सार्वजनिक क्षेत्र की मोबाइल कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) का टावर कारोबार अब अलग कंपनी संभालेगी. नई कंपनी पर बीएसएनएल का पूर्ण स्वामित्व रहेगा. संचार मंत्रालय के इस आशय के प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है.
केंद्र सरकार ने यह निर्णय बीएसएनएल के विशालकाय टावर इंफ्रास्ट्रक्चर को राजस्व के नए स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने के उद्देश्य से उठाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इसका फैसला किया गया.
वर्तमान में देश में कुल मिलाकर 4,42,000 मोबाइल टावर हैं. इनमें से 66,000 से ज्यादा टावर बीएसएनएल के हैं. अलग कंपनी पूरी तरह से टावर कारोबार को संभालेगी. इसके बाद् बीएसएनएल पूरी तरह संचार सेवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकेगी.
बीएसएनएल का टावर नेटवर्क पूरे देश में फैला है. इनमें दूरदराज के ऐसे इलाके शामिल हैं, जहां निजी कंपनियों की पहुंच नहीं है. ऐसे में निजी कंपनियों को अपने टावर किराये पर उपलब्ध कराकर बीएसएनएल अच्छी कमाई कर सकती है.
टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर के साझा प्रयोग निवेश और लागत में कमी हेतु दुनिया भर में टेलीकॉम टावर कारोबार एक स्वतंत्र उद्योग का रूप ले रहा है. दूरसंचार विभाग की नीति टावरों, डीजल जनरेटर सेट, बैटरी यूनिट, पावर इंटरफेस यूनिट, एयर कंडीशनिंग यूनिट जैसे पैसिव इन्फ्रास्ट्रक्चर के साझा इस्तेमाल की अनुमति देती है.
टावर इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी की संपत्तियों में उपरोक्त सभी चीजें आती हैं, जिन्हें पट्टे या किराये पर उठाकर अतिरिक्त राजस्व प्राप्त किया जा सकता है. इससे एक ही इलाके में विभिन्न टेलीकॉम कंपनियों को अपना अलग पैसिव इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की जरूरत नहीं पड़ती.
सार्वजनिक क्षेत्र की अपने खुद के पैसिव इंफ्रास्ट्रक्चर वाली बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसी टेलीकॉम कंपनियों के लिए टावर व्यवसाय से कमाई करने के कई बिजनेस मॉडल उपलब्ध हैं. ऐसी अलग कंपनी बनाकर जिसमें नई कंपनी का पूर्ण स्वामित्व मूल कंपनी के पास रहता है. इसमें मूल कंपनी उसके टावर इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल लीज या किराये पर करती है.
टिप्पणी-
मोबाइल टावर किसी भी टेलीकॉम ऑपरेटर के लिए सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति हैं. कंपनियां अपने अलावा दूसरी ऑपरेरटरों को भी किराये पर उठाकर इन टावरों से अतिरिक्त राजस्व कमा सकती हैं.
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