कौन थे बिरसा मुंडा? जिन्हें कहा जाता है आदिवासियों के भगवान
By Mahima Sharan03, Jun 2024 03:55 PMjagranjosh.com
कौन थे बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी के उलिहातू में हुआ था। बिरसा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल में प्राप्त की। पढ़ाई के दौरान ही बिरसा के क्रांतिकारी तेवर दिखने लगे थे।
रोमन कैथोलिक धर्म
उनकी स्कूल के दौरान सरदार आंदोलन भी चल रहा था जो सरकार और मिशनरियों के खिलाफ था। सरदारों के आदेश पर बिरसा मुंडा को मिशन स्कूल से निकाल दिया गया। उन्होंने जर्मन मिशन छोड़ दिया और रोमन कैथोलिक धर्म स्वीकार कर लिया।
स्वांसी जाति
बाद में उन्होंने ये धर्म भी छोड़ दिया। 1891 में वे बंदगांव के आनंद पांड के संपर्क में आए जो स्वांसी जाति से थे। वहीं दूसरी ओर सरकार ने पोड़ाहाट को संरक्षित वन घोषित कर दिया था, जिससे आदिवासियों में काफी गुस्सा था और लोग सरकार के खिलाफ आंदोलन करने लगे।
जब उन्होंने खुद को 'धरती आबा' कहा
आंदोलन की गति धीमी थी और बिरसा भी इस आंदोलन में भाग लेने लगे। बिरसा ने एक दिन घोषणा की कि वे पृथ्वी पिता यानी 'धरती आबा' हैं। उनके फॉलोअर्स ने भी इस रूप को स्वीकार कर लिया।
ब्रिटिश सरकार से हुए गिरफ्तार
1895 में जब ब्रिटिश सरकार ने पहली बार बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया, तब तक वे मुंडा समाज में धार्मिक गुरु के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। दो साल बाद जब वे रिहा हुए तो उन्होंने मुंडाओं के सामने अपने धर्म का परिचय देना शुरू किया।
जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए बलिदान
बिरसा मुंडा ने मुंडाओं को जल, जमीन और जंगल की रक्षा के लिए बलिदान देने के लिए भी प्रेरित किया। बिरसा मुंडा का पूरा आंदोलन साल 1895 से 1900 तक चला।
ईसाई पुजारियों पर भीषण हमला
बिरसा ईसाई पुजारियों पर भीषण हमला करते थे। बिरसा का प्रभाव उनके समुदाय पर पड़ रहा था और यह बदलाव उन्हें एकजुट कर रहा था। यह सब 1898 में हुआ।
बिरसा मुंडा को अपनी गुट में बहुत ही लोकप्रिय थे। शिक्षा से जुड़ी तमाम खबरों के लिए जुड़े रहे jagranjosh के साथ