भारत और पाकिस्तान ने 14 सितम्बर 2017 को सिंधु जल संधि के तकनीकी मुद्दों पर उच्चस्तरीय बातचीत शुरू की. भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के तकनीकी मुद्दों पर बैठकें 14-15 सितंबर को वाशिंगटन में हो रही हैं. ये बैठकें इस चर्चा का हिस्सा हैं कि दोनों देशों के लोगों के लाभ के लिए संधि की सुरक्षा कैसे की जाए.
इससे पहले अगस्त 2017 में विश्व बैंक ने कहा था कि सिंधु जल संधि के तहत भारत को कुछ शर्तों के साथ झेलम और चेनाब नदी की सहायक नदियों पर पनबिजली परियोजना के निर्माण की अनुमति दी गई है. भारत द्वारा किशनगंगा (330 मेगावाट) और रैटले (850 मेगावाट) पनबिजली संयंत्रों के निर्माण का पाकिस्तान विरोध कर रहा है.
सिंधु जल संधि के बारे में:
भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी. विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे. संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं.
तीन पूर्वी नदियों (रावी, व्यास और सतलज) के पानी पर भारत का पूरा हक दिया गया. बाकी तीन पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के पानी के बहाव को बिना बाधा पाकिस्तान को देना था. संधि में तय मानकों के अनुसार भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इनका करीब 20 फीसदी हिस्सा भारत के लिए है. संधि पर अमल हेतु सिंधु आयोग बना, जिसमें दोनों देशों के कमिश्नर हैं. वे हर 6 महीने में मिलते हैं और विवाद निपटाते हैं.
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