाना संभव है।
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