जाने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व कैसे तैयार होती थी स्याहियां ?


By Gaurav Kumar15, Nov 2022 06:37 PMjagranjosh.com

हमारे देश में लिखने की परंपरा बहुत पुरानी रही है।

इतिहासकार पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा की पुस्तक 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला' में कई स्याहियों का उल्लेख है।

काग़ज़ पर लिखने की काली स्याही दो तरह की होती है- पक्की और कच्ची।

पक्की स्याही से पुस्तकें लिखी जाती हैं और कच्ची स्याही से व्यापारी लोग लिखते हैं।

ताड़पत्रों में जिन स्याहियों का इस्तेमाल होता था संभव है वह ऐसे ही बनाई गईं हो।

कई वृक्षों की लाख का, सुहागा और लोध पीसकर उसे हंडिया में उबाला जाता है।

कच्ची स्याही काजल, कत्था, वीजाबोर और गोंद को मिलाकर बनाई जाती है परंतु पन्ने पर जल गिरने से स्याही फैल जाती है।

भोजपत्र &पर लिखने की स्याही बादाम के छिलकों के कोयलों को गोमूत्र में उबालकर बनाई जाती थी।

ज्योतिषि हस्तलिखित वेद, जन्मपत्र, वर्षफल और कुंडलियां बनाने के लिए रंगीन स्याहियों का इस्तेमाल करते थे।

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