संसद की एक सत्र की कार्यवाही: व्यय का ब्यौरा

संसद और उसके सत्रों की संरचना:
भारत में संसद देश की सर्वोच्च विधायी निकाय है, जिसमें राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल है। जिस अवधि के दौरान लोकसभा और राज्यसभा (जिन्हें संसद का सदन कहा जाता है) के सदस्य अपने काम-काज का संचालन करने के लिए बैठक करते हैं उसे 'सत्र' कहा जाता है।
एक साल में संसद के सत्र का आयोजन 3 बार किया जाता है। जिनके नाम इस प्रकार हैं:
1. बजट सत्र - फरवरी से मई तक
2. मानसून सत्र - जुलाई से सितंबर तक
3. शीतकालीन सत्र - नवंबर से दिसंबर तक
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संसद में सांसदों की संख्या:
भारतीय संसद के लोकसभा की वर्तमान सदस्य संख्या 545 है जिसमें एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 नामांकित सदस्य भी शामिल हैं| जबकि राज्यसभा की वर्तमान सदस्य संख्या 245 है जिसमें राष्ट्रपति द्वारा विज्ञान, संस्कृति, कला और इतिहास जैसे विभिन्न क्षेत्रों की विशेषज्ञता वाले 12 नामांकित सदस्य भी शामिल हैं| वित्त वर्ष (अप्रैल 2015-मार्च 2016) के दौरान भारतीय करदाताओं द्वारा 545 लोकसभा सांसदों को वेतन और अन्य भत्ते के रूप में लगभग 177 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया|
सांसदों का वेतन: (1 अप्रैल 2018 से लागू)
भारत सरकार ने सांसदों की वर्तमान प्रतिमाह सैलरी रु.50000 से बढाकर रु.1 लाख, निर्वाचन क्षेत्र के लिए भत्ता रुपये 45,000 से बढाकर रुपये 90,000, सचिवालय सहायता और ऑफिस के खर्चे के लिए भत्ता रुपये 45,000 से बढाकर रुपये 90,000 कर दिया गया है. इसके अलावा फ्री आवास, गाड़ी के लिए फ्री पेट्रोल/डीजल, हेल्थ सुविधाएँ देती है. इस प्रकार सांसदों के ऊपर भारत सरकार प्रति माह लगभग 2.7 लाख रूपए खर्च करती है. इसके अलावा सांसदों को साल भर में 34 हवाई यात्राओं और असीमित रेल और सड़क यात्रा के लिए भी सरकारी खजाने से धन दिया जाता है.
ध्यान रहे कि सांसदों को MPLAD स्कीम के तहत हट साल 5 करोड़ रुपये भी दिए जाते हैं और इन में से कितना खर्च किया जाता है यह किसी भी भारतीय से छिपा नहीं है.
संसदीय कार्यप्रणाली
एक साल के दौरान संसद का सत्र लगभग 100 दिनों तक चलता है और प्रति दिन संसद के दोनों सदनों में लगभग छह घंटे काम होता हैं| संसदीय आंकड़ों से पता चलता है कि दिसम्बर 2016 के शीतकालीन सत्र के दौरान लगभग 92 घंटे व्यवधान की भेंट चढ़ गए| इस दौरान लगभग 144 करोड़ रूपए (138 करोड़ रूपए संसद चलने का खर्च + 6 करोड़ रूपए सांसदों के वेतन, भत्ते एवं आवास खर्च) का नुकसान हुआ|
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संसद के चलने की एक मिनट की लागत कितनी है ?
मानाकि संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिन चलता है |
शीतकालीन सत्र का कुल खर्च = रु.144 करोड़ (केवल शीतकालीन सत्र)
प्रतिदिन की कार्यवाही =6 घंटे
शीतकालीन सत्र में संसद चली =90 घंटे
प्रति घंटे का खर्च= रु.1440000000/90 घंटे
संसद के एक घंटे तक चलने की कुल लागत = रु.160000000
प्रति मिनट का खर्च = रु. 160000000/ 60 मिनट
= रु. 2.6 लाख
संसद के एक मिनट तक चलने की कुल लागत = रु. 2.6 लाख
इसका मतलब यह हुआ कि यदि भारत की संसद एक मिनट तक चले तो जनता की गाढ़ी कमाई का लगभग 2.5 लाख रुपया खर्च हो जाता है |
यदि सरकार सैलरी में बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव को मान लेती है तो संसद को चलाने के लिए होने वाला खर्चा भी लगभग दुगुना हो जायेगा | ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ऐसे लोगों की सैलरी बढ़ाना ठीक है जो कि संसद में बैठकर सिर्फ हो हल्ला करके जनता की गाढ़ी कमाई पर मौज कर रहे हैं | अब जरुरत इस बात कि है कि संसद सदस्य अपनी जिम्मेदारियों को समझें और देश के चहुमुखी विकास की ओर ध्यान दें |