प्रख्यात शिक्षाविद और वैज्ञानिक यशपाल का 90 वर्ष की अवस्था में 25 जुलाई 2017 को नोएडा के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. प्रोफ़ेसर यशपाल लंबे समय से बीमार थे. प्रोफ़ेसर यशपाल को साइंस और इंजिनियरिंग के क्षेत्र में योगदान के लिए जाना जाता है. कॉस्मिक किरणों पर उनकी स्टडी को विज्ञान की दुनिया में बड़े योगदान के तौर पर देखा जाता है.
उनका नाम देश के बड़े साइंस कम्युनिकेटर्स में भी शुमार होता है. प्रोफ़ेसर यशपाल ने अपना करियर टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च से शुरू किया. प्रोफ़ेसर यशपाल को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक भी कहा जा सकता है.
टीवी पर प्रसारित विज्ञान से जुड़े कार्यक्रमों में भी वह कुछ साल पहले तक नजर आया करते थे. विज्ञान से जुड़ी मुश्किल बातों को भी आसान भाषा और सहज तरीके से समझाने के चलते वह विज्ञान के छात्रों के बीच भी काफी लोकप्रिय थे.
प्रोफ़ेसर यशपाल के बारे में-
- प्रोफ़ेसर यशपाल 1986 से 1991 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन भी रहे.
- केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 1976 में प्रोफ़ेसर यशपाल को पद्म भूषण और भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से वर्ष 2013 में सम्मानित किया गया.
- उनका जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शहर झांग में 26 नवंबर, 1926 को हुआ.
- उनकी परवरिश हरियाणा के कैथल में हुई.
- प्रोफ़ेसर यशपाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी से 1949 में फिजिक्स में मास्टर्स किया और 1958 में उन्होंने मैसेचुएट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी से फिजिक्स में ही पीएचडी की उपाधि हासिल की.
अंतरिक्ष विभाग की डायरेक्टर-
- वर्ष 1972 में जब भारत सरकार ने पहली बार अंतरिक्ष विभाग का गठन किया, तो अहमदाबाद में नए गठित किए गए स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपी गई थी. ये 1973 की बात है.
- 1983-84 में वह प्लानिंग कमिशन के चीफ कंसल्टेंट भी रहे.
- प्रोफ़ेसर यशपाल वर्ष 2007 से 2012 तक देश के बड़े विश्व विद्यालयों में से दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के वाइस चांसलर भी रहे.
- वर्ष 2009 में विज्ञान को बढ़ावा देने और उसे लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाने की वजह से उन्हें यूनेस्को ने (UNESCO) ने कलिंग सम्मान प्रदान किया.
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