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वडोदरा में ऐसा क्या हुआ, जब डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेना पड़ा था महासंकल्प

जानें वडोदरा में ऐसा क्या हुआ, जब डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेना पड़ा था महासंकल्प, संविधान के जनक कहे जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन 06 दिसंबर, 1956 का हुआ था।   

वडोदरा में ऐसा क्या हुआ, जब डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेना पड़ा था महासंकल्प
वडोदरा में ऐसा क्या हुआ, जब डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेना पड़ा था महासंकल्प

संविधान के जनक कहे जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन 06 दिसंबर, 1956 का हुआ था। इसके बाद से उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जात है। आइए जानते हैं कि दलित वर्ग के लिए काम करने वाले अंबेडकर के साथ ऐसा क्या हुआ था, जब एक समय उन्हें दलितों के लिए महासंकल्प लेना पड़ा था।

साल 1917 में 26 वर्षीय डॉ.बीआर अंबेडकर गुजरात के वडोदरा में महालेखाकार के कार्यालय में प्रोबेशनर के रूप में सेवा करने के लिए पहुंचे थे। यहां पहुंचने से पहले उन्होंने तीन साल(1913-1916) तक कोलंबिया विश्वविद्यालय में शिक्षा सुधारवादी प्रोफेसर जॉन डेवी के साथ बिताए, जिनके लोकतंत्र पर काम ने अंबेडकर के बौद्धिक जीवन को आकार देने में मदद की। बाद में उन्होंने 1917 में अपने डॉक्टरेट थीसिस पर काम करने के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शुरुआत की।

वडोडरा में अंबेडकर ने ठहरने के लिए एक पारसी होटल में पता किया, तो वहां गैर पारसियों को रूकने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में अंबेडकर को अपना नाम बदलकर वहां ठहरना पड़ा। वहीं, लेखक महेश अंबेडकर ने अपनी पुस्तक द आर्किटेक्ट ऑफ मॉडर्न इंडिया: बीआर अंबेडकर में कई घटनाओं का उल्लेख करते हुए लिखा है। उन्होंने लिखा है कि कार्यालय में चपरासी अंबेडकर को पानी परोसने से मना कर देते थे और दूर से उनकी मेज पर फाइलें फेंक देते थे, ताकि उन्हें छूने से बचा जा सके। यहां तक कि उनके सहकर्मी भी उनकी उपस्थिति पर आपत्ति जताने के साथ आंख भी नहीं मिलाते थे।

 इस दौरान उन्होंने देश में लाखों दलितों की दुर्दशा को देखा। पारसी होटल में रहने के 11वें दिन उनका सामना लाठी से लैस पारसियों से हुआ। शाम तक अपना सामान न बांधने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी। 

ऐसे में उन्होंने अपने दोस्तों से मदद मांगी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कोई अन्य विकल्प नहीं बचा होने के कारण उन्होंने उसी दिन मुंबई लौटने का फैसला किया। ट्रेन के रवाना होने से पांच घंटे पहले उन्होंने अपना सामान इकट्ठा किया और शाम का शेष समय एक सार्वजनिक पार्क  कामठी बाग में बिताया।  

मुंबई लौटने के बाद वह एनी बेसेंट से मिलने के लिए कलकत्ता गए और उन्हें दलित वर्गों की दुर्दशा से अवगत कराया। बेसेंट उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। इसके बाद आईएनसी ने पहली बार 1917 में दलित वर्गों पर लगाए गई सभी अक्षमताओं को दूर करने के न्याय और धार्मिकता का समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव अपनाया। 

वडोदरा में अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान अपने दु:खद अनुभव के बाद उन्होंने भारत में दलितों के साथ होने वाले व्यवहार को बदलने के लिए महासंकल्प लिया था।