आगामी भविष्य में वर्ष भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. अगले दस वर्षो में वह अर्थव्यवस्था के मामले में जापान और जर्मनी को भी पीछे छोड़ देगा. इसके लिए यह आवश्यक है कि भारत को अपने आर्थिक सुधारों की गति को सामाजिक क्षेत्र की तरफ निरंतर बनाए रखना होगा.
वर्ष 2028 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 7 लाख करोड़ डॉलर (सात टिलियन डॉलर) हो जाने का अनुमान है. वर्ष 2016-17 में भारत की अर्थव्यवस्था 2.3 लाख करोड़ डॉलर थी. भारतीय मुद्रा के अनुसार यह रकम 448 लाख करोड़ रुपये होती है.
रिपोर्ट में जर्मनी की अर्थव्यवस्था छह लाख करोड़ डॉलर से कुछ कम और जापान की पांच लाख करोड़ डॉलर रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है. भारतीय अर्थव्यवस्था का दुनिया में पांचवा स्थान है.
ब्रिटिश ब्रोकरेज एजेंसी एचएसबीसी के एक अध्ययन के अनुसार देश में सामाजिक पूंजी का सर्वथा अभाव है. भारत को स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खर्च करने की आवश्यकता है. यह देश के आर्थिक विकास और राजनीतिक स्थिरता के लिए भी बेहद आवश्यक है.
रिपोर्ट के अनुसार भारत को कारोबार सुगम बनाने (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) के क्षेत्र में अभी काफी कुछ करने की आवश्यकता है.परचेजिंग पावर पैरिटी (खरीदने की क्षमता से जुड़ी तुलना) के मामले में तो यह और पहले हो सकता है.
रिपोर्ट में पहले दो स्थानों पर आने वाले देशों का जिक्र नहीं है. संभव है कि भारत से पहले इस सूची में चीन और अमेरिका ही रह जाएंगे. एचएसबीसी के अनुसार मुख्य रूप से देश की ताकत भौगोलिक और मैक्रो स्थिरता रहेगी.
ई-कॉमर्स सेक्टर रोजगार बढेगा-
भारत को आर्थिक सुधारों हेतु माहौल और तंत्र विकसित करना आवश्यक है. रिपोर्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था में रोजगार की कमी को लेकर काफी चिंता जताई जा रही है. मगर ई-कॉमर्स सेक्टर अगले एक दशक में 1.2 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा करेगा. साथ ही सामाजिक क्षेत्र रोजगार सृजन में बड़ी भूमिका का भी निर्वाह कर सकता है.
सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र पर भी खास ध्यान देने की आवश्यकता है. बड़े लक्ष्यों को पाने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार मैन्यूफैक्चरिंग, कृषि और सेवा क्षेत्र के योगदान के मौजूदा स्तर को बनाए रखे.
ब्रोकरेज का मानना है कि जीएसटी के चलते बीते वित्त वर्ष की 7.1 फीसद आर्थिक विकास दर के मुकाबले चालू वर्ष में इसके धीमे रहने की संभावना है. अगले वर्ष से इसमें सुधार दिखना आरम्भ हो जाएगा.
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