केंद्र सरकार ने 18 सितंबर 2017 को उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर करते हुए आग्रह किया कि रोहिंग्या मुसलमानों को वापिस भेजा जाए. केंद्र सरकार ने कहा है कि इन रोहिंग्या लोगों में से कुछ का संबंध पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और अन्य आतंकवादी गुटों से है.
केंद्र ने न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों के अवांछित और भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने का हवाला देकर उन्हें देश से बाहर भेजे जाने का आग्रह किया.
हलफनामे में कहा गया कि यह रोहिंग्या लोग देश में अवैध रूप से रह रहे हैं और उनके यहां रहने से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न होने का डर है.
केंद्र का न्यायालय में रुख
• रोहिंग्या शरणार्थियों का म्यांमार से आना वर्ष 2012 में शुरू हुआ था. यह लोग पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम के रास्ते यहां पहुंचे हैं.
• केंद्र सरकार ने अपना मत रखते हुए कहा कि रोहिंग्या शरणार्थी यदि भारत में बसते हैं तो इससे देश के संसाधन तो प्रभावित होंगे ही साथ ही जनता के अधिकार भी प्रभावित होंगे.
• देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार केवल देश के नागरिकों को है, रोहिंग्या मुसलमान इसका गलत फायदा उठा रहे हैं.
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• केंद्र द्वारा दिए गये हलफनामे में कहा गया कि रोहिंग्या लोग हवाला और मानव तस्करी के माध्यम से भी धनराशि जमा करने में संलिप्त हैं.
• केंद्र ने कहा कि पड़ोसी देशों से अवैध शरणार्थियों के भारी प्रवाह के कारण कुछ सीमावर्ती राज्यों की जनसांख्यिकी में गंभीर बदलाव आया है.
• केंद्र का मानना है कि रोहिंग्या लोगों के देश में रहने से यहां मौजूद बौद्ध लोगों के साथ भी हिंसा होने की संभावना हो सकती है.
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