जानें लक्ष्मीबाई की वीर गाथा, जिनके नाम से ही कांपते थे अंग्रेज


By Mahima Sharan18, Jun 2024 09:47 AMjagranjosh.com

अंग्रेजों को धूल चटाने वाली पहली महिला

भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए लड़ाई छेड़ने वाली पहली स्वतंत्रता संग्राम एक महिला थी। इस लड़ाई को ब्रिटिश सैनिकों के विरोद्ध विद्रोह भी कहा जाता है। इस आंदोलन की मुखिया झांसी की रानी लक्ष्मीबाई थीं, जिन्होंने मात्र 16 साल की उम्र में अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी।

रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि

हर साल 18 जून को रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि के रूप में मानाया जाता है। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को बनारस के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था और सभी उन्हें प्यार से मनु कहकर बुलाते थे।

कम उम्र में खो दिया बेटा और पति

साल 1842 में उनकी शादी झांसी के महाराजा गंगाधर राव नेवलेकर से हुई, जिसके बाद उनका नाम लक्ष्मीबा पड़ा। रानी लक्ष्मीबाई पर दुखों का पहाड़ तक टूटा, जब उन्होंने अपने 4 साल के बेटे को शादी के मजह 11 साल बाद पति को खो दिया। लेकिन साम्राज्य को संभालने के लिए उन्होंने अपने पति के चचेरे भाई दामोदर को अपना बेटा बना लिया।

उत्तराधिकारी के लिए छिड़ी जंग

अंग्रेजों ने दामोदर को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से साफ इनकार कर दिया और लक्ष्मीबाई के खिलाफ हो गए। जिसके बाद उन लोगों मे झांसी का किला ब्रिटिश गवर्मेंट को सौंपने को कहा। लक्ष्मीहाई के इंकार करने पर अंग्रेजो ने झांसी पर हमला कर दिया था, जहां दोनों ओर से जंग छिड़ गई।

अंग्रेजों ने किले पर किया हमला

लक्ष्मीबाई किसी तरह किले की रक्षा करती रही, लेकिन 2 अप्रैल को अंग्रेजों ने झांसी के किले पर भारी गोलीबारी की। जिसके बाद ब्रिटिश सेना घुसपैठ करने में सफल रही। दामोदर की जान बचाने के लिए लक्ष्मीबाई को किला छोड़कर तात्या टोपे या नाना साहब के पास चली गई, लेकिन वहां भी अंग्रेजों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।

दामोदर को पीठ पर बांधकर किया जंग

लक्ष्मीबाई ने दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांधकर घोड़े पर सवार होकर किले से निकल गईं। इसी दौरान उनके घोड़े की मौत हो गई, लेकिन वे कालपी पहुंच में सफल रहीं। 22 मई को अंग्रेजों ने कालपी पर हमला कर दिया, जिसके बाद रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और राव साहब ग्वालियर पहुंचे।

लड़ते-लड़ते हुईं शहीद

17 जून को ग्वालियर पर अंग्रेजों के हमले के बाद रानी लक्ष्मी बाद खुद सामने आई और अंग्रेजों से युद्ध का ऐलान किया। लड़ाई के दौरान रानी को गोली लग गई। लहु-लुहान होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं माना,। बाद में तलवार उनके सिर पर लगी और वे शहीद हो गईं, लेकिन लक्ष्मी बाई ने अपना पार्थिक शरीर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने दिया।

रानी लक्ष्मी बाई आज की महिलाओं के लिए प्रेरणा है। शिक्षा से जुड़ी तमाम खबरों के लिए जुड़े रहे jagranjosh के साथ

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