राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी सरगर्मियों के बीच अपने घोषणापत्रों में बढ़ा-चढ़ाकर वादे करने की प्रवृत्तियों पर लगाम लगाने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिये हैं कि इन घोषणा-पत्रों की विषयवस्तु से संबंधित नियमन आदि जारी करे. उच्चतम न्यायालय ने यह निर्देश 5 जुलाई 2013 को जारी किये.
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई एवं न्यायमूर्ति पी. सतशिवम की पीठ ने उपर्युक्त निर्देश जारी करते समय मत व्यक्त किया कि ज्यादातर राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा-पत्रों में तमाम ऐसे वादे करते हैं जिनसे निष्पक्ष मतदान प्रक्रिया प्रभावित होती है.
उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि राजनीतिक दल अपने घोषणा-पत्र चुनावी आचार संहिता लागू होने के पूर्व ही घोषित कर देते हैं, इस पर भी कानून बनाया जा सकता है. उच्चतम न्यायालय ने घोषणा-पत्रों को आचार संहिता के दायरे में लाने का सुझाव भी दिया.
पृष्ठभूमि
उच्चतम न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण निर्णय एक अधिवक्ता एस सुब्ह्मण्यम बालाजी की तमिलनाडु में जयललिता सरकार के मतदाताओं को मुफ्त घरेलू वस्तुएं बांटने की घोषणा के विरूद्ध दायर एक याचिका के दौरान लिया. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के खिलाफ इस याचिका यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वर्तमान नियमन प्रणाली चुनावी घोषणा-पत्रों में लोक-लुभावनी वस्तुएं नि:शुल्क बाटने के वादों पर लगाम लगाने में अक्षम है. इसी संबंध में उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को घोषणा-पत्रों की विषयवस्तु से संबंधित विनियमन के निर्देश दिये.
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