उच्चतम न्यायालय ने हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत तलाक की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए विशेष टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितंबर 2017 को छह महीने का वेटिंग पीरियड पूरा करना जरूरी नहीं होगा.
उच्चतम न्यायालय ने एक दंपत्ति की याचिका पर यह टिप्पणी दी जिसमें दलील दी गयी थी कि वे पिछले आठ वर्षों से अलग रह रहे हैं और उनके साथ रहने की कोई संभावना भी नहीं है इसलिए उन्हें इस नियम से छूट दी जाए.
उच्चतम न्यायालय का निर्णय
• न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल व न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की पीठ ने सहमति से तलाक के कूलिंग पीरियड समाप्त करने की याचिका पर यह फैसला सुनाया.
• हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 13बी (2) के अनुसार दोनों पक्षों में मध्य सुलह के लिए छह महीने का समय दिया जाना चाहिए.
• न्यायालय ने कहा कि शादी को बचाने का हर प्रयास होना चाहिए लेकिन यदि सुलह की कोई गुंजाइश न रहे और दूसरी ओर पुनर्वास उपलब्ध हो तो वहां कोर्ट पक्षकारों को बेहतर विकल्प देने के बारे में अधिकारहीन नहीं हो सकता.
• जिन परिस्थितियों को देख कर अदालत को लगता है कि धारा 13बी(2) के तहत दिया गया छह महीने का कूलिंग पीरियड समाप्त किया जा सकता है तो न्यायालय उसे खत्म कर सकता है.
टिप्पणी
हिन्दू मैरिज एक्ट वर्ष 1955 में बनाया गया था. तलाक के लिए दिया जाने वाला छह महीने का कूलिंग पीरियड परिस्थितियों को देखकर दिया जाने वाले बेहद अहम फैसला है. हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये फैसले के अनुसार दोनों पक्ष तुरंत भी अलग हो सकते हैं इसके लिए छह महीने इंतजार करना अनिवार्य नहीं है. हालांकि. इसके लिए अदालत को अपने विवेक से निर्णय लेना होगा.
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