सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा समूह को निवेशकों से जुटाए गए 17400 करोड रूपए की राशि 15 प्रतिशत ब्याज सहित वापस करने का आदेश 31 अगस्त 2012 को दिया. सहारा समूह को तीन माह में निवेशकों का पैसा वापस करना है.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर की पीठ ने यह निर्णय दिया. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) को निर्देश दिया है कि यदि सहारा समूह की कंपनियां सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन निवेशकों का पैसा लौटाने में विफल रहती हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए. आदेश का अनुपालन नहीं करने पर सेबी को इन कंपनियों की संपत्ति जब्त करने और बैंक खातों को सील करने का निर्देश दिया. इस पीठ ने इन कंपनियों को अपने सभी दस्तावेज और खातों का ब्यौरा सेबी के पास जमा कराने का निर्देश भी दिया. साथ ही दोनों कंपनियों के खिलाफ सेबी की जांच की निगरानी के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएन अग्रवाल को नियुक्त किया गया.
विदित हो कि सहारा समूह की दोनों कंपनियों (सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन) ने वर्ष 2008-2009 बाजार में निवेशकों के लिए एक स्कीम लाकर यह धन जुटाया था. सेबी ने नियमों के उल्लंघन की वजह से दोनों कंपनियों को पैसा लौटाने को कहा था. इस आदेश के खिलाफ सहारा समूह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय ने सेबी के पक्ष में निर्णय दिया. इस निर्णय के विरुद्ध सहारा समूह ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation